भाषा संस्कृतिः एसएसजे विश्वविद्यालय में कुमाऊंनी भाषा विभाग खोलने के प्रयास होंगे-कुलपति, कुमाऊंनी के विकास में पहरू का योगदान सराहनीय, अल्मोड़ा में कुमाऊंनी भाषा सम्मेलन जारी

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ाजीबी पंत राजकीय संग्रहालय अल्मोड़ा में चल रहे राष्ट्रीय कुमाऊंनी भाषा सम्मेलन में शनिवार को दूसरे दिन कुमाऊंनी भाषा के उत्थान के लिए…

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
जीबी पंत राजकीय संग्रहालय अल्मोड़ा में चल रहे राष्ट्रीय कुमाऊंनी भाषा सम्मेलन में शनिवार को दूसरे दिन कुमाऊंनी भाषा के उत्थान के लिए हो रहे प्रयासों और बेहतरी के लिए उठाए जा सकने वाले कदमों पर मंथन हुआ। मुख्य अतिथि एवं सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के कुलपति प्रो. एनएस भंडारी ने कहा कि विश्वविद्यालय में कुमाऊंनी भाषा विभाग खोलने का प्रस्ताव शासन स्तर पर रखा जाएगा। सम्मेलन में दूसरे दिन कुमाऊंनी के चार साहित्यकारों को उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मान से नवाजा गया।
सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के कुलपति प्रो. नरेंद्र सिंह भंडारी ने बतौर मुख्य अतिथि दीप प्रज्वलित कर सम्मेलन का विधिवत शुभारंभ किया। अपने संबोधन में मुख्य अतिथि प्रो. भंडारी ने कुमाऊंनी भाषा के विकास के लिए निचले स्तर से कार्य करने की जरूरत बताई। कुलपति ने कुमाऊंनी साहित्यकारों और साहित्य प्रेमियों को विश्वास दिलाते हुए कहा कि वह विश्वविद्यालय में कुमाऊंनी भाषा के पठन-पाठन के लिए शिक्षकों की नियुक्ति का प्रयास करेंगे। साथ ही गढ़वाल विश्वविद्यालय की तर्ज पर अल्मोड़ा विश्वविद्यालय में कुमाऊंनी भाषा विभाग खोलने का प्रस्ताव शासन स्तर पर रखेंगे। इससे पहले सम्मेलन की शुरूआत में कुमाऊंनी साहित्यकार नवीन बिष्ट ने कुमाऊंनी भाषा में सरस्वती वंदना ’इजुली दे वरदान’ की प्रस्तुत दी।
दूसरे दिन मुख्य वक्ता के रूप में शिक्षक एवं आलोचक डा. कपिलेश भोज ने कहा कि हिंदी के विकास में जो योगदान ’सरस्वती’ मासिक पत्रिका ने दिया है, वैसा ही योगदान वर्तमान में कुमाऊंनी के विकास में ’पहरू’ मासिक पत्रिका दे रही है। उन्होंने कहा कि पहरू के प्रयासों से ही आज कुमाऊंनी में 800 से ज्यादा रचनाकार लेखन कार्य कर रहे हैं। आज कुमाऊंनी को श्रेष्ठ आलोचकों की जरूरत है। उन्होंने युवा लेखकों का आह्वान किया कि समालोचना हेतु आगे आएं। उन्होंने भाषा-संस्कृति के प्रति उदासीनता पर नाखुशी व्यक्त करते हुए कहा कि जब तक हमारी सरकार और हमारे शिक्षण संस्थान भाषा-संस्कृति के संरक्षण के लिए ठोस कदम नहीं उठाते, तब तक भाषा, साहित्य व संस्कृति का विकास संभव नहीं है।
नगरपालिका अध्यक्ष प्रकाश चंद्र जोशी ने कहा कि कुमाऊंनी साहित्यकारों को अपनी रचनाओं से लोगों स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करते हुए योग का प्रचार-प्रसार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि साहित्यकारों को अपने लेखन में सरल कुमाऊंनी भाषा का प्रयोग करना चाहिए, ताकि सभी आसानी से भावार्थ समझ सकें और कुमाऊंनी का प्रचलन बढ़े। सेवानिवृत्त शिक्षक एवं समाजसेवी केपीएस अधिकारी ने कुमाऊंनी साहित्यकारों को पाठकों की रुचि आधारित साहित्य सृजन करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि इससे हमारे पाठकों का संकट दूर होगा। संचालन करते हुए पहरू के संपादक डा. हयात सिंह रावत ने कहा कि अब उत्तराखंड की भाषा-संस्कृति संबंधी अकादमियों को जागने की जरूरत है। यदि ऐसे संस्थानों और सरकारों ने समय रहते साहित्य के विकास के लिए उचित कदम नहीं उठाए, तो जनता उन्हें कभी माफ नहीं करेगी। कार्यक्रम को अल्मोड़ा अर्बन बैंक के अध्यक्ष आनंद सिंह बगडवाल, साहित्यकार त्रिभुवन गिरी व पत्रकार नवीन बिष्ट ने भी संबोधित किया।
इन्हें सम्मान से नवाजाः कार्यक्रम में आंनद सिंह बगडवाल को बहादुर सिंह बनौला स्मृति कुमाऊंनी साहित्य सेवी सम्मान, नवीन बिष्ट को गंगा अधिकारी स्मृति नाटक लेखन पुरस्कार, डा. पवनेश ठकुराठी को भारतेंदु निर्मल जोशी कुमाऊंनी समालोचना पुरस्कार तथा ललित तुलेरा को गोविंद सिंह बिष्ट स्मृति कुमाऊंनी फिल्म समीक्षा पुरस्कार प्रदान किए गए।

कार्यक्रम में डा. ललित जलाल, तफज्जुल खान, आनंद बल्लभ लोहनी, महेंद्र ठकुराठी, शिवदत्त पांडे, कृष्णमोहन बिष्ट, जेसी दुर्गापाल, नवीन चंद्र जोशी, नीलम नेगी, शिवराज बनौला, डा. संजीव आर्या, पीसी तिवारी, माया पंत, नवीन चंद्र पाठक, प्रताप सिंह, मीनू नेगी, डा. चंद्रप्रकाश फुलोरिया, डा. नवीन भट्ट, भास्कर भौर्याल, शंकरदत्त पांडे, शशि शेखर, रूप सिंह बिष्ट समेत कई साहित्यप्रेमी व संस्कृति प्रेमी मौजूद रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *