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सेहत के साथ स्वाद : पौष्टिक गुणों से भरपूर हैं पेठे से बनी बड़ियां

भुवन बिष्ट
रानीखेत

देवभूमि उत्तराखंड के कण कण में है देवों का वास, देवों की तपोभूमि कहे जाने वाली देवभूमि

उत्तराखंड जहाँ अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विश्व विख्यात है वही इसके पास अपार वन संपदा का खजाना भी भरा हुआ हैै। देवभूभि कृषि प्रधान होने के साथ साथ फलोत्पादन, बागवानी,सब्जी उत्पादन में भी अग्रणी भूमिका निभाता है। यहां के निवासियों के रोजगार के सदैव ही सशक्त माध्यम रहे हैं कृषि, बागवानी आदि। देवभूमि उत्तराखंड की संस्कृति व परंपरा सदैव महान रही है और यहां का खान पान विशुद्ध रूप से निर्मित होकर अपार गुणों को समेटे रहता है। आज हम बात कर रहे हैं देवभूमि उत्तराखंड के घरों में बनने वाली स्वादिष्ट, पौष्टिक बड़ीयों की। जो बनती हैं एक विशेष प्रकार के फल जो बेल पर लगता जिसे पेठा के नाम से जाना जाता है। कुमांऊ के कुछ क्षेत्रों में इसे स्थानीय नाम भुज से जाना जाता है। भुज जो कि बेनिनकेसा हिस्पिडा के नाम से जाना जाता है। इसे अलग अलग स्थानों में अलग अलग नामों से जाना जाता है।

यह पेठा फल एक जाना पहचाना फल है इसका उपयोग वैसे तो विभिन्न रूपों में किया जाता है किन्तु देवभूमि उत्तराखंड के पहाड़ के गांवों की बात करें तो आजकल पेठा फल (भुज) घरों में काफी मात्रा में इकट्टा किये हुए आसानी से दिख जायेंगे। और घरों में छतों में पेठा, भुज की तैयार की हुई बड़ीयाँ दिखने लग जायेंगीं। स्थानीय भाषा में जिसे भुज अथवा पेठा कहा जाता है यह एक फल व सब्जी कद्दू वर्गीय प्रजाति का होता है। इसलिए इसे पेठा कद्दू भी कहते हैं। यह हल्के हरे रंग का होता है और गोल हल्का लम्बा आकार में पाया जाता है। इस फल के ऊपर हल्के सफेद रंग की पाउडर जैसी परत चढ़ी होती है। यह वही पठा है जिसकी पेठा मिठाई जग प्रसिद्ध है।


भुज (पेठा) फल न केवल स्वादिष्ट तत्वों को अपने में समेटे है अपितु पोषक तत्वों का खजाना है. इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम ,फास्फोरस, आयरन, जिंक बहुत से तत्व पाए जाते हैं । इसके पके हुए फलों को कई महीनों तक अपने घर में आसानी से रखा जा सकता है। भुज पेठा को आयुर्वेद में भी बेहद उपयोगी माना गया है। भुज से बनी बड़ियों को अपने अपने स्वाद के अनुसार अलग अलग प्रकार की सब्जियों के रूप में उपयोग किया जाता है।

यदि रोजगार के रूप में देखा जाय तो भुज आजकल दस-पन्द्रह रूपये प्रतिकिलो भाव से आसानी से बिक जाता है और इनकी काफी मात्रा में माँग रहती है क्योंकि इनका उपयोग विभिन्न रूपों में किया जाता है। भुज की बड़ियाँ तैयार करने के लिए विशेष प्रकार की तैयारी भी आवश्यक है। सर्वप्रथम भुज फलों को इसके लिए संग्रहित किया जाता है। फिर भुज को छोटे छोटे टुकड़ों में काटा जा है। अब इसे कद्दूकस(भुजकोर स्थानीय नाम) (फल सब्जी को बारिक करने का छोटा यंत्र) में बारिक किया जाता है।

इसे बनाने में पूर्ण रूप से वैज्ञानिक सोच वैज्ञानिक पद्धति को भी अपनाया जाता है। अब बारिक किये हुए भुज, पेठा में से पानी की मात्रा को बिल्कुल अलग किया जाता है। इसे किसी कपड़े में गठरीनुमा बनाकर निचोड़कर सारा पानी निकाल दिया जाता है। बारिक किये हुए भुज, पेठा में पानी की मात्रा बिल्कुल न रहे यह भी विशेष ध्यान देने योग्य बात है। अब इसका दूसरा महत्वपूर्ण भाग है उड़द की दाल, इसे किसी पत्थर में हल्का पिसा जाता है जिससे की इसके बाहरी छिलके अलग हों जायें। अब बाहरी छिलकों को अलग कर दिया जाता है, तथा इसे पानी से धोकर लगभग रात भर भिगाने के लिए रखा जाता है। और अब शूरू होती है सिलबट्टे में इसे पिसने की प्रक्रिया जो एक कठिन मेहनत भरा कार्य होता है। लेकिन आजकल मिक्सर ग्राइंडर का उपयोग भी इनको पीसने में होने लगा है। इसमें भी पानी की मात्रा को हटाया जाता है। अब पिसी हुई दाल व कद्दूकस से कटा बारिक किया हुआ भुज को अच्छी प्रकार से मिलाया जाता है।

फिर छोटी छोटी आकार में बड़ियां तैयार की जाती हैं। इनके बनने की प्रक्रिया में सूर्य के प्रकाश अर्थात धूप की नितान्त आवश्यकता होती है। यदि धूप में तैयार न हों तो बड़िया खराब हो सकती हैं उनसे हल्की बदबू सी आने लगती है क्योंकि उनमें पानी की मात्रा रह जाती है। कुछ स्थानों में इनके बनाने की प्रक्रिया में मशाले का भी उपयोग करते हैं। धूप में अच्छी तरह सूखने के बाद इन्हें अलग अलग प्रकार के सब्जियों के रूप में उपयोग किया जाता है। भुज से बनने वाली बड़ियां स्वादिष्ट व गुणकारी पौष्टिक तत्वों के गुणों को समेटे हुए हैं।

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