उत्तराखंड: कहां विलप्तु हो रहे बाघों के मुंह से भी निवाला छीनने वाले ‘हाइना’

सीएनई डेस्क The number of hyenas is continuously decreasing in the forests of Uttarakhand Mission Hyena started in Uttarakhand झुंड में बाघ व गुलदार के…

सीएनई डेस्क

The number of hyenas is continuously decreasing in the forests of Uttarakhand

Mission Hyena started in Uttarakhand

झुंड में बाघ व गुलदार के मुंह से भी शिकार छीन लेने का साहस रखने वाले प्रकृति के शानदार मुर्दाखोर धारीदार लकड़बग्घे (Hyena) अब विलुप्ति की कगार पर पहुंचने लगे हैं। 2010 के बाद से इन प्राणियों का सर्वे अब तक नहीं हो पाया है। इस बीच महकमे का ध्यान अचानक इनकी ओर गया है और इसकी ढूंढ—खोज के लिए अब ‘मिशन हाइना’ शुरू होने जा रहा है।

शुरू होने जा रहा ‘मिशन हाइना’ अभियान —

हकीकत तो यह है​ कि झुंडों में रहने वाले धारीदार लकड़बग्धों की जीवन शैली बहुत विचित्र है। यह अकसर घने वनों में छिपे रहते हैं और केवल शिकार के वक्त अचानक दिखाई दिया करते हैं। दुर्भाग्य से उत्तराखंड में हाइना को लेकर उतनी रिसर्च नहीं हुई, जितनी की होनी चाहिए थी। इस बीच लगभग दो सालों से पाया जा रहा है कि इनकी संख्या अचानक घटने लगी है। प्रमुख वन संरक्षक विनोद सिंघल ने इस तथ्य को स्वीकार किया है। उन्होंने कहा कि 1075 वर्ग किलोमीटर में फैले राजाजी टाइगर रिजर्व (आरटीआर) में एक बार फिर हाइना की खोज लेने के लिए अभियान शुरू होने जा रहा है। Rajaji National Park में अनुसंधान शाखा की तरफ से लकड़बग्घों पर सर्वे होगा। इस दौरान टीम लकड़बग्घों की मौजूदगी वाले क्षेत्रों में उनकी संख्या और जीवन शैली को लेकर एक basic data एकत्रित करेगी। बताया जाता है कि हाइना उत्तराखंड के कई रिजर्व फोरेस्ट एरिया में मौजूद हैं। कार्बेट में भी यह ट्रेप हो चुके हैं। उधर पार्क के निदेशक डॉ. साकेत बडोला के अनुसार रिसर्च टीम द्वारा राजाजी पार्क के विभिन्न क्षेत्रों में हाइना पर अध्ययन होगा। उनका कहना है कि लकड़बग्घे को रहने के लिए कुछ खास habitat की जरूरत होती है, जिसमें बच्चों की breeding and growing में कम खतरा हो।

जंगलों के हैं यह सफाई कर्मी —

यह भी बता दें कि मृत व सड़े हुए जीव पर्यावरण के लिए खतरा हो सकते हैं। जंगलों में इनकी सफाई का काम अब ​तक गिद्ध और लकड़बग्धे बखूबी करते आये हैं, लेकिन गिद्दों के साथ ही लकड़बग्धों की तादात कम होने से दिक्कतें पैदा होने लगी हैं। इन सड़े हुए जीवों को खाने से बाघ, गुलदार जैसे जीव बीमारियों से ग्रसित हो मर भी सकते हैं। इसके अलावा वातावरण में फैलती मृत देह की गंध और किटाणू बीमारियों का संचार कर सकते हैं। अतएव जंगलों के इन सफाई कर्मियों की बहुत जरूरत है। एक वक्त वह भी था जब राजाजी नेशनल पार्क में यह बहुत बड़ी संख्या में दिखते थे, लेकिन अब कभी—कभार ही दिखाई देते हैं। कुछ साल पहले वन महकमे ने भी मान लिया था कि हाइना अब लगभग समाप्त हो चुके हैं, लेकिन इसी साल कुछ पर्यटकों द्वारा इनको देखा गया है, जिसके बाद उम्मीद बढ़ गयी है। यही कारण है कि पार्क प्रशासन दोबारा इनकी ढूंढ—खोज में जुट गया है।

आईयूसीएन ने भी माना सकंटग्रस्त जीव हैं यह —

International Union for Conservation of Nature (IUCN) ने धारीदार लकड़बग्घा striped hyena को विश्व के संकटग्रस्ट वन्यजीव प्राणियों की श्रेणी नंबर तीन में रखा है। इसके बावूजद आज से पहले इनके संरक्षण और गिनती के लिए कोई खास प्रयास नहीं हुए हैं। यह जीव भारत और अफ्रीका के अलावा दुनियां के 15 देशों में पाया जाता है। सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में इनकी संख्या घट रही है। भारत की बात करें तो यहां हाइना ज्यादातर राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात के कुछ क्षेत्रों में पाये जाते हैं। उत्तराखंड के राजाजी राष्ट्रीय उद्यान और जिम कार्बेट नेशनल पार्क में भी यह देखे गये हैं।

लकड़बग्घा के बारे में यह भी जानिये —

⏩ पूर्ण विकसित हाइना करीब 35 इंच ऊंचा और वजन में 90 पाउंड का होता है। सबसे छोटा कीटभक्षी हाइना होता है, जो 20 इंच ऊंचा और वजन में 60 पाउंड का होता है।

⏩ नर की तुलना में मादा अधिक लंबी और प्रभावशाली होती है। ये समूह में रहने वाले प्राणी हैं। कीटभक्षी लकड़बग्घा केवल दीमक खाता है।

⏩ हाइना रात में सक्रिय होते हैं। एक-दूसरे के साथ बात करने के लिए विभिन्न sounds, postures and signals का प्रयोग करते हैं। इनकी आवाजें कइ बार ऐसी लगती हैं कि कोई हंस रहा हो।

⏩ मांस खाने वाले हाइना कई बार इंसानों का भी शिकार कर दिया करते हैं, लेकिन ऐसा कम ही देखा गया है।

⏩ मादा हाएना एक बार में 02 से 04 शावकों को जन्म देती है। वह करीब चार हफ्तों तक जन्म देने वाली जगह पर ही रहकर उनकी देखभाल करती है।

⏩ शावक 05 महीने के होते-होते मांस खाना शुरू कर देते हैं। जंगली हाएना का जीवनकाल 10 से 12 और पालतु का इससे कहीं अधिक हो सकता है।

⏩ लकड़बग्घा हमारे इस धरती पर लगभग 24 मिलीयन साल से है। अफ्रीका और एशिया के सवाना जंगलों के उप रेगिस्तान में इनकी संख्या सर्वाधिक है।

⏩ वैज्ञानिकों के अनुसार लकड़बग्घे की आयु 12 वर्ष तक होती है, लेकिन 25 साल तक जीवित रहा हाइना भी रिकार्ड में दर्ज है।

⏩ लकड़बग्घे की कई प्रजातियां होती हैं जिनमें से कुछ ऐसी प्रजातियां हैं जिसमें मादा चित्तीदार लकड़बग्घा नर लकड़बग्घे से 10 गुना अधिक भारी होती हैं।

⏩ लकड़बग्घा उन जानवरों में से नहीं है जो पेट पर जाने के बाद अन्य भोजन को ऐसे ही छोड़ देते हैं वह जानवरों की हड्डियां और खुद तक भी खा जाता है ताकि उसका भोजन बर्बाद ना हो और यदि भोजन बच जाए तो वह उसे एक सुरक्षित स्थान पर छुपा देते हैं।

⏩ हाइना यानी लकड़बग्घे जब झुंड में होते हैं तो इनकी ताकत कई गुना बढ़ जाती है। बहुत बार यह बाघों व गुलदारों के मुंह से निवाला छीनते तक देखे गये हैं। यदि इनकी संख्या अधिक हो तो वह बड़े शिकारी जीवों पर भी हमला करने से नहीं चूकते।

भेड़िया और लकड़बग्घा में क्या है अंतर —

⏩ भेड़िया भी लकड़बग्धा की तरह एक मांसाहारी जानवर है और यह भी झुंड में शिकार करता है, किंतु यह कुत्ते के परिवार से है, जबकि लकड़बग्धा बिल्ली परिवार से माना जाता है। भेड़िया का डीएनए कुत्तो से 99 फीसदी मिलता है।

⏩ भेड़िया मादा 65 दिवस तक गर्भावस्था में रहती है, जबकि मादा लकड़बग्घा 3 माह की गर्भावस्था रखती है।

⏩ नर भेड़िया मादा भेड़िया से अधिक वजनी और ताकतवर होता है। इसका वजन 50 से 70 किग्रा तक हो जाता है। वहीं जबकि लकड़बग्घा में मादा, नर से वजन में भारी होती है। इनका वजन करीब 80 किलोग्राम तक होता है।

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