⏩ एक साल में 428 हमले, 80 इंसानों की गई जान
⏩ जानिए क्या है समस्या का सटीक समाधान
सीएनई रिपोर्टर। एक दौर ऐसा भी था जब उत्तराखंड में इंसानों पर वन्य जीवों के हमलों की घटनाएं न के बराबर ही हुआ करती थी। जिन ग्रामीण इलाकों में लोग आज शाम ढले ही मारे भय के घरों के भीतर दुबक रहे हैं, वहां कभी लोग रात को खुलेआम अपने आंगन में सोया करते थे।
एक वह भी था दौर….आज डर लगता है….
सवाल यह उठता है कि आखिर बीते कुछ सालों में ऐसा क्या हो गया है कि इंसानों पर वन्य जीवों के हमले बढ़ते जा रहे हैं। रामनगर के रिजर्व टाइगर फोरेस्ट की बात करें तो इससे लगे तमाम गांवों में कोसी, चुकम, सुंदरखाल आदि में लोग एक समय में रात के समय अकेले जंगलों तक में चले जाते थे। रात को गर्मियों के सीजन में अधिकांश लोग घरों से बाहर आंगन में सोया करते थे।
आज से करीब 25—30 साल पहले तक अधिकांश गांवों में पक्के मकान नहीं थे। शौच आदि के लिए भी लोग रात को बाहर निकला करते थे। इसके बावूद वन्य जीव हमलों के मामले यदा—कदा ही सामने आते थे। वहीं, यदि आज की तारीख की बात करें तो आंकड़े डराने लगे हैं।
एक साल में ही जंगली जानवरों ने ली 80 जानें
प्राप्त जानकारी के अनुसार मौजूदा वित्तीय वर्ष में जनवरी माह तक वन्य जीवों के हमले के कुल 428 मामले प्रकाश में आए हैं। जंगली जानवरों जैसे गुलदार, बाघ, सुंअर, भालू आदि के हमलों में 80 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है, वहीं 348 लोग घायल हुए हैं।
वन मंत्री सुबोध उनियाल ने पेश किए आंकड़े
ज्ञात रहे कि गत दिनों विधानसभा में वन मंत्री सुबोध उनियाल की ओर से इस बारे में आंकड़े प्रस्तुत किए गए थे। जिसमें बताया गया है कि सिर्फ एक साल में 80 लोगों की मौत हुई और 348 लोग घायल हुए हैं। मानव—वन्यजीव के बीच संघर्ष भयानक रूप लेने लगा है।
02 करोड़ का मुआवजा बांट चुकी सरकार
मालूमात करने पर ज्ञात हुआ कि सरकार कुल 228 मामलों में वन्य जीव के हमले का शिकार हुए लोगों को अब तक चालू वित्तीय वर्ष में 02 करेाड़ का मुआवजा बांट चुकी है। इस तरह के 428 मामलों में अब तक 228 में ही मुआवजा राशि का वितरण हो पाया है। इनमें से इंसानों की मौत के 49 मामले हैं। ज्ञातव्य हो कि वन्य जीव हमले में साधरण घायल होने पर 15 हजार रुपये तथा गंभीर घायल होने पर 50 हजार रुपये, आंशिक रूप से अपंग होने पर 01 लाख तथा
पूरी अपंग होने पर 02 लाख रुपये मुआवजा राशि देय होती है।
मानव वन्य जीव संघर्ष के कारक तत्व :-
विकास की अंधी दौड़ में सिमट गए वन्य क्षेत्र
विकास की अंधी दौड़ वन्य जीवों पर बहुत भारी पड़ रही है। इंसानी बस्तियां लगातार फैल रही हैं और वन्य क्षेत्रफल लगातार कम हो रहा है। जिस कारण अब जानवर इंसानी बस्तियों की ओर रूख करने को मजबूर हैं। मिसाल के तौर पर हाथी, बाघ, तेंदुवों आदि की बात करें तो अत्यंत हिंसक वन्य जीव की श्रेणी में आते हैं। इनके बाद अगले नंबर पर भालू और जंगली सुअरों का आतंक रहता है।
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क्या कहते हैं जीव विज्ञानी
जीव विज्ञानी बताते हैं कि एक बाघ, हाथी, गुलदार आदि को एक बड़ा क्षेत्रफल स्वतंत्र विचरण के लिए चाहिए। यह जीव अपनी सीमा रेखा स्व—म़ूत्र से तय करते हैं। आपने देखा होगा कि अकसर वन्य जीव एक लंबा चक्कर लगाया करते हैं। हाथियों का तो एक स्थान से दूसरे स्थान पर कई—कई किलोमीटर तक भ्रमण पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है।
अब ऐसे में जब इंसान जंगलों को काट अपनी मानव बस्ती का विस्तार करता है तो वह वन्य जीवों के इलाकों में अवांछित अतिक्रमणकारी होता है। वन्य जीव अपने इलाके में घुसे मानव को अतिक्रमणकारी ओर एक चुनौती के रूप में लेते हैं। यही कारण है कि विशेष तौर पर हाथी कई बार मानव बस्तियों में हमला तक कर देते हैं।
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वन्य जीव के संदर्भ में वर्तमान कानून
भारत सरकार ने वन संपदा और वन्य जीव संरक्षण के लिए पर्याप्त कानूनों का सहारा लिया है। वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के प्रावधानों के तहत वन्यजीवों को पर्याप्त अधिकार दिए गए हैं। यही नहीं, प्रावधानों के तहत संरक्षित क्षेत्र तैयार किए गए हैं जिनमें देश भर में राष्ट्रीय उद्यानों, अभयारण्यों, महत्वपूर्ण वन्यजीवों के आवास शामिल हैं ताकि वन्यजीव और उनके निवास सुरक्षित हो सकें।
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कैसे रुकेगा मानव—वन्य जीव संघर्ष
➡️ मानव और वन्य जीव संघर्ष को रोकने के लिए मौजूदा सरकारों को बजट का प्रावधान बढ़ाना होगा। वर्तमान में सरकारी अमला बजट का रोना रोकर वन्य जीव संरक्षण और मानव को हमलों से बचाने के पर्याप्त उपाय ही नहीं कर पा रहा है।
➡️ इसके अलावा संरक्षित वन्य क्षेत्रों से लगी मानव बस्तियों क अन्यत्र स्थानान्तरण की प्रक्रिया भी करनी होगी। किंतु मौजूदा दौर में इस दिशा में कोई भी सार्थक प्रयास नहीं हो रहे हैं।
➡️ वनों के अवैध कटान पर अंकुश लगना चाहिए। देखा गया है कि पूंजीपति व प्रभावशाली वर्ग कानून का सहारा लेकर अवैध कटान को वैध करवा लेता है और होटल, रिसोर्ट, धर्मस्थल, आश्रम आदि के नाम पर वनों का अंधाधुंध कटान कर दिया जाता है। कानून भी कटान कर वनों को उजाड़ने वालों के खिलाफ काफी कमजोर नजर आता है। अतएव इस दिशा में सख्त कानून बनने चाहिए।
➡️ अवैध शिकार पर रोक लगाने की दिशा में भी प्रयास होने चाहिए। देखा गया है कि जंगलों में स्वाभाविक भोजन की कमी के चलते भी वन्य जीव इंसानों को अपना शिकार बनाते हैं। बाघ, तेंदुवे आदि का भोजन माने जाने वाले हिरण, सांभर, जंगली मुर्गियों आदि के अवैध शिकार से वन्य जीवों का भोजन छिन गया है। जिस कारण भी वह इंसानों पर हमला करते हैं।
निष्कर्ष : मानव वन्य जीव संघर्ष को रोकने के लिए प्रदेश व केंद्र सरकार को मिलकर सार्थक प्रयास करने चाहिए। जब तक कोई ठोस कानून नहीं बनेगा तब तक मानव और वन्य जीव संघर्ष की घटनाएं लगातार बढ़ती जायेंगी।