Big News : खतरे की घंटी है उत्तराखंडियों का रिवर्स पलायन ! सिर्फ एक माह में गांव लौटे 91 हजार से अधिक प्रवासी, क्रम लगातार जारी, अल्मोड़ा और पौड़ी में सर्वाधिक घर वापसी, आर्थिक संसाधन हीन हो गये सैकड़ों परिवार
सीएनई रिपोर्टर उत्तराखंड
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बाद से बाहरी प्रदेशों में रह रहे उत्तराखंड मूल के प्रवासियों की लगातार घर वापसी हो रही है। महानगरों में लगे कोविड कर्फ्यू के बाद से बहुत से लोग बेरोजगार हो चुके हैं। अल्मोड़ा जनपद में घर वापसी करने वालों की सर्वाधिक संख्या है, जबकि दूसरे नंबर पर पौड़ी जिला आता है।
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आपको याद होगा कि विगत वर्ष मार्च माह से कोरोना संक्रमण फैलने के बाद से ही उत्तराखंड से पलायन कर चुके हजारों उत्तराखंडियों का रिवर्स पलायन शुरू हो गया था, लेकिन जब अनलॉक की प्रक्रिया चली तो घर लौटे प्रवासियों ने वापस महानगरों में लौटना शुरू कर दिया। हालांकि इनमें से बहुतेरों ने यही खेती—बाड़ी या फिर कुछ अन्य रोजगार प्रारम्भ कर दिया था।
अब एक बार फिर प्रवासियों के रिवर्स पलायन से एक अलग ही किस्म की दिक्कत पैदा हो गई है। दरअसल, दिल्ली—मुंबई—महाराष्ट्र आदि से आये यह प्रवासी रोजगार छिन जाने के बाद बेरोजगार हैं। जो पिछले साल भी यहां लौटे थे उनका भी काम—धन्धा कुछ खास नही चल रहा है। जिसका सबसे बड़ा कारण यही है कि कोरोना की दूसरी घातक लहर से उत्तराखंड के तमाम ग्रामीण व शहरी क्षेत्र प्रभावित हैं। रेस्टोरेंट आदि का व्यावसाय भी ठप पड़ा हुआ है। खेती—बाड़ी अधिकांश पर्वतीय जनपदों में सिंचाई के साधनों के अभाव जंगली जानवरों के आतंक के चलते खत्म है।
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आपको बता दें कि बीते सिर्फ एक माह में अन्य राज्यों से यहां 91 हजार प्रवासी अपने गांव लौट चुका है। पंचायती राज विभाग आज की तारीख तक आंकड़े ही जुटा रहा है और इनकी संख्या तो अगले एक माह में इससे भी दोगुनी तक हो जाने की सम्भावना है। विभाग ने जो विवरण एकत्रित करना शुरू किया है उसकी तारीख 21 अप्रैल है।
प्रवासियों के जो आंकड़े हमारे पास उपलब्ध हो पाये हैं उसके अनुसार —
अल्मोड़ा में 29 हजार 415, पौड़ी में 20 हजार 743, नैनीताल में 7042, टिहरी में 6 हजार 167, देहरादून 5 हजार 956, उधम सिंह नगर में 4 हजार 460, हरिद्वार में 3 हजार 614, पिथौरागढ़ में 3 हजार 326, चंपावत में 2867 , बागेश्र में 2 हजार 818, चमोली 2 हजार 480, रूद्रप्रयाग में 1 हजार 760 तथा उत्तरकाशी में 704 प्रवासी वापस अपने गांव लौट आये हैं।
अब बड़ा सवाल यह है कि इन घर लौटे प्रवासियों के रोजगार के क्या साधन उपलब्ध हो सकते हैं ? घर वापसी करने वाले इन उत्तराखंडियों ही नही बल्कि इनके परिवार के भरण—पोषण की भी दिक्कत है। चूंकि बहुत से परिवार ऐसे हैं, जिनके चूल्हे महानगरों में रहने वाले अपने युवा सदस्य द्वारा भेजी जाने वाली मासिक आर्थिक मदद से जलते थे। निश्चित रूप से अब पहाड़ों में आने वाले समय में गरीबी का स्तर और अधिक विकराल रूप ले सकता है।
सरकार को चाहिए कि वह जल्द इस हेतु कोई नीति निर्धारित करे और रोजगार के नए अवसरों को उत्पन्न किया जाये।
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