उत्तराखंड : करोड़पति बना दुकानों में झूठे बर्तन धोने वाला नन्हा शाहजेब

रुड़की/उत्तराखंड| कहते हैं कि देने वाला जब देने में आता है तो छप्पर फाड़ कर देता है। उसकी मर्जी हो तो सब कुछ हो सकता…

शाहजेब निकला करोड़पति

रुड़की/उत्तराखंड| कहते हैं कि देने वाला जब देने में आता है तो छप्पर फाड़ कर देता है। उसकी मर्जी हो तो सब कुछ हो सकता है। ऐसा ही कुछ रुड़की में देखने में आया है। यहां कभी भीख मांगकर तो कभी चाय की दुकानों में जूठे बर्तन साफ कर अपनी जिंदगी बसर कर रहा एक नाबालिग लड़का एक ही झटके में करोड़ों की जायदाद का मालिक बन गया है।

यह है इनसाइड स्टोरी

यह कहानी शुरू होती है साल 2019 से। जब सहारनपुर के पंडोली गांव की रहने वाली इमराना का अपने ससुराल वालों से झगड़ा हुआ। फिर वह खफा होकर अपने मायके यमुनानगर चली गई थी। इस बीच उसका पति नावेद भी उसे लेने के लिए यमुनानगर पहुंच गया। फिर इमराना अपने 08 साल के बेटे शाहजेब के साथ घर छोड़कर कलियर पहुंच गई। इसी बीच एक दु:खद हादसे में इस बालक का पिता नावेद भी चल बसा। इसके कुछ ही समय बाद कोरोना से इमराना की भी मौत हो गई। मां-बाप दोनों के मरने के बाद शाहजेब अकेला रह गया और यतीमों की जिंदगी बसर करने लगा। शाहजेब कभी किसी से भीख मांगता तो कभी कलियर में रहकर छोटी-मोटी दुकानों पर बर्तन धोने का काम करने लगा। अपना पेट पालने के लिए उसे या तो दिनभर में कुछ काम ढूंढना पड़ता या कहीं बैठ भीख मांगनी पड़ती।

दादा शाह आलम की मेहरबानियां

जहां शाहजेब यतीम हो चुका था और कलियर में रह रहा था। वहीं उसके छोटे दादा शाह आलम लगातार अपने पोते और बहू की तलाश कर रहे थे। उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से भी उन्हें खोजने का प्रयास किया। इस बीच गुरुवार को कलियर आए शाह आलम के एक दूर के रिश्तेदार ने शाहजेब को पहचान लिया। जिसकी सूचना उसने शाह आलम को दी। तब उसके दादा शाह आलम पहुंचे और अपने पोते को साथ ले गए।

अब शाहजेब है करोड़ों की संपत्ति का मालिक

खास बात यह है कि यह मासूम शाहजेब अब एक बड़ी जायदाद का हिस्सादार बन चुका है। दरअसल, जब शाहजेब की मां इमराना सहारानपुर से उसे लेकर चली गई थी तो उसके पिता नावेद की भी मौत हो गई थी। जिसके गम में उसके दादा मोहम्मद याकूब ने भी दम तोड़ दिया था। उसके दादा हिमाचल प्रदेश में सरकारी शिक्षक से रिटायर हुए थे। वह एक बड़ी जायदाद के मालिक भी रहे हैं। बेटे की मौत के बाद उन्होंने अपनी बहू और पोते को तलाशने का प्रयास किया। जब सफल नहीं हुए तो अपनी आधी जायदाद पोते और आधी जायदाद दूसरे बेटे के नाम पर कर दी। वसीयत में उन्होंने साफ लिख दिया था कि जब भी उनका पोता वापस आये तो आधी जायदाद उसे सौंप दी जाए। इसके बाद वह भी चल बसे। अब शाहजेब अपने छोटे दादा के साथ घर पहुंच चुका है और उसे उसका कानूनी हक मिल गया है।

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