अद्भुत : पूरी हुई तलाश, कैमरे में कैद दुर्लभ हिम तेंदुआ और लाल लोमड़ी !

✒️ टीम की अथक मेहनत लाई रंग सीएनई डेस्क। पिछले 06 सालों से भारत—चीन सीमा से लगे उच्च हिमालयी हिस्सों/दारमा घाटी में हिम तेंदुआ समेत…

Snow Leopard & Red Fox

✒️ टीम की अथक मेहनत लाई रंग

सीएनई डेस्क। पिछले 06 सालों से भारत—चीन सीमा से लगे उच्च हिमालयी हिस्सों/दारमा घाटी में हिम तेंदुआ समेत अन्य दुर्लभ वन्य जीवों की खोज में जुटी ‘द माउंटेन राइड’ की टीम को इस दफा बड़ी सफलता मिली है। इसी माह के पहले सप्ताह में टीम के सदस्य उस वक्त खुशी से फूले नहीं समाये, जब उन्होंने वह नजारा देखा, जिसका वह काफी समय से इंतजार कर रहे थे। यह पल था कि उन्हें दुर्लभ हिम तेंदुआ व अन्य प्राणियों के दर्शन हुए और हिम तेंदुआ व लाल लोमड़ी उनके कैमरों में कैद हुए।

टीम की अथक मेहनत लाई रंग

Rare snow leopard, red fox and other animals caught on camera : द माउंटेन राइड के टीम लीडर जयेंद्र सिंह फिरमाल एवं सदस्य दिनेश बंग्याल व सोमी सिंह दारमा घाटी (पिथौरागढ़) के उच्च हिमालयी क्षेत्रों करीब 06 वर्षों से हिम तेंदुओं समेत अन्य दुर्लभ वन्य प्राणियों की खोज में जुटे हैं। अपनी योजना के अनुसार यह फरवरी प्रथम सप्ताह में दुर्लभ वन्य प्राणियों की मौजूदगी का पता लगाने दारमा घाटी पहुंची। इसके लिए कई कष्ट झेलते हुए टीम ने इस दुर्गम क्षेत्र में करीब 35 किलोमीटर की पैदल यात्रा की। इसी बीच टीम को 4 व 5 फरवरी, 2023 की शाम को दुर्लभ हिम तेंदुए के दर्शन हो गए। इससे टीम की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। टीम के सदस्यों ने हिम्मत जुटाई और 20—25 मीटर की दूरी से इनकी फोटो अपने कैमरे में कैद करने में सफलता प्राप्त कर ली। इतना ही नहीं वीडियो भी बना डाला।

06 साल में सबसे खुशी का पल

द माउंटेन राइड के टीम लीडर जयेंद्र सिंह फिरमाल का कहना है कि उन्हें हिम तेंदुए के साथ ही क्षेत्र में दुर्लभ रेड फॉक्स, हिमालयी थार, ब्लू शीप तथा कुछ अन्य वन्य जीवों के दर्शन हुए। टीम ने उनकी भी फोटो खींची है और वीडियो बनाई। श्री फिरमाल कहते हैं कि गत 06 वर्षों में यह पल सबसे अधिक खुशी का मौका था। उन्होंने कहा है कि दारमा घाटी के 8-10 हजार फुट की ऊंचाई पर बसे गांवों के इर्द—गिर्द हिम तेंदुए व अन्य प्राणियों की मौजूदगी का पता चला है।

इस क्षेत्र में पहली बार कैमरे में कैद हुए दुर्लभ प्राणी

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारत—चीन सीमा से लगे दारमा घाटी के दारमा, व्यास व चौंदास लैंडस्केप में हिम तेंदुएं व कुछ अन्य दुर्लभ प्राणी पहली बार कैमरे में कैद हो पाए हैं। इससे पहले इस क्षेत्र में इन प्राणियों की मौजूदगी की बात कही जाती थी। अब द माउंटेन राइड के अथक प्रयास से इनकी मौजूदगी का प्रमाण सामने आ गया है।

जानिये ‘हिम तेंदुए’ की महत्वपूर्ण जानकारी

भारत सरकार ने स्नो लेपर्ड की पहचान उच्च हिमालय की एक प्रमुख संरक्षित प्रजाति के रूप में की है। International Union for Conservation of Nature (IUCN) के अनुसार हिम तेंदुओं की पूरे विश्व में अनुमानित संख्या 4 हजार 80 से लेकर 6 हजार 590 के बीच हैं, हालांकि निश्चित संख्या को लेकर आज भी मतभेद बने हुए हैं। हिम तेंदुए का शावक का जन्म काफी विलंब से होता है। मादा का गर्भ काल 90 से 100 दिनों का होता है। जिसमें महज वह 02-03 शावकों को जन्म देती है। हिम तेंदुए वर्तमान में मात्र अफगानिस्तान, भूटान, चीन, भारत, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, नेपाल, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उजबेकिस्तान में दिखाई देते हैं।

हिम तेंदुआ और तेंदुए में नाम एक होने के बाजवूद इनमें आपसी कोई संबंध नहीं है। हिम तेंदुआ आकार में अन्य तेदुओं से छोटा होता है। हिम तेंदुओं की औसत आयु 12 से 17 साल होती है। नर का वजन 70 किग्रा तक होता है, जबकि मादा 50 किलोग्राम तक होती है। सामान्य तेंदुओं द्वारा इंसानों को मारे जाने से बहुत से मामले हैं, लेकिन हिम तेंदुए ने किसी इंसान की जान ली हो, इसका आज तक कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिला है। उत्तराखंड प्रदेश में जब सर्दियों में बर्फ़बारी ज्यादा होती है, तो हिम तेंदुए तीन हजार मीटर तक पहाड़ से नीचे चले आते हैं। इनके प्रमुख शिकार या भोजन श्रृंखला में भरल (ब्लू शीप), मस्क डियर, हिमालयन थार जैसे जीव होते हैं।

हिम तेंदुआ अपने अस्तित्व को बचाने के लिए कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। जलवायु परिवर्तन भी इसका एक कारण है। भारत में हिम तेंदुओं को बचाने के लिए पहली परियोजना साल 2009 में शुरू की गई थी। वर्तमान में ‘हिमाल संरक्षक’ अक्तूबर 2020 से हिम तेंदुओं की रक्षा के लिये शुरू किया गया, जो एक सामुदायिक स्वयंसेवक अभियान है। भारत वर्ष 2013 से वैश्विक हिम तेंदुआ एवं पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण (GSLEP) कार्यक्रम का हिस्सा बन चुका है।

लाल लोमड़ी (रेड फॉक्स) की खासियत

लाल लोमड़ी (रेड फॉक्स) सामान्य लोमड़ियों से न केवल कद-काठी में बड़ी होती हैं, बल्कि इनका व्यवहार अधिक आक्रमक होता है। यह मुख्य रूप से उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया के अधिकांश भागों व उत्तरी अफ्रीका के कुछ हिस्सों में काफी संख्या में निवासरत हैं। लोमड़ी की इस प्रजाति को विश्व की 100 सबसे खराब आक्रामक प्रजातियों की सूची में शामिल किया गया है। लाल लोमड़ी की एक विशेषता यह भी है कि यह अपने को नए वातावरण में तेजी से ढाल लेती है। लाल लोमड़ी अन्य अपनी अन्य लोमड़ी प्रजातियों के विपरीत छोटे जानवरों को मारने की प्रवृत्ति रखती है। उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों में भी कभी यह काफी संख्या में पाई जाती थी, लेकिन काफी सालों से लुप्तप्राय: सी हो चुकी है। नैनीताल के चिड़ियाघर में इन्हें देखा जा सकता है।

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नीचे देखिये हिम तेंदुवे और यॉक की लड़ाई का शानदार वीडियो –

उत्तराखंड में यहां कैमरे में कैद हुआ हिम तेंदुआ

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