लालकुआं। बिंदुखत्ता को भी टिहरी विस्थापितों के वन भूमि पर बसे गांवों की तरह राजस्व गांव बनाये जाने की भाजपा की उत्तराखंड सरकार से मांग हेतु शहीद स्मारक, कार रोड पर भाकपा (माले) द्वारा शारीरिक दूरी के मानकों का पालन करते हुए एकदिवसीय ‘चेतावनी धरना’ दिया गया।
‘चेतावनी धरने’ को संबोधित करते हुए भाकपा (माले) के जिला सचिव डॉ. कैलाश पाण्डेय ने कहा कि, “बिंदुखत्ता की जनता चार दशक से अधिक समय से राजस्व गांव की मांग कर रही है। भाजपा ने विधानसभा चुनावों में सरकार बनने पर बिंदुखत्ता की जनता से राजस्व गांव बनाने का वायदा किया था। लेकिन साढ़े तीन साल से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी यहां के विधायक और राज्य सरकार ने बिंदुखत्ता राजस्व गांव के सवाल पर कोई पहल नहीं की है।”
उन्होंने सवाल किया कि, “जब उत्तराखण्ड सरकार वन भूमि पर बसाए गए टिहरी बांध विस्थापित क्षेत्रों के 9 गांवों को राजस्व ग्राम बनाये जाने की अधिसूचना जारी कर सकती है तो नैनीताल जिले के बिंदुखत्ता और वन भूमि पर बसे अन्य खत्तों को राजस्व गांव क्यों नहीं बना रही है? यहां की जनता के साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों? बिंदुखत्ता को चार दशकों से भी ज्यादा समय होने के बाद भी यहां की भूमि को राजस्व गांव में बनाने की प्रक्रिया शुरू नहीं की जा रही है। जबकि वन भूमि पर बसे टिहरी के इन गांवों से बहुत पहले से ही बिंदुखत्ता और अन्य खत्तों में लोग बसे हुए हैं और उन्हें भी उसी प्रक्रिया से विधानसभा में प्रस्ताव लाकर राजस्व गांव बनाने की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए थी जिस प्रक्रिया से उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने वन भूमि पर बसे हुए इन गांवों को राजस्व गांव घोषित किया है।”
वरिष्ठ माले नेता भुवन जोशी ने कहा कि, “अगर भाजपा सरकार में थोड़ी भी ईमानदारी होती तो वन भूमि पर बसे इन 9 गांवों के साथ बिंदुखत्ता व अन्य खत्तों को भी राजस्व गांव बनाया जा सकता था। लेकिन भाजपा सरकार का खुला भेदभाव बिंदुखत्ता और अन्य खत्तावासियों की जनता के लिए दिखाई दे रहा है।”
आनंद सिंह सिजवाली ने कहा कि, “भाजपा सरकार और विधायक बिंदुखत्ता राजस्व गांव के सवाल पर शर्मनाक चुप्पी साधे हुए हैं। उत्तराखंड की भाजपा सरकार के इस भेदभाव वाले रवैये को लेकर बिंदुखत्ता की जनता में काफी आक्रोश है।”
भाकपा (माले) “चेतावनी धरने” के बाद तहसील लालकुआं के माध्यम से राज्य के मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा गया जिसमें बिंदुखत्ता व वन भूमि पर बसे अन्य खत्तों को भी टिहरी विस्थापितों के वन भूमि पर बसे गांवों की तरह ही राजस्व गांव बनाये जाने की मांग की गई। तथा चेतावनी दी गई कि राजस्व गांव की प्रक्रिया शुरू नहीं की गई तो राज्य सरकार और स्थानीय विधायक को बिंदुखत्ता की जनता के विरोध को झेलने के लिए तैयार रहना पड़ेगा। धरने के माध्यम से मोदी सरकार द्वारा किसान विरोधी तीन कानूनों को वापस लेने की भी मांग की गई।
“चेतावनी धरने” में मुख्यत डॉ. कैलाश पाण्डेय, भुवन जोशी, आनन्द सिंह सिजवाली, विमला रौथाण, गोविंद जीना, पुष्कर दुबड़िया, नैन सिंह कोरंगा, विनोद कुमार, मदन धामी, नारायण नाथ गोस्वामी, स्वरूप सिंह दानू, कमल जोशी, गोपाल अधिकारी, डी एस मेहरा, हरीश भंडारी, त्रिलोक राम, भास्कर कापड़ी, निर्मला शाही, गोपाल सिंह, हरीश टम्टा, विजय पाल, पान सिंह कोरंगा, दौलत सिंह कार्की, तेज सिंह जग्गी, नारायण सिंह, त्रिलोक दानू, सुरेंद्र सिंह कुंवर व प्रमोद आदि शामिल रहे।