अल्मोड़ा: सरकार ने संज्ञान नहीं लिया, तो न्यायालय में देंगे चुनौती— विनोद तिवारी
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✍🏽 यूनिफार्म सिविल कोड के कुछ प्रावधानों पर राष्ट्र नीति संगठन की आपत्ति
✍🏽 संगठन प्रमुख बोले, यूसीसी का स्वागतयोग्य, मगर आपत्तियां निस्तारित हों
सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा: राष्ट्रनीति संगठन के प्रमुख विनोद तिवारी ने कहा है कि उत्तराखंड में यूनिफार्म सिविल कोड (यूसीसी) का स्वागत योग्य है, लेकिन इसमें कुछ प्रावधान सवाल उठाते हैं। जिन पर संगठन ने आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि इन आपत्तियों का पहले निस्तारण किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर सरकार इस पर गंभीरता से संज्ञान नहीं लेगी, तो इसे सक्षम न्यायालय में चुनौती दी जाएगी।
राष्ट्र नीति संगठन के प्रमुख विनोद तिवारी ने यहां एक होटल में प्रेसवार्ता आयोजित कर कहा कि उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल पास होने के बाद उसका राष्ट्र नीति संगठन ने कानूनी जानकारों से राय मशविरा कर कई कई बिंदुओं पर संशोधन की जरूरत महसूस की और आपत्ति पर आधारित ज्ञापन संशोधन के अनुरोध के साथ प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री को भेजा। आपत्ति के सवाल पर उन्होंने कई धाराओं का उल्लेख करते हुए कहा कि इनमें किए गए प्रावधान असंवैधानिक प्रतीत होते हैं। इसलिए उनमें संशोधन किया जाना बेहद जरूरी है, क्योंकि कुछ प्रावधान संविधान में मूल भावना का उल्लंघन करते प्रतीत हो रहे हैं। उन्होंने उदाहरण के तौर पर कहा कि विवाह, तलाक और संपत्ति विषयक कई कानून पूर्व में केंद्र सरकार ने बनाए हैं और अब राज्य सरकार द्वारा बनाए गए कानून का इनके साथ सामंजस्य नहीं बैठ रहा। जिससे एक संवैधानिक संकट पैदा होने की आशंका हैं। साथ ही संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत शक्ति विभाजन के सिद्धांत तथा निजता के अधिकार का उल्लंघन होने की संभावना है।
यूसीसी में लिव इन रिलेशनशिप के मामले में तिवारी ने कहा कि विशेष रूप से धारा 378 से 389 तक के प्रावधान संवैधानिक प्रतीत नहीं होते, क्योंकि धारा 380 प्रावधान करती है कि शादीशुदा व्यक्ति लिव इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन नहीं कर सकता परंतु यदि वह लिव इन रिलेशनशिप में रहता है, तो उसे दंडनीय नहीं बनाया गया है। वहीं धारा 387 प्रावधान करती है कि कोई भी अविवाहित लिव इन रिलेशनशिप में रहता है और 30 दिनों के भीतर वह रजिस्ट्रेशन नहीं करता है, तो दंडनीय होगा। उन्होंने कहा कि यह परस्पर विरोधाभासी स्थिति दूर होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजातियों को इस कानून से अलग रखना भारतीय संविधान की मूल भावना के साथ न्याय नहीं है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय नीति संगठन ने सरकार से अनुरोध किया है कि संविधान की मूल भावना को प्रभावित करने वाले प्रावधानों को हटाया जाए, मगर अभी तक इन सुझावों पर गौर नहीं फरमाया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर इस विषय का संज्ञान नहीं लिया गया, तो राष्ट्र नीति संगठन सक्षम न्यायालय में चुनौती देगी, जिसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्र नीति संगठन सामाजिक संगठन है और समाज हित में काम करेगा। प्रेसवार्ता में उपस्थित धर्म निरपेक्ष युवा मंच के अध्यक्ष विनय किरौला ने भी यूसीसी में मूल अधिकारों के हनन पर गहरी चिंता जाहिर की और सरकार से इसमें संशोधन का अनुरोध किया। इस मौके पर पूर्व स्वास्थ्य निदेशक डा. जेसी दुर्गापाल भी मौजूद रहे।