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हल्द्वानी : महिला सशक्तिकरण की मिसाल थीं कस्तूरबा गांधी, गांधी दर्शन आज भी प्रासंगिक

काठगोदाम में कस्तूरबा गांधी की पुण्य तिथि पर गोष्ठी

उत्तराखंड सर्वोदय मंडल का आयोजन

हल्द्वानी | काठगोदाम में कस्तूरबा गांधी की पुण्यतिथि पर गोष्ठी का आयोजन किया गया, गोष्ठी में “बा” यानि कस्तूरबा गांधी और विमला बहुगुणा को श्रद्धांजलि दी गई। इस दौरान वक्ताओं ने विमला बहुगुणा के व्यक्तित्व पर विचार प्रकट करते हुए उन्हें उत्तराखंड में सामाजिक जागरण का प्रतीक बताया।

उत्तराखंड सर्वोदय मण्डल की ओर से “बा” की स्मृति में आयोजित गोष्ठी में वक्ताओं ने अपने विचार रखे। “बा” यानि कस्तूरबा गांधी महिला सशक्तिकरण की मिसाल थी जिनके नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं ने बढ़ चढ़कर भागीदारी की। “बा” ने महिलाओं को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनकार गांधी की ग्राम स्वराज की अवधारणा को जन जन तक पहुंचाने का काम किया। इस गोष्ठी का विषय महिला सशक्तिकरण व गांधी विनोबा दर्शन पर स्थानीय संसाधनों का सामुदायिक प्रबंधन और सामुदायिक विकास था।

वक्ताओं ने गांधी दर्शन को आज की आवश्यकता बताते हुए इसे सतत् और स्थाई विकास के लिए आवश्यक बताया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए द्वाराहाट के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और पानी बोओ, पानी उगाओ आंदोलन शुरू करने वाले मोहन काण्डपाल ने अपने अनुभव में कहा, कि गांधी जी की विचारधारा पर चल कर ही हम स्थानीय संसाधनों जल जंगल जमीन को समुदाय के सतत् विकास के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।

कार्यक्रम के संचालक बच्ची सिंह बिष्ट ने रामगढ़ क्षेत्र में जलसंचय के अनुभव और पारिस्थितिकी के संकट पर कहा कि स्थानीय संसाधनों का बेहतर प्रबंधन गांधी के ग्राम स्वराज और सामूहिकता से आ सकता है संसाधनों पर बाहरी लोगों का हस्तक्षेप प्रदेश के लिए बहुत घातक हो रहा है।

कस्तूरबा गांधी के जीवन पर रोशनी डालते हुए उत्तराखंड सर्वोदय मण्डल के अध्यक्ष इस्लाम हुसैन ने बताया कि गांधी को गांधी बनाये रखने में “बा” का बहुत बड़ा योगदान है। गांधी जी की सहधर्मिणी होते हुए उनका अलग व्यक्तित्व था। स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका सेवाग्राम आश्रम के प्रबंधन में योगदान और आगाखान पैलेस की जेल में उनका देहावसान इस बात को सिद्ध करते हैं। इस दौरान सामाजिक कार्यकर्ता चंदन ने कहा, श्रमिकों को प्राकृतिक संसाधनों को पूंजीपतियों के द्वारा ठगे जाने और लूटे जाने का मुद्दा उठाते हुए कहा कि बाहरी पूंजीपति को उत्तराखंड के हित और संवेदना से कोई सरोकार नहीं होता जबकि मजदूर कामगार स्थानीय हितों के साथ जुड़ा रहता है।

गोष्ठी को वरिष्ठ पत्रकार प्रोफेसर उमेश तिवारी विश्वास, तस्लीम अंसारी, जावेद सलमानी, मदन सिंह मेर, योगेश्वर पंत, गुरविंदर गिल, आदि ने भी सम्बोधित किया। गोष्ठी में रीता इस्लाम, नवाब बानो, इशान प्रदीप कुमार कोठारी, एमसी भण्डारी और रियासत अली भी मौजूद रहे। गोष्ठी का समापन गांधी जी के प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीता राम ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान’ से हुआ।

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