संघर्षशील ताकत ने पहाड़ से जोड़ा स्वामी अग्निवेश का नाता, स्वर्गीय डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट से था अंतरंग ताल्लुक, लोगों की जुबानी रिश्ते की कहानी

चन्दन नेगी, अल्मोड़ास्वामी अग्निवेश का उत्तराखंड के जनांदोलनों में लगातार सक्रिय भागीदारी उनका पहाड़ के प्रति अथाह प्यार व लगाव को दर्शाता है। यही लगाव…

चन्दन नेगी, अल्मोड़ा
स्वामी अग्निवेश का उत्तराखंड के जनांदोलनों में लगातार सक्रिय भागीदारी उनका पहाड़ के प्रति अथाह प्यार व लगाव को दर्शाता है। यही लगाव है, जो उनकी याद को इस पहाड़ में सदैव संजोये रहेगा। उनके दुनिया से विदा लेने के बाद सामाजिक सरोकारों से ताल्लुक रखने वाले और संघर्षशील लोग काफी आहत हैं। ऐसे में यहां उस गंभीर, धैर्यवान, चिंतनशील और पहाड़ के जनसंघर्षों में अग्रिम पंक्ति के नेता का उल्लेख जरूरी हो जाता है, जिनसे स्वामी अग्निवेश का दशकों तक अंतरंग संबंध व अटूट सच्चा जुड़ाव रहा। दोनों के बीच इस रिश्ते की डोर कोई निजी स्वार्थ से नहीं बंधी थी, बल्कि एकमात्र स्वा​र्थ था — पहाड़ की आम जनता के दुख—दर्द और उनका निवारण। यहां बात हो रही है सदैव पहाड़ की आवाज उठाने वाली शख्सियत स्व. डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट की।
आज से करीब 40 साल पहले सन् 1981 से स्वामी अग्निवेश ने उत्तराखंड में सकारात्मक सक्रियता बढ़ी। यूं तो स्वामी जी का पहाड़ में उनका आना—जाना सत्तर के दशक से ही रहा। यहां जनांदोलनों में उन्होंने सर्वप्रथम वन बचाओ आंदोलन से दस्तक दी। उत्तराखंड लोक वाहिनी के अध्यक्ष रहे स्व. डा. शमशेर सिंह बिष्ट के साथ स्वामी जी की बेहद अंतरंगता थी। उनका स्व. शमशेर सिंह बिष्ट से इतना घनिष्ठ नाता रहा, मानो बचपन से ही साथ—साथ चल रहे हों। इसी लगाव से उनका तब उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी से भी नाता सा जुड़ गया और जल, जंगल, जमीन से जुड़े हक—हकूकों समेत गरीबों, पीड़ितों, मजदूरों, पहाड़ की उन्नति विषयों पर चर्चाएं चल पड़ी। देशभर में विविध जनांदोलनों के साथ खड़े स्वामी अग्निवेश ने वाहिनी के जनांदोलनों में खुद को भी शामिल कर लिया। उत्तराखंड के कई जनांदोलनों में संघर्ष वाहिनी के साथ स्वामी अग्निवेश का अहम योगदान रहा। इनमें वन बचाओ आंदोलन ( चिपको आंदोलन), नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन तथा उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन प्रमुख हैं। एक बार उत्तराखंड राज्य आंदोलन के शुरूआती दौर में स्वामी जी ने दिल्ली से जानकारी आंदोलन के बारे में जानकारी चाही, तो कुछ लोगों ने बता दिया कि पहाड़ में मैदान के लोगों के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है, लेकिन जब राज्य आंदोलनकारी डा. शमशेर सिंह बिष्ट ने उन्हें हकीकत से रूबरू कराया, तो स्वामी जी आंदोलन के समर्थन में उतर आए।
प्रसिद्ध आर्य समाजी नेता स्वामी अग्निवेश के निधन से तमाम लोग बेहद दुखी हैं। पहाड़ में स्वामी अग्निवेश जैसे विराट व्यक्तित्व का सानिध्य छूटने से का कितना मलाल है, सुनिये अटूट रिश्ता रखने वाले लोगों की जुबानी:—
विद्यार्थी जीवन से मेरे प्रेरणास्रोत रहे स्वामी जी—अजयमित्र : जीवनभर जनहितों के लिए संघर्षरत रही सख्शियत स्व. डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट के सुपुत्र अजयमित्र सिंह बिष्ट से जब स्वामी अग्निवेश का जिक्र किया, तो बेहद भावुक हो गए और उनके स्मृति पटल पर बचपन का वो वाकया छा गया, जब उनकी स्वामी अग्निवेश से मुलाकात हुई थी। अजय कहते हैं कि जब मैं अपने माता—पिता के साथ एक बार दूर नदी किनारे स्थित एक कुटिया में गए और माता—पिता व अन्य लोग कुटिया में गेरूवे वस्त्र पहने एक सन्यासी से बातचीत कर रहे थे। यही उनकी पहली मुलाकात थी, हालांकि उस वक्त बचपना होने से वे उन्हें जान नहीं पाए लेकिन जब बड़ा हुआ, तो पता चला कि वह एक आम सन्यासी नहीं बल्कि एक महान आत्मा हैं। वह कहते हैं कि पिताजी डा. शमशेर सिंह बिष्ट से स्वामी अग्निवेश का अटूट नाता रहा। इसी कारण उन्हें भी स्वामी जी का सानिध्य मिल सका। अजयमित्र कहते हैं कि जब से मैंने होश संभाला और उन्हें देखा। तब से स्वामी जी को अपने संरक्षक के रूप में पाया। वह आगे कहते है कि स्वामी जी मेरे विद्यार्थी जीवन से प्रेरणास्रोत रहे। दुनिया के लिए स्वामी अग्निवेश एक बहुत बड़ी शख्सियत रहे हैं और स्वामी जी जैसे शख्सियत को करीब से समझने व मिलने का जितना मौका मुझे मिला, ऐसा अवसर बहुत कम ही लोगों को मिल पाता है। स्वामी जी का संस्मरण सुनाते हुए अजय बताते हैं कि स्वामी जी अक्सर कहां करते थे कि जब बच्चा होता है, तो हम उसे 11 दिन होते ही धर्म और मूर्ति पूजा के ज्ञान बांध देते हैं, लेकिन असल में हम उसे एक अच्छा इंसान बनाना भूल जाते हैं। अजय का कहना है कि स्वामी जी के बारे में लिखने के लिए तो बहुत कुछ है, मगर मानवता के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों को शब्दों में बयां करना संभव नहीं है। जब करीब 2 महीने लगातार स्वामी जी के साथ रहा, तो मुझे सीखने को मिला कि हमारी सबसे बड़ी पूंजी हमारा स्वास्थ्य और इंसानियत से भरा व्यवहार ही है। जो सही मायने में हमें मनुष्य बनाता है।
पीड़ित मानवता की सशक्त आवाज़ थे स्वामी अग्निवेश—पीसी तिवारी :
उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी का कहना है कि स्वामी अग्निवेश के निधन से देश व दुनिया में बंधुवा जैसी दास प्रथा और भेदभावों के ख़िलाफ़ लड़ने वाली एक सशक्त आवाज़ व मार्गदर्शक को दुनिया ने खो दिया है। तिवारी कहते हैं कि स्वामी जी से उनका करीब चार दशक से घनिष्ठ संबंध था। श्री तिवारी संस्मरण सुनाते हुए कहते हैं कि “जंगल के दावेदार” पाक्षिक का संपादन करते हुए जानी मानी साहित्यकार महाश्वेता के बुलावे पर वर्ष 1981 में तत्कालीन मध्यप्रदेश व आज के झारखंड क्षेत्र में बंधुवा मुक्ति मोर्चे की राष्ट्रीय चौपाल में उनसे मेरी पहली मुलाक़ात हुई थी। उसके बाद दिल्ली के जंतर मंतर में आंदोलन के तहत बार—बार मुलाकात होती रही। स्वामी जी हमारे गांव बसभीड़ा से शुरू हुए “नशा नहीं रोज़गार दो आंदोलन” को समर्थन देने 17 जून 1984 को नैनीताल में आयोजित रैली में पधारे। उनके कई कार्यक्रमों, शिविरों में हम लोग शामिल रहते थे। नाथहारा मंदिर में दलितों के प्रवेश के लिए चले उनके आंदोलन में हम सम्मिलित रहे और उदयपुर (राजस्थान) से नाथहारा जाते हुए हमें स्वामी जी के साथ मेरी छोटी बहन डॉ. रेखा जोशी एवं भतीजी भावना के साथ गिरफ्तार कर दिल्ली तक छोड़ा गया था। उत्तराखंड बनने के बाद 2002 में हुए पहले चुनाव में स्वामी जी ने नंदादेवी के ऐतिहासिक मैदान में हमारी सभा को संबोधित किया था। नानीसार के ज़मीन आंदोलन को लेकर जंतर—मंतर में हुए प्रदर्शन की रूपरेखा उनके कार्यालय में ही बनी और उनके सहयोग से सैकड़ों लोगों के रहने व भोजन की व्यवस्था गुरुद्वारे से संभव हो पाई थी। श्री तिवारी कहते हैं कि स्वामी अग्निवेश को उत्तराखंड से बहुत स्नेह था। वे कलकत्ता विश्वविद्यालय की अंग्रेज़ी के प्राध्यापक की नौकरी छोड़कर सामाजिक व राजनीतिक जीवन में आए थे। उन्होंने कहा है कि अग्निवेश का व्यक्तित्व व कार्य जन संघर्षों को ताकत व प्रेरणा देता रहेगा।
स्वामी जी ने पहाड़ की पीड़ा को बखूबी समझा—दयाकृष्ण कांडपाल: उत्तराखंड लोक वाहिनी के नेता दयाकृष्ण कांडपाल स्वामी अग्निवेश के द्विवंगत होने से बहुत दुखी हैं। वह कहते हैं कि स्वामी अग्निवेश ने पहाड़ की पीड़ा को बखूबी समझा। इसीलिए उन्होंने उत्तराखंड के जनमानस की भलाई के लिए जनांदोलनों में मजबूत कदम रखे। श्री कांडपाल संस्मरण सुनाते हुए कहते हैं कि उन्हें पहली बार नैनीताल में पत्रकारिता के दौरान स्वामी अग्निवेश से मुखातिब होने का अवसर प्राप्त हुआ था। जहां मल्लीताल स्थित अरिविंदो आश्रम में स्वामी जी से तब देश के हालातों और अन्य मुद्दों पर लंबी चर्चा हुई। श्री कांडपाल कहते हैं कि स्वामी अग्निवेश सदैव सामाजिक सरोकारों के लिए समर्पित रहने वाले एक सशक्त योद्धा थे, जो सदा के लिए दुनिया छोड़ कर चले गए, लेकिन उन्हें भुलाया जाना संभव नहीं है।
स्वामी जी की कमी सदैव खलेगी—अमिनुर्रहमान : बंधुवा मुक्ति मोर्चा और उत्तराखंड लोक वाहिनी में सालों से सक्रिय अमिनुर्रहमान ने दुखी हृयद से कहा कि स्वामी जी के निधन की खबर सुनकर उन्हें अत्यधिक आघात पहुंचा। अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए अमीनुर्रहमान कहते हैं कि स्वामी जी ने सदैव शोषित व पीड़ित समुदाय के हित में संघर्ष किया और उनका नाता भी संघर्षशील व्यक्तियों से जुड़ते चला गया। अमीनुर्रहमान विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहते हैं कि स्वामी अग्निवेश की कमी सदैव खलेगी।

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