प्रेरणादायी: सुनीता गांव (बागेश्वर) के जागरूक युवा बने गांव के लिए ‘रोलमॉडल’, शहरों की चकाचौंध छोड़ बंजर खेतों में लहलहा दी जैविक खेती, घर पर हजारों की कमाई

दीपक पाठक, बागेश्वर कहते हैं जज्बा और लगन हो, तो असंभव भी संभव में बदल जाता है। इसी बात को साबित कर दिखाया है कि…

दीपक पाठक, बागेश्वर

युवाओं की कड़ी मेहनत से फलीभूत हुई जैविक खेती।

कहते हैं जज्बा और लगन हो, तो असंभव भी संभव में बदल जाता है। इसी बात को साबित कर दिखाया है कि ‘सुनीतागांव’ के युवा भाईयों संकल्प व सुनील ने। जो शहरों की चकाचौंध और नौकरी छोड़कर गांव लौटे और वीरान व बंजर खेत आबाद कर लहलहा दिए। उन्होंने कोरोना की आपदा को अवसर में बदल डाला और जैविक खेती कर उन्होंने अच्छी इन्कम शुरू कर दी। साथ ही पूरे गांव को एक नई आस व प्रेरणा दे डाली।
जिला मुख्यालय से 75 किमी दूर कपकोट विकासखंड अंतर्गत सुनीता नामक गांव है। हिमालयी क्षेत्र का यह गांव संसाधनों की कमी झेलता आ रहा है। दो दशक पहले रोजगार एवं बेहतर शिक्षा की ललक लेकर पहाड़ के अधिकांश परिवार या युवाओं ने शहरों का रूख किया। मगर कोरोनाकाल के चलते लाकडाउन में ऐसी मुसीबत आन पड़ी कि विभिन्न गांवों के कई युवा वापस घर लौट आए हैं। ऐसे सुनीतागांव के युवा भी वापस लौटे, लेकिन कुछ कर गुजरने का जज्बा हर किसी में नहीं होता, जैसा सुनीता गांव के युवा संकल्प मिश्रा और सुनील मिश्रा ने कर दिखाया है। ये दोनों भाई दूर शहर में अच्छी खासी नौकरी करते थे और परिवार के साथ खुश थे। मगर लाॅकडाउन में उन्हें सब कुछ छोड़कर घर आना पड़ा। करीब दो-तीन महीने तक अपने भविष्य के बारे में सोचते रहे। फिर एक दिन दोनों युवाओं ने बंजर खेतों को हरा भरा करने की ठानी। मेहनत रंग लायी और गांव के पारंपरिक खेती में शहर की नई तकनीक का प्रयोग किया। सरकारी योजनाओं के लिये उद्यान विभाग से संपर्क किया। दोनों युवाओं की मेहनत रंग लायी और बंजर खेत फिर से लहलहा उठे।
ये युवा बताते हैं कि ग्रामीणों के पलायन से खेत वीरान और बंजर हो चुके थे। खेत झाड़ियों से पट चुके थे। मगर आज उन्हीं खेतों में बागवानी से हजारों की कीमत वाली सब्जियां उग रही हैं। लोग उनके खेतों से ही बाजार मूल्य पर जैविक सब्जियां ले जा रहे हैं। सब्जियों की जो कीमत बाजार में मिलती है उससे अधिक कीमत उन्हें उनके खेतों में मिल रही है। कपकोट विकासखंड मेें सुनीता गांव के युवाओं के हौंसले देखकर उद्यान विभाग के अफसर भी गदगद हैं। उन्हें भरोसा है कि उनकी पहली मेहनत को रंग लायी है। अगर ऐसे युवाओं को और प्रोत्साहित किया जाय, तो भविष्य में बेहतर परिणामों की उम्मीद की जा सकती है। बहरहाल बागेश्वर जिले में दूरस्थ हिमालयी क्षेत्र सुनीता गांव के युवाओं ने तो खेतों में मेहनत कर अपनी तकदीर बदल दी है। अब जरूरत है ऐसे युवाओं को तलाशने की जो संसाधनों और प्रोत्साहन की कमी के कारण अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *