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ALMORA NEWS: 40 साल पहले बनी सड़क पर अब होगा डामरीकरण, दर्जा राज्यमंत्री गोविंद पिलख्वाल ने की पहल, सीएम ने मुख्य अभियंता को दिए आदेश


सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
विकास का युग, चार दशक पुरानी सड़क और डामरीकरण आज तक नहीं। इस बात का नमूना अल्मोड़ा जिला अंतर्गत गैराड़ बैण्ड से धौलछीना तक बनी सड़क है। अब इस सड़क के डामरीकरण और जीर्णोद्धार की उम्मीद बलवती हो गई है। यह आस उत्तराखण्ड चाय विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष (राज्यमंत्री) गोविन्द पिलख्वाल के अथक प्रयासों से जगी है। श्री पिलख्वाल के पहल के बाद मुख्यमंत्री ने लोनिवि के मुख्य अभियंता को सीधे निर्देश दिए हैं कि इस सड़क पर डामरीकरण के लिए अविलंब कार्रवाई की जाए। डामरीकरण के बाद इससे एक बड़ी आबादी का यत्र-तत्र सफर बेहद आसान हो जाएगा।
पिलख्वाल के प्रयास लाए रंगः उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष (राज्यमंत्री स्तर) गोविन्द पिलख्वाल से क्षेत्रीय लोगों ने अपेक्षा की और उनके सामने यह मामला रखा। श्री पिलख्वाल ने क्षेत्रवासियों की पीड़ा को समझते हुए मुख्यमंत्री के समक्ष यह मामला प्रमुखता से रखा और उन्हें पत्र देकर सड़क के डामरीकरण एवं जीर्णोद्धार का अनुरोध किया। अब जाकर गैराड़ बैण्ड-धौलछीना सड़क के दिन बहुरने की उम्मीद जगी है। श्री पिलख्वाल के पत्र के बाद मुख्यमंत्री ने लोक निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता अल्मोड़ा को सड़क पर डामरीकरण के लिए अविलंब कार्रवाई के लिए लिखा है और कार्यवाही से अवगत कराने को भी कहा है। इससे प्रबल उम्मीद हो गई है कि श्री पिलख्वाल के प्रयासों से अब जल्द ही इस सड़क पर डामरीकरण हो जाएगा और एक बड़ी आबादी को इसका भरपूर लाभ मिलेगा।
40 साल से चल रहा डामरीकरण का इंतजारः बरेली-बागेश्वर मुख्य हाई-वे के स्थान गैराड़ बैण्ड से धौलछीना के लिए करीब 40 साल पहले बने मोटरमार्ग का डामरीकरण आज तक नहीं हो सका। चार दशक में कई सरकारें आई-गई और अलग-अलग जनप्रतिनिधि चुने गए। मगर इस सड़क पर आज तक डामरीकरण नहीं हो सका। सिर्फ कटान के बाद सालों पहले इसमें प्रथम एवं द्वितीय स्तर की सोलिंग का कार्य हुआ। इसके बाद डामरीकरण नहीं हो सका, जबकि इसकी मांग उठते रही और इससे कई इलाकों के ग्रामीणों का बड़ी लाभ पहुंचना था। क्षेत्र की दृष्टि से यह सड़क अत्यंत महत्वपूर्ण थी। यह सड़क धौलछीना, सेराघाट, बेरीनाग, गंगोलीहाट, थल, मुनस्यारी व धारचूला के लिए आवागमन आसान कराने वाली है। इससे कई किमी सफर की दूरी कम हो जाती। साथ ही अल्मोड़ा, चितई, बाड़ेछीना व धौलछीना के लिए सुगम विकल्प है। मगर डामरीकरण नहीं होने के कारण उक्त मार्ग में डामरीकरण होने से सालों बाद भी क्षेत्र के लोगों को सुविधा नहीं मिल सकी।

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