CNE Special: राज्यपाल एवं पूर्व सीएम कोश्यारी के गृहक्षेत्र के लोगों की जिंदगी ट्राली के सहारे, तीन साल से रामगंगा पर नहीं बना छह हजार की आबादी का पुल, नदी के ऊफान की भेंट चढ़ गया था साढ़े चार दशक पुराना पैदल पुल

दीपक पाठक, बागेश्वर
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के गृह क्षेत्र के लोगों की जिंदगी पिछले तीन साल से ट्रॉली के सहारे चल रही है। रामगंगा नदी में बना झूलापुल वर्ष 2018 में नदी के तेज बहाव की भेंट चढ़ गया था। इसके बाद नये पुल की मंजूरी मिली, लेकिन तीसरी बरसात आ गई और पुल का आज तक पता नहीं है। कामचलाऊ व्यवस्था के लिए लोनिवि ने ट्राली लगाई और भी रामगंगा से लोगों को यही ट्राली पार लगा रही है। ग्रामीण बताते हैं कि अब इस ट्राली की रस्सियां ढीली पड़ जाने से खतरे का संकेत देने लगे हैं। ऐसे में पुल की दरकार बढ़ गई है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 में कपकोट तहसील की महरगाड़ घाटी में अतिवृष्टि ने भारी क्षति पहुंचाई थी और रामगंगा नदी ने ऊफान पर आकर भारी भूकटाव किया। इसी ऊफान की लपेट में आकर इर्द—गिर्द सड़क, पैदल मार्ग समेत कालापैर कापड़ी गांव के भकुना पर बना पैदल पुल बह गया। पुल बहने से क्षेत्र की बड़ी आबादी के लिए रामगंगा के आरपास जाना मुश्किल हो गया। इसके बाद सत्तापक्ष व विपक्ष के नेताओं ने जायजा लिया और आश्वासन दिए। तात्कालिक व्यवस्था के तहत ग्रामीणों के नदी से आर-पार जाने के लिए लोनिवि के माध्यम से एक ट्राली लगाई गई। इस ट्राली को घिसते हुए अब तीन साल का वक्त गुजर गया। इसकी गरारी और रस्सी ढीली हो चुकी है। ऐसे में खतरा बढ़ गया है। बरसात में रामगंगा के ऊफान पर होने से खतरा कई गुना बढ़ जाता है। ग्रामीण लगातार पुल निर्माण की मांग कर रहे हैं।
छह हजार की आबादी प्रभावित
प्रभावित कालापैरकापड़ी ग्राम पंचायत के प्रधान गंगा सिंह कार्की बताते हैं कि रामगंगा नदी में पैदल पुल का निर्माण करीब साढ़े चार दशक पहले हुआ। इसी पुल के सहारे माजखेत न्याय पंचायत अंतर्गत पूर्व सीएम एवं राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के गांव नामती, चेटाबगड़, किसमिला, कालापैरकापड़ी और कनौली भकुना आदि गांवों के लोगों का आना—जाना था। इन गांवों की करीब 6 हजार की आबादी का सहारा यह पुल था। इसी से लोग करीबी नाचनी बाजार आते थे। मगर आज तक दुबारा पुल नहीं बन सका। जिससे दिक्कत का अंदाजा लगाया जा सकता है।
एकमात्र सहारा बनी ट्राली
पिथौरागढ़ जनपद अंतर्गत नाचनी कस्बे की बाजार ही उक्त गांवों की मुख्य बाजार है। बैंक, पोस्ट आफिस और घरेलू सभी आवश्यक सामग्री के लिए ग्रामीण इसी बाजार पर निर्भर हैं। पुल टूटने से कालापैरकापड़ी, भकुना, किसमिला के ग्रामीणों के ये सब कार्य एक अदद ट्राली पर टिके हैं। यही ट्राली लोगों के आवागमन का सहारा है और इसी से भारी सामान, अनाज, घास इत्यादि पार लगाई जाती है। जिससे एकमात्र ट्राली पर भारी दबाव है।
सरकार की नाकामी से जोखिम—फर्स्वाण
पूर्व विधायक ललित फर्स्वाण का कहना है कि बच्चों के स्कूल जाने से लेकर मरीज को अस्पताल ले जाने तक का साधन ट्राली ही है। विश्व बैंक से करीब 14 करोड़ की लागत से 100 मीटर पुल स्वीकृत स्वीकृत हुआ, मगर बन नहीं सका। इसे शासन-प्रशासन की नाकामी ही कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि इसके लिए क्षेत्रीय विधायक का उपेक्षित रवैया भी जिम्मेदार है। जिससे आज लोग जोखिम उठाने को मजबूर हैं।
जानबूझकर निर्माण नहीं—ऐठानी
पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष हरीश ऐठानी भी इस स्थिति को शासन-प्रशासन की नाकामी और क्षेत्रीय विधायक के उपेक्षात्मक रवैये का परिणाम बताते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि क्षेत्रीय विधायक की मंशा पूर्व मुख्यमंत्री श्री कोश्यारी की प्रतिष्ठा को धूमिल करना है। इसलिए पुल का निर्माण नहीं कराना चाहते।
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