मौसम बना खलल – शहीद का शव आज शाम तक हल्द्वानी पहुंचने की उम्मीद
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Haldwani Big Update । शहीद लांस नायक चंद्र शेखर हरबोला के पार्थिव शरीर के घर पहुंचने का हल्द्वानी के लोगों को बेसब्री से इंतजार है, लेकिन मौसम के खलल से पार्थिव शरीर के आज शाम तक हल्द्वानी पहुंचने की उम्मीद है।
परिजनों के मुताबिक प्रशासन से जानकारी मिली है कि शहीद का पार्थिव शरीर अभी चंडीगढ़ में है। जिसे लद्दाख ले जाया जाना है। लद्दाख से पार्थिव शरीर को सीधे हल्द्वानी लाया जाएगा। बताया कि इस समय लद्दाख में मौसम खराब चल रहा है। इसके चलते चॉपर उड़ान नहीं भर पाया है। उम्मीद जताई जा रही है कि शाम तक शव हल्द्वानी पहुंच पायेगा, जिसके बाद परिजनों की ओर से शव के दर्शन बाद रानीबाग स्थित घाट में अंतिम संस्कार की कार्यवाही की जाएगी।
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हल्द्वानी : 38 साल पहले शहीद हुए चंद्रशेखर का सियाचिन में मिला शव – पढ़ें शहादत की अनसुनी दास्तां
हल्द्वानी। आज 15 अगस्त को पूरा देश आजादी का 75 वां सालगिरह अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है, तो वहीं सियाचिन पर अपनी जान गवाने वाले एक शहीद सिपाही का पार्थिव शरीर 38 साल बाद उनके घर आ रहा है। जी हां हम बात कर रहे हैं 19 कुमाऊं रेजीमेंट में जवान चंद्रशेखर हर्बोला (Chandrashekhar Harbola) की जिनकी मौत 29 मई 1984 को सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत के दौरान हो गई थी। बर्फीले तूफान में ऑपरेशन मेघदूत में 19 जवान दबे थे, जिनमें से 14 जवानों का शव बरामद कर लिया गया था, लेकिन पांच जवानों का शव नहीं मिल पाया था।
आज 15 अगस्त पर घर लाया जा रहा पार्थिव शरीर
जिसके बाद सेना ने चंद्रशेखर हर्बोला (Chandrashekhar Harbola) के घर में यह सूचना दे दी गई थी कि उनकी मौत बर्फीले तूफान की वजह से हो गई है। उस दौरान चंद्रशेखर हर्बोला की उम्र सिर्फ 28 साल थी, उनकी दोनों बेटियां बहुत छोटी थी परिजनों ने चंद्र शेखर हर्बोला का अंतिम संस्कार पहाड़ के रीति रिवाज के हिसाब से किया था। लेकिन अब 38 साल बाद उनका पार्थिव शरीर सियाचिन में खोजा गया है, जो कि बर्फ के अंदर दबा हुआ था। उनके पार्थिव शरीर को 15 अगस्त यानि आजादी के दिन उनके घर पर पहुंचना था लेकिन मौसम खराब होने की वजह से समय पर नहीं पहुंच। आज मंगलवार शाम तक पार्थिव शरीर पहुंचने की उम्मीद है। उनके पार्थिव शरीर का पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा। क्योंकि 38 साल पहले बिना पार्थिव शरीर के उनका अंतिम संस्कार किया गया था, वहीं चंद्रशेखर हर्बोला की पत्नी शांति देवी के आंखों के आंसू अब सुख चुके हैं। आगे पढ़े…
गर्व हैं कि उन्होंने अपनी जान देश की रक्षा के लिए गवाई
उनको पता है कि उनके पति अब इस दुनिया में नहीं है, गम उनको सिर्फ इस बात का था कि आखिरी समय में उनका चेहरा नहीं देख सकी, वहीं उनकी बेटी कविता पांडे ने कहा कि पिता की मौत के समय वह बहुत छोटी थी। ऐसे में उनको अपने पिता का चेहरा याद नहीं है, अब जब उनका पार्थिव शरीर उनके घर पहुंचेगा तभी जाकर उनका चेहरा देख सकेंगे। उनकी मौत का गम तो उनके पूरे परिजनों को है लेकिन गर्व इस बात का है कि उन्होंने अपनी जान देश की रक्षा के लिए गवाई हैं। आगे पढ़े…
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सियाचिन में उनकी पोस्टिंग ऑपरेशन मेघदूत में हुई थी
चंद्रशेखर हर्बोला के अन्य परिजनों का कहना है कि सियाचिन में उनकी पोस्टिंग की ऑपरेशन मेघदूत (Operation Meghdoot) के दौरान बर्फीले तूफान में 19 जवानों की मौत हुई थी जिसमे से 14 जवानों के शव को सेना ने खोज निकाला था, लेकिन 5 शव को खोजना बाकी था एक दिन पहले की चंद्रशेखर हर्बोला और उनके साथ एक अन्य जवान का शव सियाचिन (siachen) में मिल गया है। और सेना द्वारा उनको यह सूचना मिली है कि चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर मिला है। जिसका बैच संख्या 4164584 हैं और अब उनके पार्थिव शरीर को नई आईटीआई रोड धान मिल, सरस्वती विहार, डहरिया स्थित उनके आवास पर 15 अगस्त को लाया जा रहा है। जिन का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ रानीबाग स्थित चित्रशिला घाट पर किया जाएगा। 15 अगस्त यानी देश की आजादी का पर्व जिससे पूरे भारतवर्ष आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मनाया गया तो उसी दिन 38 साल पहले ऑपरेशन मेघदूत में अपनी जान गवाने वाले जवान चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर भी उनके निवास स्थान पर पहुंचेगा चंद्रशेखर की मौत पर परिजन बेहद दुखी हैं। लेकिन उनको गर्व इस बात का है कि देश के लिए उन्होंने अपनी शहादत दी है। आगे पढ़े…
शांति देवी पर दो बेटियों की जिम्मेदारी थी
लांस नायक चंद्रशेखर हर्बोला के लापता हो जाने पर उनकी पत्नी शांति देवी के सामने दो बेटियों के पालन पोषण की जिम्मेदारी थी। तब बड़ी बेटी कविता साढ़े चार साल व छोटी बेटी बबीता ढ़ाई साल की थी। शांति देवी बताती हैं कि जब पति सियाचिन में लापता हुए उनकी शादी को मात्र नौ साल हुए थे।
बेटियां कुछ बड़ी हुईं तो पापा के बारे में पूछने लगी। मैं हर बार झूठ बोलकर कहती थी वह दूर नौकरी करते हैं। इस बार 15 अगस्त को वह घर आ जाएंगे। एक दिन मुझे भारी मन से बेटियों को सच बताना पड़ा। बड़ी बेटी की 12वीं पास कर शादी की। छोटी बेटी बीएससी कर शादी के बंधन में बंधी।
शांति देवी 1993 में बिंता द्वाराहाट अल्मोड़ा से हल्द्वानी में आकर बस गईं। शहीद चंद्रशेखर हर्बोला आज जीवित होते तो 66 वर्ष के होते। उनके परिवार में उनकी 64 वर्षीय पत्नी शांति देवी व दो बेटियां कविता, बबीता और उनके बच्चे यानी नाती-पोते 28 वर्षीय युवा के रूप में अंतिम दर्शन करेंगे। आगे पढ़े…
पुल बनाने की सूचना पर निकली थी ब्रावो कंपनी
दुनिया के सबसे दुर्गम युद्धस्थल सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जे की सूचना पर आपरेशन मेघदूत के तहत श्रीनगर से भारतीय जवानों की कंपनी पैदल सियाचिन के लिए निकली थी। इस लड़ाई में प्रमुख भूमिका 19 कुमाऊं रेजीमेंट ने निभाई थी।
अग्रिम जवानों को मजबूती देने निकली थी कंपनी
चंद्रशेखर हर्बोला 19 कुमाऊं रेजीमेंट ब्रावो कंपनी में थे और लेंफ्टिनेंट पीएस पुंडीर के साथ 16 जवान हल्द्वानी के ही नायब सूबेदार मोहन सिंह की आगे की पोस्ट पर कब्जा कर चुकी टीम को मजबूती प्रदान करने जा रहे थे। आगे पढ़े…
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एवलांच में बर्फ में दब गई थी पूरी कंपनी
29 मई 1984 की सुबह चार बजे आए एवलांच यानी हिमस्खलन में पूरी कंपनी बर्फ के नीचे दब गई थी। इस लड़ाई में भारतीय सेना ने सियाचिन के ग्योंगला ग्लेशियर पर कब्जा किया था। अब तक 14 शहीदों के ही पार्थिव शरीर मिल पाए हैं। मूल रूप से हाथीखाल द्वाराहाट जिला अल्मोड़ा निवासी शहीद का परिवार वर्तमान में सरस्वती विहार, नई आईटीआई रोड, डहरिया में रहता है।
क्या था आपरेशन मेघदूत What was Operation Meghdoot
जम्मू कश्मीर में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जे के लिए भारतीय सेना जो आपरेशन चलाया उसे महाकवि कालीदास की रचना के नाम पर कोड नेम ऑपरेशन मेघदूत दिया। यह ऑपरेशन 13 अप्रैल 1984 को शुरू किया गया। यह अनोखा सैन्य अभियान था क्योंकि दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित युद्धक्षेत्र में पहली बार हमला हुआ था। सेना की कार्रवाई के परिणामस्वरूप भारतीय सेना ने पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया था। इस पूरे आपरेशन में 35 अधिकारी और 887 जेसीओ-ओआरएस ने अपनी जान गंवा दी थी। आगे पढ़े…
परवेज मुशर्रफ ने स्वीकार की थी हार
अपने संस्मरणों में पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने कहा था कि पाकिस्तान ने क्षेत्र का लगभग 900 वर्ग मील (2,300 वर्ग किमी) खो दिया है। जबकि अंग्रेजी पत्रिका टाइम के अनुसार भारतीय अग्रिम सैन्य पंक्ति ने पाकिस्तान द्वारा दावा किए गए इलाके के करीब 1,000 वर्ग मील (2,600 वर्ग किमी) पर कब्जा कर लिया था।
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सरकार ने दिया ताम्रपत्र
सरकार की ओर से चंद्रशेखर हर्बोला को शहीद के उपरांत ताम्रपत्र समेत कई पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया है। शहीद की याद में हाल में केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने भी शांति देवी को सम्मानित कर पुरस्कृत किया था।
दुःख और गर्व में शहीद चन्द्रशेखर हरबोला का परिवार
वर्ष 1984 में सियाचिन ग्लेशियर में भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन मेघदूत’ (Operation Meghdoot) के दौरान लापता हुए शहीद चंद्रशेखर हरबोला (Martyr Chandrashekhar Harbola) , बैच संख्या 4164584 का 38 साल बाद पार्थिव शरीर बर्फ के नीचे बरामद हुआ है। इसकी सूचना जैसे ही उनकी पत्नी को मिली, वह फूट फूटकर रो पड़ीं। तमाम स्मृतियां जो धूंधली हो रही थीं फिर से ताजा हो गईं। शहीद का परिवार दुख और गर्व में डूबा हुआ है। आगे पढ़े…
पत्नी को मिली थी 18 हजार रुपये ग्रेच्युटी
आपरेशन मेघदूत (Operation Meghdoot) के काफी वर्षों तक उन्हें तलाशने की कोशिश की गई थी। लेकिन जब लंबे समय बाद उनका कोई पता नहीं चला तो उन्हें शहीद घोषित कर दिया गया था। उस समय उनकी पत्नी को 18 हजार रुपये ग्रेज्युटी और 60 हजार रुपये बीमा के रूप में मिले थे। हालांकि तक परिवार के किसी सदस्य को नौकरी आदि सुविधाएं नहीं मिलीं थीं।
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