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पंचतत्व में विलीन हुए कैबिनेट मंत्री चंदन राम दास, नम आंखों से दी विदाई

बागेश्वर समाचार | सरयू-गोमती तथा विलुप्त सरस्वती नदी के संगम पर कैबिनेट मंत्री चंदन राम दास का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। चिता को मुखाग्नि उनके बेटे गौरव दास व भाष्कर दास ने दी।

सीएम धामी ने दी श्रद्धांजलि

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी, मंत्रियों में प्रेम चंद्र अग्रवाल, सौरभ बहुगुणा, सुबोध उनियाल, रेखा आर्या, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट, जिलाध्यक्ष इंद्र सिंह फर्स्वाण समेत कपकोट विधायक सुरेश गढ़िया आदि ने उनके पार्थिव शरीर पर पुष्पचक्र चढ़ाकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। जिलाधिकारी अनुराधा पाल व एसपी हिमांशु कुमार वर्मा ने भी पुष्पचक्र चढ़ाया।

अंतिम विदाई में जन सैलाब उमड़ा

पुलिस की टुकड़ी ने उन्हें अंतिम सलामी दी। इधर, चंदन राम दास (Chandan Ram Dass) की अंतिम विदाई में जन सैलाब उमड़ पड़ा। लोगों ने पुल, घाट, मंदिर और नुमाइशखेत मैदान से दास को श्रद्धांजलि अर्पित की। इससे पूर्व शव को दर्शन के लिए भाजपा कार्यालय मंडलसेरा परिसर पर रखा गया। वहां हजारों की संख्या में पार्टी कार्यकर्ताओं, विभिन्न संगठनों, व्यापारियों और स्थानीय लोगों ने अंतिम दर्शन किए। 10 बजे शव यात्रा निकली। जिसमें मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी शामिल हुए।

1997 में शुरू हुआ राजनीति सफर

प्रदेश की सियासत में कैबिनेट मंत्री चंदन राम दास (Chandan Ram Dass) की सादगी और सज्जनता की महक हमेशा बनी रहेगी। उनके सौम्य और मृदु भाषी व्यक्तित्व से हर कोई प्रभावित था। साथ ही पिछड़े, कमजोर और गरीब वर्ग के लिए वह एक उम्मीद की तरह थे। उनकी छवि बागेश्वर विधानसभा क्षेत्र में एक कद्दावर नेता के रूप में थी।

चंदन रामदास का राजनीति सफर 1997 में शुरू हुआ था। वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में बागेश्वर नगर पालिका अध्यक्ष बने थे। राज्य गठन के बाद 2000 में भाजपा में शामिल होकर पार्टी के लिए एक सिपाही की तरह काम किया। 2007 में पहली बार बागेश्वर से विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद उनका जीत का सिलसिला जारी रहा।

2012, 2017 के बाद 2022 में चौथी बार विधायक बने। विधायक के रूप में उन्होंने कमजोर, गरीब वर्ग के लिए काम किया। पहली बार धामी सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री का ओहदा मिला। उन्हें समाज कल्याण, परिवहन और उद्योग जैसे महकमों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उनकी प्राथमिकता गरीब व कमजोर वर्ग के कल्याण के लिए रही। बीमारी से जूझने के बाद भी जनसेवा में सक्रिय रहे। उनकी सादगी और सज्जनता के हर कोई मुरीद था।

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