गोवर्धन पूजा: जब भगवान श्रीकृष्ण ने उठा लिया गोवर्धन पर्वत; पर्व के पीछे छिपी हैं अलग—अलग कथाएं!!

सीएनई, अल्मोड़ादीपावली पर्व के अगले दिन गोवर्धन पूजा की परंपरा चली आ रही है। गोवर्धन पूजा पर्व को ही अन्नकूट पर्व भी कहा जाता है।…

सीएनई, अल्मोड़ा
दीपावली पर्व के अगले दिन गोवर्धन पूजा की परंपरा चली आ रही है। गोवर्धन पूजा पर्व को ही अन्नकूट पर्व भी कहा जाता है। यह पर्व मनाया तो हर जगह जाता है, लेकिन ब्रज में इसकी अनूठी परंपरा देखी जाती है। हर साल कार्तिक मास के शुल्क पक्ष की प्रतिपदा को यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व के पीछे अलग—अलग कथाएं प्रचलित हैं।
जब एक बार भगवान श्रीकृष्ण गोप−गोपियों के साथ गायें चराने गए थे और गायों को चराते—चराते गोवर्धन पर्वत पर पहुंच गए। तब उन्होंने पाया कि गोवर्धन पर्वत के पास छप्पन प्रकार के व्यंजन रखकर गोपियां उत्सव मना रही हैं। इस उत्सव के बारे में जब श्रीकृष्ण ने पूछा, तो उन्हें गोपियों ने बताया कि मेघों के स्वामी इन्द्र को खुश करने के लिए हर साल यह उत्सव मनाया जाता है। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि इस उत्सव का महत्व तभी हो सकता है, जब इंद्र देव प्रत्यक्ष रूप में प्रकट होकर भोग लगाएं। श्रीकृष्ण ने कहा कि इंद्र की पूजा के बजाय वर्षा के लिए सभी को गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि वर्षा गोवर्धन पर्वत के कारण से होती है। इसके बाद गोपियों ने सभी व्यजंन लाकर गोवर्धन पर्वत की पूजा की तैयारी की। इंद को इस बात का पता चला और अपने अपमान से क्रोधित हो गए। गुस्से में आकर उन्होंने मेघों को गोकुल में ऐसी अथाह बारिश करने का आदेश दिया कि प्रलय की स्थिति पैदा हो जाए।
आज्ञानुसार मेघों ने बरसना शुरू किया और मूसलाधार बारिश से बचने के लिए सभी गोप—गोपियों ने श्रीकृष्ण की आज्ञानुसार अपने गायों व बछड़ों के साथ गोवर्धन पर्वत की आड़ ले ली। उन्होंने कहा कि गोवर्धन पर्वत ही मूसलाधार बारिश से उनकी रक्षा कर सकते हैं। अतिवृष्टि से गोप—गोपियों व गायों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ उंगली पर उठा लिया और सभी के ऊपर गोवर्धन पर्वत को छाता की तरह तान दिया। सभी ब्रजवासी करीब सात दिनों तक इस गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण लिये रहे। इसी बीच ब्रह्मा जी ने भगवान इन्द्र को इस बात की जानकारी दी कि अब धरती में श्रीकृष्ण जन्म ले चुके हैं और उनसे बैर लेना उचित नहीं होगा। यह सुन इन्द्र को लज्जा आई और वह प्रकट होकर श्रीकृष्ण से माफी मांगने लगे। तभी भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों से हर साल गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट पर्व मनाने का आह्वान किया। कथा के अनुसार तभी से गोवर्धन पर्व मनाने की परंपरा चल पड़ी।
एक अन्य लोककथा के अनुसार गोवर्धन पूजा पर्व को प्रकृति से जोड़ा गया है। लोककथा के अनुसार गाय पवित्र होने के साथ साथ देवी लक्ष्मी का स्वरूप है। शास्त्रों के अनुसार जिस प्रकार माता लक्ष्मी सुख—समृद्धि देती है, उसी प्रकार गौ माता दूध देकर हमारे स्वास्थ्य को तंदरुस्ती प्रदान करती है और स्वास्थ्य भी बड़ा धन है। इसके अलावा गायों के बछड़े खेती के काम आते हैं। इसीलिए गौ माता को मानव जा​ति के लिए पूजनीय माना गया है। गाय के प्रति यही श्रद्धा प्रकट करने को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोर्वधन पूजा की जाती है।
गोव​र्धन पूजा के दिन भगवान को विविध व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। कई जगह पर्व पर लंगर लगाकर प्रसाद वितरण करने की परंपरा है। इस दिन गौवंशीय पशुओं को फूलमालाएं पहनाने, ​सींगों पर तेल लगाने के साथ ही टीका आदि लगाकर उनका पूजन होता है। गायों की पूजा की जाती है। गाय के गोबर से सांकेतिक गोवर्धन पर्वत बनाकर उसकी पूजा की परंपरा है। माना जात है कि इस दिन गाय की पूजा करने से सभी पाप उतरते हैं और मोक्ष प्राप्त होता है। इस प्रकार गोवर्धन पूजा का अपना अलग ही महत्व है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *