बागेश्वर ब्रेकिंग : देखो सरकार, रिश्वतखोरी से लेकर सरकारी लापरवाही के मक्कड़जाल में कैसे उलझा है आपका तथाकथित स्वरोजगार ब्रांड एंबेसडर

बागेश्वर। कांडा तहसील के यहां के कांडे कन्याल क्षेत्र में लगभग दस साल पहले बनी सड़क के मुआवजे को लेकर कागजी कार्रवाई की एवज में…

बागेश्वर। कांडा तहसील के यहां के कांडे कन्याल क्षेत्र में लगभग दस साल पहले बनी सड़क के मुआवजे को लेकर कागजी कार्रवाई की एवज में पटवारी द्वारा दो हजार रुपये की रिश्वत लेने का मामला सामने आया है। मामला रोचक इसलिए भी हो जाता है यह सब उस युवक के साथ हुआ है जो लॉक डाउन के दौरान कांडा में अपने दोस्त के साथ बारबर शॉप खोलकर चर्चा में आ चुका है। मुख्यमंत्री ने स्वयं युवक के प्रयासों को सराहा था लेकिन मदमस्त सरकारी कर्मचारी उसे किसी भी मोड़ पर बख्शने के मूड में नहीं है। कल जब उसने पटवारी से कागज देने की बात की तो पटवारी ने उसे तहसील में बुलवा लिया लेकिन यहां तहसील गेट पर बैठे आने जाने वालों की र्थमल स्केनिंग कर रहे शख्स ने उसकी थर्मल स्कैनिंग तो नहीं की उल्टे अंदर जाने के लिए उससे कोरोना निगेटिव सर्टिफिकेअ ही मांग लिया। परेशान क्या करता पटवारी को फोन मिला तो उसने उठाया नहीं आखिरकार वह वापस अपने गांव का लौट गया।
दरअसल यह सब हुआ है कांडे कन्याल गांव के पवन और उसके बड़े भाई के साथ। पवन को तो आप अच्छी तरह से पहचानते ही होंगे। यह वहीं दिव्यांग बेरोजगार है जिसने लॉक डाउन के दौरान अपने दोस्त के साथ मिलकर कांडा में बार्बर शॉप खोली थी, जिसकी मीडिया, सोशल मीडिया पर ऐसी गूंज उठी कि सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी बाकायदा अपनी फेसबुक वाल पर उसके काम व हिममत की सराहना की थी। रातों रात प्रवासियों के लिए स्वरोजगार का ब्रांड अंबेसडर बन गए पवन को पता ही नहीं चल सका कि उसका नाम प्रदेश भर में प्रवासी स्वरोजगार के रूप में हो रहा है तो उसे इस बात का पता तब चला तब सीएनई के माध्यम से ही उसने लोगों को बताा कि वह प्रवासी नहीं है और उसने तो हल्द्वानी से आगे का जहां अभी तक देखा ही नहीं है। फिर भी कोई लोन देने तो कोई इस प्रकरण को कैश करने के लिए दौड़ लगाते रहे। पुलिस ने तो सीएम के खिलाफ उस पोस्ट पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वालों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए उस पर दवाब बनाना ही शुरू कर दिया।
खैर,कथित शोहरत को पचा नहीं पाया यह गांव का सीधा सादा लड़का अपने पार्टनर के साथ समझौता तोड़कर अपनी कुर्सी उठा कर अपने गांव वापस लौट गया और अपनी ही दुनिया में खो गया। अब आगे की कहानी…
आज से तकरीबन दस साल पहले उसके गांव से होते हुए एक रोड निकली थी। नाम था कांडा—भाखड़पंत रोड़। इसमें कई ग्रामीणों की जमीनें भी कट गई थी। सरकार ने ग्रामीणों को मुआवजा देने की योजना भी बनाई। संभवत: कुछ लोगों को मुआवजा मिला भी। लेकिन कुछ ऐसे लोग भी थी जो किसी दूसरे की जमीन पर अरसे से काबिज थी, उस जमीन का मुआवजा तो मालिक को ही मिलना था लेकिन सड़क कटने से खेतों में खड़ी फसल व पेड़ पौधों का मुआवजा कब्जेदार को मिलना था, पवन के पिता जोगाराम के पास ऐसी ही कुछ जमीन थी।

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जमीन कितनी थी यह तो उन्हें आज भी पता नहीं लेकिन वे भी वर्षों से अपनी फसल व पेड़ों के मुआवजे के लिए परेशान हैं। पिछले वर्ष संभवत: नवंबर माह में उन्होंने अपने हक के लिए प्रयास दोबारा शुरू किए। चूंकि पिता जोगाराम बूढ़े हो चले थे, इसलिए इस काम को करने का बीड़ा उठाया पवन और उसके बड़े भाई ललित प्रसाद ने। ललित बताते हैं कि उन्होंने पटवारी से इस बारे में जमीन की माप बताने की लिए दरख्वास्त की । पटवारी ने बताया कि वे कुछ जमीन की माप के बारे में उसे लिख कर दे देगा, लेकिन कुछ खर्चा पानी उन्हें करना होगा। ललित के अनुसार एक दिन पटवारी और उसके साथ एक और व्यक्ति उनके गांव में आया, वे बाइक पर थे। तब उसने दो हजार रुपये इस काम के लिए उसे दिए थे। पटवारी ने उसे जमीन की माप बता देने का आश्वासन तो दिया, लेकिन ऐसा किया नहीं।

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इसके बाद लॉक डाउन लग गया और पिछले दिनों पवन ने पटवारी से फोन करके उसे जमीन की माप बताने के लिए कहा तो पटवारी ने एक दो दिन में बात करने का कहा। पवन ने फिर दो दिन पहले पटवारी को फोन किया तो उसने बताया कि वह तहसील में है और वह वहीं आ जाए। पवन जब तहील पहुंचा तो बाहर से उसने पटवारी को फोन किया लेकिन पटवारी ने फोन नहीं उठाया। पवन ने अंदर जाने का प्रयास किया तो गेट पर थर्मल स्कैंनिंग करने वाले कर्मचारी ने उसे यह कहते हुए लौटा दिया कि वह पहले अपनी कोरोना जांच की रिपोर्ट लेकर आए। तब ही अंदर जा सकेगा।
गांव का अल्पशिक्षित युवक उससे तर्क वितर्क करने के बजाए वापस लौट गया।

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बाद में उसने सीएनई के सामने अपना रोना रोया। उसने अपने बड़े भाई से भी बात कराई। जो हमारे पास रिकार्ड है। उसके बड़े भाई का कहना था कि उन्होंने उधार लेकर यह पैसे पटवारी को दिए थे लेकिन कई महिने बाद भी पटवारी उन्हें लिखकर नहीं दे रहा कि उनकी खेती कितनी जमीन पर थी।
हमने इस मामले में एसडीएम कांडा योगेंद्र सिंह से बात की तो उन्होंने बताया कि इस प्रकार के काम की कोई फीस नहीं ली जाती। और तहसील में प्रवेश के लिए कोरोना टेस्ट रिपोर्ट नहीं देखी जाती। उनका कहना था रिश्वत लेने वाले पटवारी का नाम शिकायत कर्ता उन्हें बताए और कोरोना टेस्ट रिपोर्ट मांगने वाले कर्मचारी की जानकारी उनसे मिलकर शिकायतकर्ता उन्हें बताए तो वे इस पर कार्रवाई अवश्य करेंगे।

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