सीएनई रिपोर्टर
कोरोना काल में आमदनी कुछ गिरने पर बहुत से लोग मुहावरे के तौर पर बोल दिया करते हैं कि ‘हमारे परिवार की तो भूखे मरने की नौबत आ गई है।’….पर इनमें से शायद बहुत कम ही लोग ऐसे होंगे, जिन्होंने वास्तव में यह देखा है कि भूख से तड़पना क्या होता है ?
बावजूद इसके कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो वास्तव में भूख से मरने की कगार पर पहुंच जाते हैं, लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नही होता। ऐसा ही एक वाक्या उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ से आया है, जहां एक सामाजिक संस्था ने एक छह लोगों के एक ऐसे परिवार को रेस्क्यू किया है, जिन्होंने पिछले 15 दिनों तक अन्न का एक दाना भी नही चखा। यह पूरा परिवार सिर्फ पानी पीकर जिंदा रहा, लेकिन इनके घर पर झांकने कोई समाजसेवी तो दूर पड़ोसी तक नही गया।
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नर कंकाल में तब्दील हुए इस परिवार को जिसने भी देखा उसकी आंखों में आंसू छलक आये। दरअसल, अलीगढ़ के नगला मंदिर इलाके में एक जन सेवी संगठन ‘हैंड फॉर हेल्थ’ के सदस्यों ने एक ऐसे परिवार को बचाया है, जो भूख से मरने की कगार पर पहुंच चुका था।
संगठन के लोग जब इन प्रभावितों के घर पहुंचे तो उन्होंने पाया कि एक औरत और उसके पांच बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे। हालत इतनी खराब थी कि बेहद कमजोर पड़ चुके इस परिवार के सदस्य कुछ बोल तक नही पा रहे थे। जैसे ही इस परिवार ने देखा कि कोई उन्हें बचाने आया है तो बस इनकी आंखों से आंसू निकलने लगे और खामोश नज़रों से यह ‘मसीहा’ को एकटक निहारते रह गये।
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इसके बाद तुरंत पुलिस और स्थानीय प्रशासन को मामले की जानकारी दी गई। फिर जो कहानी सामने आई उसने सभी को हैरान कर दिया है।
जानकारी के अनुसार परिवार की यह मुखिया गुड्डी देवी है, जिसके पति बिजेंद्र की कुछ साल पहले मौत हो गई थी। पति की मौत के बाद महिला मेहनत—मजदूरी कर अपने बच्चों को पाल रही थी, लेकिन लॉकडाउन के दौरान उसे काम मिलना बंद हो गया।
इस बीच घर में रखा सब राशन—पानी भी समाप्त हो गया। कुछ समय तक महिला ने आस—पड़ोस से खाना मांग बच्चों का पेट भरा, लेकिन बाद में
पड़ोसियों ने उसे यह मदद देनी भी बंद कर दी। लिहाजा गत 15 रोज से महिला और उसके बच्चे भूखे रहे। बच्चों को जब भी भूख लगती वह पानी पी लेते, ऐसा ही मां भी करती रही।
महिला ने बताया कि उसका 20 साल का बेटा अजय भी पहले मजदूरी करता था, लेकिन उसको भी अब काम नही मिल पा रहा है। इसलिए वह भी घर पर ही बैठ गया। इस परिवार में इसके अलावा गुड्डी के अन्य बच्चे 16 वर्षीय विजय, 13 साल की अनुराधा, 10 वर्षीय दीपू और 4 साल का टीटू है।
सबसे हैरान कर देने वाला पहलू यह रहा कि यह परिवार भले ही भूख से मरने लगा, लेकिन किसी ने भी भीख नही मांगी। सब केवल पानी पीकर अपनी सांसों को बचा रहे थे। फिर भी जब ज्यादा दिन बीत गये तो भूख के मारे इनका शरीर जवाब देने लगा और पूरा परिवार घर से बाहर नही निकला। तब पड़ोंसियों को किसी अनहोनी की आशंका हुई। तब कही जाकर उन्होंने पुलिस व समाजसेवियों को सूचित किया।
इधर सामाजिक संगठन ‘हैंड्स फॉर हेल्प’ के अध्यक्ष डॉ. सुनील कुमार अपने संस्थान के सदस्यों के साथ रात गुड्डी देवी के घर पहुंचे। जिसके बाद पूरे परिवार को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। चिकित्सकों ने बतया कि परिवार के बच्चे कंकाल में तब्दील हो चुके हैं। शरीर के भीतर की सारी हड्डियां अब बाहर नजर आने लगी हैं।
इस हृदयविदारक घटना के बाद अब जिला प्रशासन हरकत में आ गया है। आनन—फानन में पहुंचे प्रशासनिक अमले ने परिवार का तत्काल राशन कार्ड बनवाने व मदद देने की बात कही है। वहीं अब यह ख़बर सुनते ही इस परिवार की आर्थिक मदद करने वालों की भीड़ अस्पताल में जमा होने लगी है। देर से ही सही पर शायद अब हमारे जनप्रतिनिधि, तथाकथित समाज सेवी समझने लगे हैं कि ‘भूख’ क्या होती है और भूख से मरना क्या होता है ?
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