✒️ मेहनत व लगन की प्रेरणा देने वाले व्यक्तित्व को अर्पित किए श्रद्धासुमन
✒️ होटल ‘शिखर’ के भव्य परिसर में जयंती समारोह, लोक संस्कृति की बही बयार
✒️ ‘स्व. जगत सिंह बिष्ट: इन प्रेरक कार्यों से कमाया बड़ा नाम’
सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा: यहां प्रतिष्ठित एवं नामी होटल व्यवसायी स्व. जगत सिंह बिष्ट की 90वीं जयंती आज होटल ‘शिखर’ के भव्य परिसर में धूमधाम से मनाई गई। जगत मोहनी फाउंडेशन एवं होटल शिखर की ओर से आयोजित इस समारोह में स्व. जगत सिंह बिष्ट को याद करते हुए उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए गए। इस समारोह में हर वर्गों के लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए। साथ ही जयंती के मौके पर लोक कलाकारों के माध्यम से पर्वतीय लोक कला की शानदार प्रस्तुति हुई। कलाकारों ने कुमाउंनी सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की झड़ी लगा दी। झोड़ों की प्रस्तुति ने सभी ने मन मोहा। (आगे पढ़िये…)
समारोह में स्व. बिष्ट के जीवन संघर्षों पर प्रकाश डाला गया और कहा कि उन्होंने असुविधाओं के दौर में पहाड़ में कुछ नया करने व जनसेवा की सीख दी। समारोह में लोक कलाकार कृष्ण मोहन बिष्ट “नंदा” को सम्मानित किया गया। साथ ही रंगकर्मी नवीन बिष्ट, नारायण थापा, दयानंद कठेत, राधा तिवारी का भी सम्मान किया गया। कार्यक्रम में विधायक मनोज तिवारी, पूर्व विधायक रघुनाथ सिंह चौहान, फाउंडेशन की अध्यक्ष मोहनी बिष्ट, होटल शिखर के प्रबंधक राजेश बिष्ट, अर्बन बैंक के महाप्रबंधक पीसी तिवारी, नीरा बिष्ट, मोहिनी बिष्ट, पूर्व पालिकाध्यक्ष शोभा जोशी, पूर्व स्वास्थ्य निदेशक डा. जेसी दुर्गापाल, उपपा के पीसी तिवारी, खीम सिंह बिष्ट, सपना नयाल, लता तिवारी, रोशनी वालिया, गोकुल रावत, ललित लटवाल, विनीत बिष्ट, मोहन कांडपाल, डा. देव सिंह पोखरिया समेत तमाम गणमान्य लोग शामिल हुए।
स्व. जगत सिंह बिष्ट: इन प्रेरक कार्यों से बनाई पहचान
सफलता व उच्च मुकाम हासिल करने के लिए यह मायने नहीं रखता कि आप साधारण परिवार से हैं या धनाड्य तबके से। तमाम लोग एक साधारण परिवार से निकलकर मुकाम हासिल कर चुके हैं। इन्हीं में शामिल रहे अल्मोड़ा के होटल व्यवसायी स्व. जगत सिंह बिष्ट। जिन्होंने साधारण परिवार में जन्म लेकर व्यवसाय व समाजसेवा के क्षेत्र में बड़ा नाम कमाया और समाज को एक बड़ी प्रेरणा दे दे गए। स्व. जगत सिंह बिष्ट की संघर्ष व सफलता की कहानी का स्मरण आज (3 फरवरी) को उनकी जयंती के उपलक्ष्य उल्लेखनीय है। (आगे पढ़िये…)
3 फरवरी 1934 को जिला बागेश्वर के कपकोट तहसील अंतर्गत ग्राम चकतरी में नैन सिंह बिष्ट एवं चंद्रा देवी के घर में व्यवसायी जगत सिंह बिष्ट का जन्म हुआ था। उनके पिता नैन सिंह बिष्ट साधारण तबके के किसान थे और जगत सिंह बिष्ट की पढ़ाई 10वीं कक्षा तक हो पाई। इसके बाद 50 के दशक में नौकरी की जुगत में जगत सिंह बिष्ट बहुप्रतिष्ठित डाबर कंपनी के मालिक डॉ. अशोक बर्मन के कोलकाता स्थित कारखाने में चले गए, जहां उन्होंने कंपनी में नौकरी शुरू की।
डाबर कंपनी में नौकरी के दौरान जगत सिंह बिष्ट ने देश के दक्षिणी राज्यों को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में कंपनी के प्रचार—प्रसार का काम किया। कर्मशील व ईमानदार स्वभाव के साथ ही कुछ नया करने व सीखने की ललक से वह आगे बढ़ते गए और उन्होंने मार्केटिंग के अनुभव का पिटारा भरा। उनके अनुभव, लगन व दूरदर्शिता से कंपनी मालिक डा. अशोक बर्मन काफी खुश हुए और उन्होंने साठ के दशक में अल्मोड़ा में डाबर कंपनी की एजेंसी का काम जगत सिंह बिष्ट को सौंप दिया। फिर क्या था मेहनत व दूरदर्शी सोच रंग लाई और उन्होंने पूरे कुमाऊं में डाबर का काम फैला दिया। (आगे पढ़िये…)
कुछ नया करने व जनसेवा की सोच सदैव उन पर सवार रही। जहां एक ओर कुमाऊं में डाबर कंपनी का कारोबार फैलाया, वहीं दूसरी तरफ नई सोच से उस दौर में केमू बेड़े में अपनी नई बसें शुमार की और उनका संचालन शुरू किया। केमू में उनकी बसें ‘टाइगर’ नाम से जानी गईं। अभावों के कारण उस दौर में केमू में जीर्ण-क्षीर्ण हालात में बसें हुआ करती थी, लेकिन केमू की बसों की दशा सुधारने की पहल करते हुए मेरठ स्थित बॉडी मेकर हरीश इण्डस्ट्रीज से निर्मित आधुनिक स्टील बॉडी बसों का निर्माण कराया। जिसे नई बसें केमू में चली। (आगे पढ़िये…)
दरअसल, पहाड़ में पर्यटन को विकसित करने की धुन भी व्यवसायी जगत सिंह बिष्ट ने पकड़ी। शायद पर्यटकों को आरामदेह बसें उपलब्ध कराने के उद्देश्य से उन्होंने आधुनिक बसों का संचालन शुरू किया। भले ही आज पहाड़ में एक से बढ़कर एक सुविधायुक्त होटल सुविधा उपलब्ध है, लेकिन उस दौर में पर्यटकों के ठहरने की किफायती व बेहतर सुविधायुक्त होटलों का अभाव था। उन्हें आभास हुआ कि यह अभाव भी पर्यटन विकास में रोड़ा है। इसी अभाव को दूर करने की उन्होंने ठानी और सन् 1986 में माल रोड में आधुनिक सुविधायुक्त होटल का निर्माण शुरू कर डाला और सन् 1989 से होटल का संचालन प्रारंभ हो गया। यह होटल तब से ‘शिखर’ के नाम से मशहूर है। जो महज अल्मोड़ा या उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि देश के कोने—कोने में पहचान रखता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि अल्मोड़ा में आधुनिक होटलों की नींव होटल शिखर से ही पड़ी। जिससे यहां पर्यटकों का ठहराव होने लगा। इसमें कई लोगों को रोजगार मिला, तो पर्यटन विकास को राह मिली। अल्मोड़ा माल रोड में उस दौर का सर्वाधिक आलीशान भवन बनाया, जो आज भी दानपुर भवन या हाथी भवन के नाम से विख्यात है। (आगे पढ़िये…)
व्यवसाय के साथ ही सेवा का भाव भी सदैव उनसे जुड़ा रहा। उन्होंने अल्मोड़ा में शंकर भैरव मंदिर का जीर्णोद्धार कराया तथा प्रसिद्ध चितई गोलू देवता मंदिर का मुख्य गेट बनवाते हुए चहारदीवारी का निर्माण कराया। इसके अलावा ‘राह में आए जो दीन—दुखी, सबको गले लगाते चलो’ सरीखी पंक्तियों पर अमल करते रहे। कई लोगों की उन्होंने मदद की। उन्होंने अपने गृहक्षेत्र कपकोट के विकास के लिए भी कदम उठाए और सन् 1975 में अपने पिता की स्मृति में रामलीला स्टेज बनवाया। उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में भी उन्होंने अहम् भागीदारी की और उन्हें जिला प्रशासन ने राज्य आंदोलनकारी चिन्हीकरण समिति का सदस्य भी बनाया था। दरअसल वह ऐतिहासिक नगरी अल्मोड़ा को पर्यटन मानचित्र में लाना चाहते थे और इसी के लिए प्रयास करते रहे। वह आजीवन होटल एसोसिएशन अल्मोड़ा के जिलाध्यक्ष का दायित्व बखूबी निभा गए। (आगे पढ़िये…)
दूरगामी सोच व सेवाभाव वाले स्व. जगत सिंह बिष्ट बेहद मिनलसार थे और ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा उनकी रुचि में शुमार रहती थी। मिलनसार स्वभाव के कारण हर वर्ग के छोटे से लेकर उच्च पदस्थ लोगों से उनका गहरा नाता रहा। हर राजनैतिक दल के नेताओं का उनसे मिलना—जुलना लगा रहा और राजनैतिक व विकास के विषयों पर चर्चा होते रही। एक नामी व्यवसायी, समाजसेवी व दूरदर्शी सोच वाला यह व्यक्तित्व 16 अगस्त 2013 को हृदयाघात के चलते दुनिया छोड़कर चला गया। पर्यटन विकास में अतुलनीय योगदान को देखते हुए हरीश चंद्र सिंह रावत ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में राजकीय होटल मैनेजमेंट अल्मोड़ा का नामकरण स्व. जगत सिंह बिष्ट के नाम पर किया। स्व. जगत सिंह बिष्ट का जीवन मेहनती व लगनशील लोगों को प्रेरणा देने वाला रहा है।