— आनंद नेगी —
- केजरीवाल ने कर्नल कोठियाल के सहारे उत्तराखण्ड की राजनीति में रखा कदम
- राजनैतिक दलों के बीच फुटबाल बनकर रह गई उत्तराखण्ड वासियों की आशायें और उम्मीदें
- आंचलिक राजनीति के ध्वजवाहक नेता और उनके समर्थक लगभग हाशिये पर
- अगुवाई करने वाले सभी लोग अब उम्र दराज
- कांग्रेस और भाजपा में जाकर विधायक और मंत्री बन गये उक्रांद के बहुत से महत्वाकांक्षी नेता, कार्यकर्ता भी शिफ्ट
- उक्रांद और अन्य आंचलिक दलों को भी आत्म चिंतन करने की आवश्यकता
लेखक आनंद नेगी अल्मोड़ा जनपद के वरिष्ठ पत्रकार हैं। दैनिक समाचार पत्र ‘अमर उजाला’ में उप संपादक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विषयों पर सारगर्भित लेखन इनकी विशेषता है। विभिन्न स्तरीय पत्र—पत्रिकाओं में इनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं। वर्तमान में सी.एन.ई. मीडिया हाऊस के उपक्रम क्रिएटिव न्यूज एक्सप्रेस CNE से जुड़ चुके हैं। — सं.
उत्तराखण्ड में भाजपा और कांग्रेस के परम्परागत वर्चस्व को चुनौती देने के लिये आम आदमी पार्टी ने अपने अलग अन्दाज में अभियान का आगाज किया है। काफी हद तक उसे इसमें सफलता भी मिल रही है। लोग इस दल की बात सुन रहे हैं। पहाड के सुदूरवर्ती गांवों तक आम आदमी पार्टी की चर्चा भी होने लगी है। पार्टी के लुभावने वादों पर लोग अपने-अपने ढंग से प्रतिक्रिया भी दे रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस ही नही, उक्रांद जैसे क्षेत्रीय दल भी आम आदमी पार्टी पर हमले कर रहे हैं।
आप के दखल को लेकर यह तल्खी उत्तराखण्ड में परम्परागत दलों के समर्थकों में भी देखी जा रही है। अपने चुनाव अभियान में जब इस पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार कर्नल अजय कोठियाल कहते हैं कि भाजपा और कांग्रेस के नेता जब हमारी आलोचना कर रहे हैं, तो यह हमारे लिये उत्साहजनक स्थिति है, जाहिर है कि हम सही दिशा में बढ रहे हैं, और हमारा आधार लगातार मजबूत हो रहा है। हालांकि उत्तराखण्ड के राजनैतिक पटल पर अभी काफी कुछ घटित होने का अन्देशा है, जिससे यहां के चुनावी समीकरणों पर असर पड़ेगा। केजरीवाल के पास यहां खोने के लिये कुछ नहीं, लेकिन उन्हें हासिल क्या होगा यह बडा सवाल है।
उत्तराखण्ड के राजनैतिक मिजाज को समझने के लिये हमें पीछे जाना होगा। दो दशक पूर्व जब राज्य का गठन हुआ था, तब अविभाजित यूपी में भाजपा की सरकार थी और नवजात उत्तराखण्ड में भाजपा की अन्तरिम सरकार का गठन हुआ। वरिष्ठ नेता स्व नित्यानन्द स्वामी ने राज्य की बागडोर संभाली, लेकिन अगले ही साल आम चुनाव हुये और राज्य का गठन करने वाली भाजपा को उत्तराखण्ड की जनता ने खारिज कर दिया। कांग्रेस ने स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाई। पंडित नारायण दत्त तिवारी उत्तराखण्ड के अभी तक के एकमात्र मुख्यमंत्री हैं, जिन्हें पूरे पांच साल तक सरकार चलाने का मौका मिला। इसके बाद आज तक बारी-बारी से भाजपा और कांग्रेस को लोगों ने राज्य की बागडोर सौंपी। हर सरकार में मुख्यमंत्री बदले जाने के कारण राजनैतिक अस्थिरता और अनिश्चितता का माहौल बना रहा। तब भी जबकि केन्द्र में सत्तारूढ भाजपा को डबल इंजन सरकार के नाम से यहां के लोगों ने 70 सदस्यों वाली विधान सभा में 57 विधायक दिये, और विपक्ष का सूपड़ा ही साफ कर दिया। हिमांचल की तरह उत्तराखण्ड की राजनीति में भी एक बात और उभरकर सामने आई कि यहां क्षेत्रीय दलों का उभार नहीं हो सका।
राज्य आन्दोलन की अगुवाई करने वाले उत्तराखण्ड क्रांति दल को पहले चुनाव में चार सीटें मिली, इसके बाद दल का बोट बैंक कम होता चला गया। क्षेत्रीय दलों केे नेताओं के बीच आपसी मतभेद, वर्चस्व की होड़ और किसी भी तरह सत्ता में बने रहने के लालच में संगठन और जमीनी कार्यकर्ताओं को भुला दिया गया। उक्रांद के बहुत से महत्वाकांक्षी नेता कांग्रेस और भाजपा में जाकर विधायक और मंत्री बन गये। कार्यकर्ता भी शिफ्ट हो गए। राज्य आन्दोलन और जन संघर्षों के साथ जीवन का अधिकतर समय व्यतीत करने वाले उक्रांद, उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी और लोक वाहिनी सहित तमाम दलों के साथ इस राज्य के लोग जनसंघर्षों में भले ही जुड़े रहे, लेकिन चुनाव के वक्त लोग भाजपा या कांग्रेस के साथ खड़े होते रहे। आरम्भ में बहुजन समाज पार्टी ने तराई में भारी दम खम दिखाया था, लेकिन अब वहां भी दो प्रमुख दलों के बीच ध्रुवीकरण हो गया है।
उत्तराखण्ड में आंचलिक राजनीति के ध्वजवाहक नेता और उनके समर्थक लगभग हाशिये पर हैं। उत्तराखण्ड आंदोलन की अगुवाई करने वाले सभी लोग अब उम्र दराज हो गये हैं। राज्य की मौजूदा युवा पीढ़ी को राज्य आंदोलन और उसके नायकों के बारे में कुछ भी पता नहीं है, और ना ही युवा पीढी की दिलचस्पी इसमें है। गैरसैण राजधानी, पलायन, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और खेतों पर जंगली जानवरों के हमलों जैसी ज्वलंत समस्याएं समय के साथ गम्भीर होती जा रही हैं। लोगों का मानना है कि इन मसलों को हल करने में अभी तक की सरकारों ने कोई गंभीरता नहीं दिखाई है। पलायन, रोजगार और आंचलिक पहचान के संकट को भू कानून के साथ जोड़कर देखा जा रहा है। लेकिन क्षेत्रीय दलों का आधार लगातार खिसक जाने के कारण यहां भाजपा और कांग्रेस से हटकर तीसरे विकल्प की उम्मीदें लगभग धराशायी हो चुकी हैं और इन मुद्दों पर भी दोनों ही दलों के मध्य वार पलटवार चलता रहता है। उत्तराखण्ड वासियों की आशायें और उम्मीदें जब राजनैतिक दलों के बीच फुटबाल बनकर रह गई हैं, तो परम्परागत दलों की राजनीति से मोहभंग स्वाभाविक है।
निःसन्देह उत्तराखण्ड में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो राज्य में तीसरे विकल्प की जरूरत महसूस करते हैं। उत्तराखण्ड में जन संघर्षों के साथ उभरे क्षेत्रीय दलों के नेताओं को जनता ने जिस तरह नकार दिया, यह काफी आश्चर्यजन है और हताश कर देने वाली स्थिति है। इसके विपरीत राज्यवासियों ने कई मौकों पर ऐसे लोगों को अपना भाग्यविधाता बनाकर भेजा है, जिन्हें शायद कभी इसकी उम्मीद रही होगी। ऐसी सम्भावनाओं के मध्य जब लोग क्षेत्रीय दलों की बात तो करते हैं, लेकिन साथ ही यह भी जोड़ देते हैं, उत्तराखण्ड क्रांति दल कमजोर और आधार विहीन है। तब उक्रांद और अन्य आंचलिक दलों को भी आत्म चिंतन करने की आवश्यकता है। हालांकि अब चुनाव को काफी कम समय रह गया है, और आत्म चिंतन से तुरन्त बडे़ फायदे की उम्मीद नहीं है।
उत्तराखण्ड की राजनीति में तीसरे विकल्प की संभावनाओं को समझते हुए आम आदमी पार्टी ने दस्तक दी है। अरविन्द केजरीवाल ने 300 यूनिट मुफ्त बिजली की गारंटी के साथ अपना राजनैतिक अभियान शुरू किया और रोजगार की गारंटी के साथ युवाओं को साधने का दांव चला। आप ने गढवाल राईफल रेजीमेंट के रिटायर्ड कर्नल अजय कोठियाल को आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करते हुये उत्तराखण्ड में फौजी मतदाताओं को साधने के साथ ही भाजपा के राष्ट्रवाद की काट ढूंढने की कोशिस की है। केजरीवाल ने उत्तराखण्ड को हिन्दुओं की आध्यात्मिक राजधानी बनाने का वायदा करके भाजपा की धार्मिक ध्रुवीकरण और हिंदुत्व की रणनीति को चुनौती दी है। आम आदमी पार्टी अपने प्रवक्ताओं और मीडिया सैल के मध्य से भाजपा की नाकामियों को उजागर कर रही है। भाजपा के शासन में हुई कथित गड़बड़ियों को मुद्दा बनाकर जनता के बीच प्रचारित कर रही है।
वहीं कांग्रेस के आंतरिक मतभेदों का हवाला देते हुए आम आदमी पार्टी उस पर ईमानदार विपक्ष का फर्ज नहीं निभा पाने की भी तोहमत मढ़ रही है। सोशल मीडिया पर पार्टी की सक्रियता काफी बढ गयी है। स्थानीय मीडिया ही नहीं मुख्य धारा के मीडिया में भी आप को काफी जगह मिल रही है, जबकि उत्तराखण्ड के जमीनी सरोकारों के साथ जुड़े उत्तराखण्ड क्रांति दल को मौजूदा दौर के मीडिया ने खास तबज्जो नहीं दी। आम आदमी पार्टी का इतिहास अधिक पुराना नहीं है। दिल्ली के जन्तर मन्तर पर तत्कालीन मनमोहन सरकार के खिलाफ हुए विशाल आन्दोलन की अगुवाई करने वाले अधिकतर लोग अपने-अपने सियासी रास्तों पर हैं। इन आन्दोलनकारियों में अरविन्द केजरीवाल देश की राजनीति में सबसे अधिक सफल और सशक्त होकर उभरे हैं। दिल्ली में शीला दीक्षित की 15 सालों की सरकार को उखाड़ने के बाद उन्होंने दो चुनावों में जिस तरह से भाजपा के विजय अभियान को राजधानी में रोका और शानदार विजय हासिल की, उसके चलते देश भर में उनकी पहचान कायम हुई। उत्तराखड की आबादी का एक बड़ा हिस्सा दिल्ली में रहता है,जिसके चलते केजरीवाल और उनके दल को पहाड़ के सुदूरवर्ती उच्च हिमालयी क्षेत्र तक भी पहचान की कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन राजनीतिक जड़ें जमाने के लिये इस पहचान का कोई खास महत्व नहीं है, जब तक कि लोगों का भरोसा नहीं जीता जाये।
लोगों का दिल जीतने के लिये आम आदमी पार्टी ने अभी तक जो घोषणायें की हैं। वह लगभग कांग्रेस और भाजपा के लुभावने आश्वासनों की तरह ही हैं। उनमें पहाड़ के गांवों की पीड़ा ध्वनित नहीं होती। पलायन, खेती बाड़ी की सुरक्षा और शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे अहम मसलों पर यह पार्टी लोगों से क्या कहेगी, यह देखना होगा। उत्तराखण्ड में बिजली अधिक महंगी नहीं है, खासकर पहाड़ के लोगों के लिये यह वायदा अधिक प्रभावकारी शायद नहीं होगा। रोजगार के वादों पर यह पार्टी कैसे लोगों का विश्वास अर्जित करेगी यह भी भविष्य में पता चलेगा। पार्टी को अपने संगठन की शुरूआत यहां जीरो से करनी है। कांग्रेस और भाजपा के किसी नाराज नेता का इन्तजार करने के बजाय कर्नल कोठियाल जैसे साफ सुथरी छवि वाले सैन्य अधिकारी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर केजरीवाल ने अच्छी शुरुआत की है। कर्नल कोठियाल को सीमाओं पर सैन्य अभियानों का सफल नेतृत्व करने के लिये कई वीरता पदक मिले हैं। उत्तरकाशी स्थित नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्राचार्य रहते उनका युवाओं से गहरा जुड़ाव रहा है, और यूथ फाउंडेशन के माध्यम से भी खासकर अपने क्षेत्र में उन्होंने युवाओं के बीच पैठ बनाई है। यही कारण है कि राजनैतिक मंचों पर कोठियाल सैन्य अधिकारी के रूप में अपनी नेतृत्व क्षमता पर भरोसा जताते हुये यह कहकर उत्तराखण्ड की परम्परागत राजनीति को खारिज करते हैं कि उन्हें राजनीति नहीं आती, लेकिन उत्तराखण्ड के नव निर्माण का जज्बा उनके पास है, और पार्टी के पास इसका पूरा रोड मैप है। दलों के पक्ष में माहौल बनाने के लिये चुनाव से बेहतर अवसर कुछ नहीं हो सकता।
केजरीवाल कर्नल कोठियाल के सहारे उत्तराखण्ड की राजनीति में कदम रख रहे हैं। चुनाव को अधिक समय नहीं है। आम आदमी पार्टी का अभी प्रवेश ही हुआ है, जिस तरीके से आम लोगों की प्रतिक्रिया आ रही है, उसे देखकर लगता है कि भविष्य में आम आदमी पार्टी उत्तराखंड की राजनीति में स्थापित हो सकती है। अगर ऐसा हुआ तो राज्य में कांग्रेस और भाजपा को विकल्पहीन मानने का दो दशकों का मिथक टूट जायेगा। राज्य में पहली बार तीसरे विकल्प की संभावनाएं मजबूत होंगी।
आम आदमी पार्टी का सदस्यता अभियान अभी गांव तक नहीं पहुंचा है। विधानसभा चुनाव में अब अधिक समय शेष नहीं है। विधानसभा चुनाव में पार्टी क्या गुल खिलाएगी। भाजपा और कांग्रेस के खेल को किस तरह से बिगाड़ेगी, पार्टी को इस चुनाव में क्या हासिल होगा। यह सब कुछ भविष्य के गर्भ में है। भाजपा और कांग्रेस के अंदर जिस तरीके से असंतोष के स्वर उभर रहे हैं उसका असर भी चुनाव पर पड़ेगा। इन पार्टियों के अंदर बगावत होने की स्थिति में कई असंतुष्ट आम आदमी पार्टी का दामन थाम सकते हैं। टिकट वितरण के बाद राष्ट्रीय दलों से असंतुष्ट लोग दूसरे दलों में जा सकते हैं और आम आदमी पार्टी उनके लिए एक विकल्प हो सकती है।