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कौसानी: पूंजीतंत्र में बदल रहा देश का स्वस्थ लोकतंत्र—प्रो. आनंद

👉 अनाशक्ति आश्रम में सरला बहन स्मृति व्याख्यान, श्रद्धांजलि अर्पित
👉 मौजूदा हालातों पर चिंता, सिविल सोसायटी की एकजुटता पर जोर

सीएनई रिपोर्टर, बागेश्वर: जिले के कौसानी में सरला बहन स्मृति व्याख्यान अनाशक्ति आश्रम में शुरू हो गया है। इसका शुभारम्भ करते हुए नीमा बहिन ने व्याख्यान के औचित्य पर प्रकाश डाला और अतिथियों दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए सरला बहिन को श्रद्धांजलि अर्पित की। जिसमें देश—प्रदेश की मौजूदा हालातों पर मंथन चला और वर्तमान परिस्थितियों पर चिंता जताते हुए सिविल सोसायटी की एकजुटता को आवश्यक बताया गया। प्रमुख वक्ता प्रो. आनन्द कुमार ने कहा कि भारत में स्थापित एक स्वस्थ लोकतन्त्र को आज पूंजीतंत्र में बदल दिया गया है।

कार्यक्रम में प्रख्यात गांधीवादी नेता सरला बहिन की शिष्या राधा बहिन ने कहा कि पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक सम्पूर्ण भारत को जोड़ने वाले महात्मा गांधी पर तरह-तरह के आक्षेप लगाये जाते हैं, परंतु ये आरोप लगाने वाले लोग अपनी भूमिका नहीं बताते हैं। उन्होंने कहा कि देश में विभाजनकारी ताकतें सामाजिक विद्वेष फैला रही हैं। उन्होंने कहा कि कौसानी के रग-रग में सरला बहिन बसी हैं और लक्ष्मी आश्रम की ताकत उन्हीं की ताकत है।

अपना वक्तव्य रखते हुए महिला मंच की संयोजिका कमला पन्त ने कहा कि जिस उद्देश्य के लिये राज्य बनाने की लड़ाई लड़ी गई, वे उद्देश्य तो पूरे नहीं हुए, उल्टा राज्य में नई चुनौतियां पैदा हो गई है। उन्होंने कहा कि राजनैतिक दलों पर दबाव डालने के लिये सिविल सोसायटी का एकजुट होना होगा। हमें इस एकजुटता के लिये प्रयास करने चाहिए। उन्होंने कहा कि पहले जब जनान्दोलन होते थे, तब कांग्रेस सरकार देर—सबेर सुन जरूर लेती थी, परंतु अब आन्दोलनकारी भी सहमे हुए हैं, क्योंकि अब माहौल ही बोलने लायक नहीं रह गया है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड़ में एक ऐसा दौर भी था, जब न्यायालय के फैसले भी आन्दोलनों ने बदल डाले, उत्तराखण्ड आन्दोलन में मुजफ्फरनगर काण्ड के दोषी अनंत कुमार को बरी कर दिया गया था, मगर नये एक्ट से सरकार के खिलाफ बोलना कठिन है।

प्रमुख वक्ता के रूप में बोलते हुए जेएनयू दिल्ली से आए प्रो. आनन्द कुमार ने कहा कि हमारे देश ने स्वस्थ लोकतन्त्र की स्थापना की किन्तु आज हमारा लोकतन्त्र पूंजीतंत्र में बदल गया। वोट खरीदने व बेचने का तंत्र बनते जा रहा है। उन्होंने कहा कि लोकतन्त्र के चार स्तम्भ कहे गये हैं, परंतु वास्तव में यहां आठ स्तम्भ प्रतीत हो रहे हैं। इनमें पांचवा स्तम्भ सिविल सोसायटी, छटा स्तम्भ शिक्षा संस्थान, सातवा स्तम्भ राजनैतिक पार्टियां व आठवां स्तम्भ चुनाव है। उन्होंने कहा कि चुनाव भ्रष्टाचार की चपेट में है। जो सत्ता में है, वह चुनाव सुधार नहीं चाहता, किन्तु जब वही दल विपक्ष में होते हैं, तब सुधार की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि देश की 06 राष्ट्रीय पार्टियां सूचना अधिकार के दायरे में नहीं आना चाहते, ऐसे में अब न्याय पालिका पर भी भरोसा टूट रहा है। पत्रकारिता पर भी सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस दौर में कार्यपालिका संविदा पर चल रही है। दिल्ली विश्वविद्यालय में 05 हजार लोग संविदा पर सालों—साल से काम कर रहे हैं। सर्वोदय की संस्थाओं पर कब्जे हो रहे हैं। प्रो. आनंद ने कहा कि यदि गांधी जी राजनीति में नहीं होते, तो उनके आश्रमों में देश की चर्चा नहीं बल्कि गांधी जी का मन्दिर होता। उन्होंने कहा कि यूरोप ने कानूनों का पालन करना सीख लिया है, परंतु हमें अभी सीखना है।

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