आलेखव्यंग्यसाहित्य

देवेंद्र कुमार मिश्रा का व्यंग्य आलेख : तुलसीदास हाजिर हो !

‘‘तुलसीदास अदालत में हाजिर हो। गीता पर हाथ रखकर शपथ लो, जो कुछ कहोगे सच कहोगे। मिस्टर तुलसीदास आप पर आरोप है कि आपने दलित समुदाय का अपमान किया है।’’

‘‘श्रीमान जी ये दलित क्या है ? कौन है ?’’ ‘‘ये वही है, जिसे आपने शूद्र कहा है ? आप पर एस.सी. एस.टी. एक्ट लगा हुआ है। आपका कोई वकील है ?’’

‘‘मुल्जिम ब्राह्मण समाज का दरिद्र व्यक्ति है इसकी औकात नहीं कि अपना वकील लगवा सके। सो इसकी पैरवी के लिए सरकार की ओर से एक वकील नियुक्त किया जाता है।’’ सरकार की तरफ से नियुक्त वकील ने कहा। ‘‘जज साहब ! मेरे मुवक्किल ने कहा नहीं है, सिर्फ लिखा है।’’ ‘‘आब्जेक्शन योर आनर !’’ दलित संगठन की तरफ से भारी फीस लेकर दलितों की राजनीति करने वाले वकील ने कहा। ‘‘सिर्फ लिखा है कहा नहीं ? ये क्या बात हुई ? किसके कहने पर लिखा ?’’ ‘‘जय श्री राम’’ तुलसीदास बाबा धीरे—धीरे अपने ईश्वर का नाम लेते रहे।

‘‘योर आनर’’ दलित संगठन के वकील ने कहा। ये व्यक्ति बार-बार जय श्री राम का नारा लगा रहा है। इसका अर्थ ये हुआ ये भाजपाई है। क्या इसने किसी भाजपा नेता के कहने से लिखा ?’’
‘‘मिस्टर तुलसीदास ! आप क्या भाजपाई हैं ? ये आपने ढ़ोल-गंवार वाला दोहा किसी को अपमानित करने के लिए या किसी के कहने से लिखा है ?’’

‘‘माननीय न्यायधीश महोदय, उस समय भारतीय जनता पार्टी का अता-पता भी नहीं था, उस समय मुगलों का शासन था। सो भाजपाईयों का इससे कोई लेना-देना नहीं है। ये केस तो केवल तुलसीदास पर है। तुलसीदास का कहना है कि उन्होंने कहा नहीं सिर्फ लिखा है, तो किसके कहने पर ?’’

तुलसी बाबा के वकील ने कहा, ‘‘न्यायधीश महोदय, ये राम और समुद्रराज के मध्य का वार्तालाप है। जिसमें राम के क्रोधित होने पर समुद्रराज ने कहा था कि हमें बतायें कि हम आपको किस तरह रास्ता दें ?’’ यह उसी परिपेक्ष्य में था कि ढोल को जब तक कसो नहीं ठीक से बजती नहीं। गंवार को समझाना पड़ता है। उस समय में शूद्रों को शिक्षा नहीं मिलती थी, सो अशिक्षित व्यक्ति को मार्गदर्शन करना आवश्यक है। इसमें ताड़ना का अर्थ शिक्षित करना है। क्या स्कल में बच्चे को टीचर डांटता-मारता है तो उसे प्रताड़ित करने के उद्देश्य से ? बल्कि उसे सिखाने के उद्देश्य से।’’

हूँ – मजिस्ट्रेट ने कहा। ‘‘एक और आरोप है कि आपने स्त्रियोंं के लिए भी अपमानित करने वाले शब्द कहे। ये पूरी स्त्री जाति का अपमान हुआ। उस समय स्त्रियों को तो शिक्षा दी जाती थी ?’’

पक्ष के वकील ने कहा, ‘‘मान्यवर ! तुलसीदास को भरी जवानी में उनकी पत्नी ने अपने मायके से अपमानित करके भगा दिया था। ऐसा व्यक्ति, जो अपनी पत्नी को इतना प्रेम करता हो कि लाश को नाव समझकर उपफनती नदी पार कर गया हो और सांप को रस्सी समझकर अपनी पत्नी के पास पहुंचा हो। ऐसे पत्नी को चाहने वाले पति को जब उसकी स्त्री तिरस्कृत करके भगा दे तो आप ही बतायें उसके दिल पर क्या गुजरेगी ? उस हालत में उसकी मानसिक स्थिति ऐसी हो गई कि वे स्त्री जाति के विरक्त हो गये, भले ही कुछ समय के लिए। अदालत से प्रार्थना है कि तुलसीदास की मानसिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए उन्हें क्षमा कर दिया जाये।’’

‘श्री राम जय श्री राम’ तुलसीदास बाबा अपने इष्ट का नाम लेते रहे। उन्हें अदालत की कार्रवाई बिलकुल समझ में नहीं आ रही थी। ‘‘अंत में योर ऑनर यही कहना चाहूंगा कि तुलसीदास मात्रा लिखने वाले थे किसी घटना को। कहा – समुद्रराज ने। रामचरित्र मानस को हस्ताक्षर करके श्रेष्ठ बताया भोलेनाथ ने। न समुद्रराज का कुछ किया जा सकता है न भोलेनाथ का कुछ बिगाड़ने की किसी में हिम्मत है। सो तुलसीदास को बेकसूर साबित करते हुए उन्हें अदालत में इस मुकदमे से रिहा किया जाये।’’

लेकिन योर आनर- विपक्ष के वकील ने कहा। ‘‘बाहर दलित संगठन धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं।। महिला मुक्ति मोर्चा इंसाफ का, अपमान के लिए क्षमा मांगने का नारा लगा रही हैं। स्थिति विकट है। इन महाशय तुलसीदास के मुख से राम-राम सुनकर भाजपाई अलग उपद्रव कर रहे हैं। भाजपाई ये भी मांग कर रहे हैं कि बाबरी मस्जिद विवाद का एकमात्रा गवाह तुलसीदास है। ये व्यक्ति उस समय था, इसे मालूम होगा कि पहले मंदिर था वहां पर। इस विवाद को सुनकर मुस्लिम समुदाय भी आपत्ति व्यक्त कर रहा है कि एक तो हिंदू, उस पर राम भक्त। ये तो यही कहेगा कि मंदिर ही था। इसकी गवाही उचित नहीं मानी जा सकती। अदालत ने अलगी तारीख दे दी। तुलसीदास पर ये मुकदमा उनके किशोर अवस्था में शुरू हुआ और मुकदमे की तारीख बढ़ती रही। तुलसीदास वृद्धावस्था के बाद की अवस्था में पहुंच गये यानि जीवन की अंतिम अवस्था में। सभी दलों के दलदल अपनी-अपनी राजनैतिक रोटी सेंकने में लग गये। सत्ता में बैठे और विपक्ष में बैठे नेता सोचने लगे कि ऐसा क्या किया जाये कि जनमत उनके तरफ हो जाये। अदालती कार्रवाई का कोई भरोसा नहीं। हो सकता है तब तक तुलसीदास परलोक सिधर जाये। देश में स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है।

अचानक बाबा तुलसीदास गायब हो गये। अफवाह ये फैली कि मुस्लिमों ने गायब कर दिया। किसी ने ये भी कहा दलितों ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए उनकी हत्या कर दी। किसी को लगा भाजपाईयों की कोई चाल है। महिलाओं का मोर्चा भी खुला हुआ था स्त्री को भी ताड़ना के लिए कहा गया। किसी को याद नहीं आई शबरी जाति, जिसके राम जी ने जूठे बेर खाये थे।

इससे पहले की श्रीलंका ये आरोप लगाये कि भारत के राम नाम के राजा ने उनके राष्ट्र पर चढ़ाई की थी और हनुमान ने लंका जलवाई थी और मामला अन्तराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच जाये और कश्मीर मसले की तरह लटक जाये। अच्छा है कि सरकार एक आयोग बनाये। कमेटी गठित करे। आयोग बने भी, कमेटियाँ गठित हुई। वर्षों काम चला। कुछ की रिपोर्ट लीक हुई। कुछ को अलालत में चुनौती दी गई। किसी को बेकार बता दिया गया, कुछ बंद हो गई। कुछ का काम-काज अब भी जारी है। फिर नई घटनायें घटी। नये भ्रष्टाचार, नये घोटाले, नये दंगे, नये पफसाद। सरकारें आई और गईं। कुछ भी नतीजा नहीं निकला। अलबत्ता एक कमेटी की रिपोर्ट पेश है, जिसमें धर्मिक, सामाजिक, स्वतंत्रता, आरक्षण के बारे में, ईश्वर के बारे में सब धर्मों-जातियों के लोगों से पूछ-पूछकर समाधन खोजे गये। पहले ये बातें आई कि जब आरक्षण की व्यवस्था 20 वर्ष के लिए थी तो उसे बढ़ाया क्यों गया ? उत्तर था कि पिछड़ों का पर्याप्त विकास न होने से। असल बात ये थी कि आरक्षण जारी रखने में बहुसंख्यक वर्ग का वोट आरक्षण बढ़ाने वाली सरकार को लगातार मिलता रहेगा। सो आरक्षण खत्म करना आज भी संभव नहीं है। हाँ ये हो सकता है कि आरक्षण को मंदिर में प्रसाद की तरह सब में बांट दें, ताकि सब प्रसन्न रहें।

ब्राह्मणों को आर्थिक आधार पर, दलितों को जारी रहे आरक्षण, आदिवासियों को आरक्षण बढ़ाया जाये। आदिवासी समाज के वोट बहुमूल्य हैं। अधिक मात्रा में हैं। शेष को बाद में लेकर आरक्षण दे दो। महिलाओं को भी आरक्षण दो। महिलायें भी वोट देती हैं। सबको आरक्षण का झुनझुना पकड़ा दो। जिसको कम किया या हटाया तो वह जय भीम, जय बढ़देव का नारा लगाकर सरकार का विरोध् करेगा। धरना, प्रदर्शन, उग्र आंदोलन करेगा। सरकारी संपत्ति की तोड़-फोड़ करेगा। तो अच्छा है कि आरक्षण सबको मिले। भले ही उसका लाभ किसी को न किले। फिर करोड़ों की आबादी वाले मुस्लिम समाज को अल्पसंख्यक घोषित किया गया था कभी। हालांकि अब ये अल्प नहीं रहे, लेकिन अल्पसंख्यक घोषित रहने दो उन्हें। उनकी वोटें सरकार पलट सकती हैं। अल्पसंख्यक का आरक्षण उन्हें मिलते रहना चाहिये। इसी तरह सभी समुदाय, जिनकी संख्या से सरकार के समीकरण पर फर्क पड़ता हो उन्हें आरक्षण मिलना ही चाहिए। अब रही देवी, देवता, मंदिर-मस्जिद की बात तो इन्हें भी आपस में बांट लो। सबके अपने-अपने भगवान दे दो, ताकि धार्मिक स्वतंत्राता बनी रहे और झंझटें भी न हो। फिर जितने भी धर्म, जितनी जाति, उपजाति उतने भगवान, उतने जन्म-मृत्यु दिवस के हिसाब से सरकारी अवकाश भी।

देश की प्रगति भले रूक जाये, लेकिन अवसर सभी धर्मों के लोगों को मिलना चाहिए। हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं। सो कोई दो-तीन को भी अपना भगवान बना सकता है। जैसे ब्राह्मण को ब्रह्म जी, गायत्री माता और परशुराम को अपना नेता, इष्ट, भगवान बनाने की छूट दी गई। क्षत्रियों ने राम को अपना भगवान माना। यादवों ने कृष्ण को, वैश्यों में विभिन्न वर्गों ने क्रमशः भगवान विश्वकर्मा से लेकर कई को अपना भगवान माना। दलितों ने बुद्ध और अम्बेडकर को। आदिवासी समाज ने बड़देव भैरव-भोलेनाथ को माना। हर वर्ग के भिन्न लोगों ने क्रमशः काली, दुर्गा को माना। यहां तक कि नशा करने वालों ने हर-हर महादेव का नारा लगाया। मस्लिम के तो अल्लाह मियाँ और दो ईदें। ईसाईयों ने ईसा, मदर मैरी को माना। किसी ने कबीर, किसी ने रैदास को अपनाया। फिर भी क्षेत्रीय देवी, देवता, ग्राम देवी। देवता, ब्रह्मचारियों, अखाड़े वालों ने हनुमानजी को प्रमुखता दी, भले ही वह लंगोट के कच्चे रहे। अब महाराष्ट्र वालों ने कहा गणेश जी की बैठक महाराष्ट्र से शुरू हुई तो वह हमारे प्रमुख हुए। दक्षिण वालों ने मुरगन स्वामी बलाजी को माना। बंगाल वालों ने काली जी को माना। पंजाब में गुरू नानक को माना गया। बिहार में छठ पूजा। फिर इस बात पर भी चर्चा चली कि सूर्य, चाँद का क्या करें ?

जब बांटना ही है तो इन्हें भी बांटो, चाहे ज्योतिष हो, चाहे ईद देखना हो तो हिन्दुओं ने सूरज ले लिया, मुसलमानों ने चाँद ले लिया। पानी को लेकर नदियों के बंटवारे का काम चल रहा है। अभी तो ऐसी कोई तकनीक विकसित नहीं हुई कि हवा के बँटवारा हो सके। हाँ वृक्षों पर जरूर बहस हो सकती है। हिंदू पीपल वट को अपना प्रमुख धर्म वृक्ष बताते आ रहे हों तो ठीक है वे उनके हुए रहे। सरकार को कोई आपत्ति नहीं पशुओं के विषय में गाय हिंदू धर्म की। भेड़-बकरियाँ इस्लाम की, क्योंकि ईद उन्ही की कुर्बानी से मनाई जाती है। फिर सामाजिक धर्मिक स्वतंत्राता ने स्वछन्दता का रूप ले लिया। धर्म, जाति, भाषा के नाम पर संघ, सत्ता, संगठन, दलों का गठन किया गया, जिनका काम था दूसरे धर्म, जाति के लोगों पर हिंसक गतिविधियां अपनाना। सरकार को जिससे नुकसान दिखा उन्हें कुचल दिया गया। प्रतिबंधित कर दिया गया, या उन्हें सरकार में शामिल किया गया। दलों के दलदल बन गये। अब खिचड़ी सरकार बनने लगी। पूर्ण बहुमत किसी को नहीं। गलती पर गलती के हजार नुकसान कोई भी सरकार गिरा सकता है, कोई भी सरकार उठा सकता है। अटैची पहुँची नहीं कि विधायक सांसद की खरीद-फरोख्त होने लगी। लेकिन इस रिपोर्ट को कचरे का ढेर बताकर कचरे में डाल दिया गया। इसमें कोई नई बात नज़र नहीं आई। सच्चाई में ग्लैमर तो होता नहीं। उल्टा पोल खुलने लगती है। कुल मिलाकर जिसकी लाठी उसकी भैंस।

प्रजातंत्र प्रजा के लिए पिंजरा हो गया। जब चाहे सरकार बदले के भाव से या सत्ता बचाने के लिए कहीं इमरजेंसी, कहीं सैनिक शासन, कभी पुलिस केस और जनता की सेवा करने वाला प्रशासन जनता का खून चूसने लगा। सब आयोग, कमेटियाँ बेकार हो गई। आप कहेंगे इस बीच तुलसीदास का क्या हुआ ? क्या होना है जब चाहे किसी भी गरीब को पकड़ लो और कर दो ढेर सारी धरायें लगाकर कटघरे में
अपराधी बनाकर खड़ा। कहां जायेगा बेचारा तुलसीदास ? जो चाहे सजा दो। जैसी मर्जी राजनीति करो। तुलसी पर करो, राम पर करो, मंदिर पर करो, मस्जिद पर करो। आजकल भगवान ही तो रह गये सत्ता हथियाने का अच्छा माध्यम। कुछ व्यक्ति जो अचानक भगवान बन गये। उनके अनुयायी, उनका विशाल बाज़ार और दरबार अलग। उन्होंने कहा – मैं इंसान दिखता जरूर हूँ, लेकिन हूँ भगवान। वे भी सरकार बनाने-बिगाड़ने की औकात रखने वाले थे। सो उन्हें भी सरकार से संरक्षण मिलने लगा। कुछ को राजनीति ने उठाकर जेल की सलाखों में डाल दिया। कुछ थे ही पापी सो विदेश भाग गये या अज्ञात हो गये। कुछ आज भी चंदा, धंधा, बोल वचन बेच रहे हैं। वे इस बात पर जोर देते हैं कि फंला जाति, धर्म के पूर्वजों ने तुम्हारी जाति, धर्म के लोगों के साथ अत्याचार किया था। अब तुम इनकी जाति, धर्म के लोगों के साथ करो। लोग लड़ मर रहे हैं आपस में, लेकिन एक बात थी आयोग की रिपोर्ट में अंत में कि चाहे लोग भूख से मरें, नशे से मरें। आपस में धर्म, जाति, भाषा के नाम पर लड़ मरे। यदि देश को एकता के सूत्र में बांधकर रखना है तो बहुत जरूरी है कि भारत, पाकिस्तान में शीत-युद्ध तो होता ही रहे। दो-चार साल में गदर जैसी फिल्में बनती रहें और क्रिकेट का खेल जारी रहे। खासकर भारत, पाकिस्तान के मध्य यही क्रिकेट, सिनेमा और मीडिया की सनसनी खासकर भारत, पाकिस्तान के बारे में जारी होती रहे। इससे देश में एकता बनी रहेगी। हमें याद आता रहेगा। सारे जहां से अच्छा जनगणमन जय हो। भारत माता की जय।

  • पाटनी कालोनी, भरत नगर, चन्दनगाँव, छिन्दवाड़ा, मध्य प्रदेश – 480001

Deepak Manral

DEEPAK MANRAL E-Mail : [email protected] >> Successful experience of journalism in the field of Daily Hindi News papers & Magazines. (Amar Ujala, Uttaranchal Deep, Pradhan Times Daily, Katyuri Mansarovar, Dharmyudh etc.) >> Career Objective : To broaden my vision by continuous learning & taking up challenging assignments. >> Summary : A total experience of nearly 6 years in the field of desk top publication, Edition & News Reporting Major part had been working with “Amar Ujala” as a News Reporter and later Bureo Chief Bageswar. I have been exposed to both criminal & political Reporting. >> Work Experience : Organization : Ms Amar Ujala publication ltd. Worked as a News Reporter with this reputed Hindi Newspaper wherein exposed to both criminal & Political reporting while being attached to their various offices at Haldwani, Almora, Ranikhet & Bageshwar Duration : 6 Years (Jan 2001 to May 2006) Organization : M/s Katyuri Prakashan (A family owned publication house taking out Quarterly magazines namely ‘Katyuri Mansarovar’ & ‘Dharmyudh’. >> Key Performance Areas Editing of the articles being received from various sources. Handling all related correspondences. Freelance writing in various News Papers : 3 Years (2009 to 2011) Ms Uttaranchal Deep Hindi Daily >> Duration : 7 Years (2012 to 2018) >> Key performance Areas Covered criminal reporting while based at Haldwani. Covered political reporting while based at Almora Office. Was responsible for mainly editing job while based at Ranikhet & Subsequently at Bagheswar office. >> Academic Qualification : M.A. (Hindi) from Kumaun University in 1999. 6 Monts computer Course from JCTI, New Delhi. B.A. From Delhi University in 1996 12th from CBSE, Delhi in 1993 >> Technical Expertise : Proficiency in DTP. Proficient in Page Maker & Coral Draw. Good Knowledge of English & Hindi typesetting. Hardcore Knowledge of composing & editing. >> Personal Profile : Date of Birth : 13th Nov, 1974 Father’s Name : Late Mr. Balwant Manral >> Communication Address : Manral Sadan, Narsing Bari, Almora (Uttarakhand) 263601

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