उत्तराखंड ब्रेकिंग : यात्रीगण ध्यान दें ! टनकपुर—बागेश्वर रेल लाईन के सर्वे को मिली स्वीकृति, ब्रिटिश शासनकाल में हुआ था पहला सर्वे
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सीएनई रिपोर्टर
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत से रेल मंत्री पीयूष गोयल से बीते दिनों हुई मुलाकात के सार्थक नतीजे निकले हैं। सीएम की मांग पर रेल मंत्री ने टनकपुर—बागेश्वर रेल लाईन सर्वे कराने की स्वीकृति प्रदान कर दी है। जिससके बाद ब्रिटिश शासनकाल से उठ रही मांग के पूरा होने की एक बार फिर उम्मीद जग गई है।
आपको बता दें कि टनकपुर-बागेश्वर रेल लाईन की मांग वर्ष 1888 से की जा रही है। इस रेल लाइन की लंबाई 120 किमी होगी। अगर बागेश्वर से चौखुटिया होते हुए इसे कर्णप्रयाग तक बनाया जाये तो यह रेल लाईन 155 किमी होगी। प्रस्तावित रेल मार्ग से अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चम्पावत व चमोली गढ़वाल जनपद के सघन बसाव क्षेत्र की 30 लाख से अधिक की जनसंख्या को लाभ मिल सकता है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश शासनकाल में टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाईन की पहली पहल प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व 1888 में की गई थी। बागेश्वर रेलवे लाइन के लिए सन् 1911-12 में अंग्रेज शासकों द्वारा तिब्बत व नेपाल से सटे इस भू भाग में सामरिक महत्व व सैनिकों के आवागमन तथा वन संपदा के दोहन के लिये टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाइन का सर्वेक्षण शुरू किया था, लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के कारण उपजी दीर्घ समस्याओं के चलते यह योजना ठंडे बस्ते में चले गयी। अब सर्वे की स्वीकृति मिलने के बाद अब लोगों को भरोसा है कि जल्द ही इस पर काम हो सकेगा।
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रेल लाइन को लेकर यहां एक लंबे जन संघर्षों का भी इतिहास रहा है। वर्ष 1980 में बागेश्वर आई इंदिरा गांधी को इस मामले में ज्ञापन भी दिया गया था। 1984 में भी इस लाइन के सर्वे की चर्चा हुई, लेकिन इस पर कार्य नही हो पाया। इस पर कई बार घोषणाएं भी हुई, लेकिन जनता के हाथ हमेशा निराशा ही लगी थी। 2008 से 2010 तक आन्दोलन चले। दिल्ली में धरना प्रर्दशन भी किये गये। 2007 में तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने चारों रेल लाईनों का सर्वे कराने का निर्णय लिया, लेकिन सत्ता से बाहर होने के बाद सर्वे का कार्य फिर ठंडे बस्ते में चला गया। अब इनमें से ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाईन को हरी झंडी मिल चुकी है तो अब टनकपुर-बागेश्वर रेल मार्ग निर्माण को सर्वे करने की स्वीकृति भी अब मिल चुकी है।
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इधर इस क्षेत्र में कार्य कर चुके भूगोल विभाग के पूर्व प्रोफेसर प्रो. जीएल साह का के अनुसार यह रेल लाईन सरयू व शारदा नदी के सामान्तर होगी तथा इसकी लंबाई 137 किमी लम्बी होगी। यह रेल लाईन 67 किमी अंर्तराष्ट्रीय सीमा के समानान्तर आयेगी। इस रेल लाईन में केवल चार पुलों का निर्माण ही किया जा सकता है। इस तरह इस रेल लाईन में केवल छह स्टेशनों का निर्माण होगा। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाईन की अपेक्षा इस लाईन को भारी भरकम बजट की जरूरत भी नही है। यह लाइन प्रदेश के चंपावत, अल्मोड़ा, बागेश्वर पिथौरागढ़ जिलों में अधिक व नैनीताल, चमोली जनपद के क्षेत्रों को आंशिक रूप से लाभ पहुंचा सकती है। अतः सरकार को अलग से इस रेल लाईन को स्वीकृत करना चाहिए।
अलबत्ता देखना यह है कि केंद्र से अब हरी झंडी मिलने के बाद रेल लाइन का सर्वे कब शुरू होता है। यदि सर्वे होता है तो इस प्रस्तावित रेल लाइन से कुमाऊं व गढ़वाल मंडल के कितने जनपदों को लाभ पहुंचाया जा सकता है यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।