बोरवेल सोख रहा बहुमूल्य जल संसाधन, खतरे में पारिस्थितिकी तंत्र, पढ़िये पूरी ख़बर

आरोप — दस साल पहले भवाली निवासी से मिली थी अनुमति, अब खोदा गया बोरवेल भवाली से 45 किलोमीटर दूर सतोली में हुई खुदाई आलीशान…

आरोप —

  • दस साल पहले भवाली निवासी से मिली थी अनुमति, अब खोदा गया बोरवेल
  • भवाली से 45 किलोमीटर दूर सतोली में हुई खुदाई
  • आलीशान भवन निर्माण के लिए हो रहा पानी का उपयोग
  • व्यावसायिक कार्यों हेतु उपयोग कर रहा बिल्डर
  • हज़ारों गैलन पानी की रोजाना निकासी

— अनूप सिंह जीना की रिपोर्ट —

कुमाऊं क्षेत्र के नैनीताल जनपद अंतर्गत सतोली गांव के वाशिंदे एक बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं। मुद्दा यह है कि यहां पानी की भूमिगत निकासी के लिए बगैर ग्रामिणों से कोई सलाह मशविरा किये एक बोरवेल खोदा जा रहा है। जिसकी अनुमति आज से दस वर्ष पूर्व ली गई थी। ग्रामीणों का आरोप है कि यह अनुमति एक व्यक्ति विशेष से आवासीयी पेयजल प्रयोग हेतु दी गई थी, लेकिन इसे अब आलीशान भवन निर्माण हेतु खोदा जा रहा है।

सतोली के नागरिकों का कहना है कि वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को विवश हुए हैं। उनका कहना है कि यहां स्थापित नियमों और मानकों को पूरी तरह ताक में रख बोरवेल का निर्माण एक बड़े प्राइवेट बिल्डर द्वारा किया जा रहा है। जिसकी अनुमति भवाली में रहने वाले किन्हीं विपिन चन्द्र पन्त को दी गयी थी, किंतु इसे आज भवाली से 45 किलोमीटर दूर सतोली में खोदा जा रहा है। उक्त अनुमति 10 साल पहले दी गई थी जब जल की उपलब्धता की स्थिति आज से अलग थी। उक्त अनुमति आवासीय प्रयोग हेतु दी गई थी, वर्तमान में खोदे गए बोरवेल के जल को महंगे भवनों के निर्माण कार्य हेतु इस्तेमाल में लाया जा रहा है।

ग्रामीणों का कहना है कि खुदाई की प्रक्रिया के समय भूवैज्ञानिक तथा संबंधित राजकीय अधिकारी की उपस्थिति अनिवार्य होती है, इस नियम की अवज्ञा की गई। अवैध रूप से खोदे गए उक्त बोरवेल के विरुद्ध कार्रवाई करने की मांग को लेकर एक आवेदनपत्र संबंधित राजकीय अधिकारियों को भेजा जा चुका है। ऐसी गतिविधियों से उत्तराखंड और उसी के जैसे अन्य नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्रों के अस्तित्व पर गहरे संकट छा रहे हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में भूमिगत जल भंडार नहीं होते। बोरवेल और अनियंत्रित निर्माण के चलते पहाड़ी ढलानों पर उपलब्ध सभी प्राकृतिक जल-स्रोतों व धाराओं के जल के प्रवाह को बाधित कर खींचने का काम किया जाता है, जिससे बहुमूल्य जल के ये संसाधन सूखने लगते हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि पहले से ही जल की कमी से जूझ रहे इलाके के लिए यह एक गंभीर स्थिति है। सरकारी जल-आपूर्ति को जनता की मांग पूरी करने के लिए पहले से ही संघर्ष करना पड़ रहा है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग जैसे तरीक़े फिलहाल बड़ी संपत्तियों के स्वामियों ही अपना सके हैं। ग्रामीण इलाके आज भी पहाड़ी ढलानों पर बरसात के जल से पोषित होने वाली प्राकृतिक जल धाराओं पर निर्भर हैं। बोरवेल खोदे जाने का अर्थ इन संसाधनों का अंत है। उन्होंने कहा कि इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि कल्पना कीजिये आपके पास पहुंचने से पहले ही आपके इंटरनेट की उपलब्ध बैंडविड्थ का 80% कोई अपने इस्तेमाल लिए खींच ले। यह मामला सभी के हिस्से के जल का है। ग्रामीणों का कहना है कि इस प्रदर्शन के पीछे न कोई राजनैतिक दल है, न कोई राजनैतिक विधान। उक्त आवेदनपत्र पर हस्ताक्षर करने वाले लोगों में से अधिकतर उसके पहले एक दूसरे को नहीं जानते थे।

ग्रामीणों का कहना है कि गत दिवस हुआ यह प्रदर्शन साधारण नागरिकों की आशाओं-उम्मीदों से उपजी एक स्वतःस्फूर्त पहल है ताकि उनके पर्यावरण, जीवन और आजीविका को और अधिक नुकसान न पहुंचाया जा सके। जब तक उक्त बोरवेल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती, यह विरोध जारी रहेगा। धरने—प्रदर्शन में सतोली, पियोरा, दियारी, चटोला, सतखोल, सीतला और आस—पास के क्षेत्रों के ग्रामीणों के अलावा डॉ. कोल. सीएस पंत अध्यक्ष AAROHI, उत्तराखंड परिवर्तन पार्ट के केंद्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी, जिला पंचायत सदस्य गहना राकेश कपिल, ग्राम प्यूड़ा से भीम बिष्ट, ग्राम काफूरा कृष्ण भंडारी के अलावा तमाम पर्यावरणविद और गणमान्य जन शामिल हुए। इधर क्वारब चौकी से कानि आनंद राणा, नंदन भाकुनी, प्रेम कुमार मौके पर गये। उन्होंने जनता से निवेदन किया कि प्रदशन से पूर्व अनुमति प्रशासन से लेना सुनिश्चित अवश्यक करें।

यह है पूरा मामला

मु​क्तेश्वर के पास के गांव सतोली (पट्टी मल्ली कुटोली, ​नैनीताल) के नागरिक बोरवेल का विरोध कर रहे हैं। इनके साथ सतोली, प्यूड़ा, दियारी, छतोला, सतखोल, सीतला गांव और आस—पास के क्षेत्रों के निवासियों के अलावा कई युवा नेता, पर्यावरण कार्यकर्ता, ग़ैर सरकारी संगठन और अन्य शामिल हैं। नागरिकों का कहना है कि दस साल पहले, आवासीय प्रयोग के लिए इस बोरवेल की अनुमति विपिन चंद्र पंत को दी गई थी, जो भोवाली (सतोली से 45 किलोमीटर दूर) रहते हैं। कुछ महीनों पहले, एक बड़े बिल्डर ने इस बोरवेल को संचालित किया उसके बड़े और बहुत ही महंगे घरों के लिए, जिनका निर्माण गांव सतोली में किया जा रहा है। जो एक आवासीय प्रयोग के लिए एक छोटा सा बोरवेल था, अब एक बहुत ही बड़े व्यावसायिक कार्य के लिए उपयोग किया जा रहा है। खुदाई के नियम, जिनके अंतर्गत एक भूवैज्ञानिक और सरकारी कार्यकर्ता का उपस्थित रहना अनिवार्य होता है, इस सभी का उल्लंघन किया गया है। आरोप है कि बिल्डर द्वारा हज़ारों गैलन पानी रोज़ यहां से निकाल रहा है। इस अवैध कार्य से यहां के कई परिवार प्रभावित हो चुकें हैं। इस अवैधिक तरीक़े से पानी निकलने का कार्य अगर अभी नहीं रोका गया तो, सतोली, दियारी, प्यूड़ा और अन्य गाँव, वर्तमान के पानी की कमी के अलावा, आने वाले भविष्य में पानी की भारी कमी का महसूस करेंगे।

यह हैं नागरिकों की प्रमुख मांगें —

  • गांव सतोली, पट्टी मल्ली कुटोली में बिल्डर के जल के वाणिज्यिक दुरुपयोग को रोकने के लिए तुरंत कार्यवाही करें।
  • बोरवेल को सील किया जाये ताकि उसका अवैध तरीके से प्रयोग ना किया जाए।
  • जहां पर भी बोरवेल खुदाई की अनुमति दी गयी है, उनको तत्काल रोका जाए ताकि उनका किसी भी तरीक़े से ग़लत उपयोग ना हो।
  • पहले से ही प्रदान किए गए ड्रिल करने की अनुमतियों को अस्वीकृत किया जाए क्योंकि वो उपयोग के लिए संवेदनशील हैं।

इन्हें भेजे गये पत्र और ज्ञापन —

इस बोरवेल और उसके व्यवयसायिक रूप में प्रयोग के ख़िलाफ़, गांव सतोली के 150 निवासियों द्वारा अपने हस्ताक्षरों के साथ उत्तराखंड राज्य सरकार के सचिव के माध्यम से, पेय जल व स्वच्छता विभाग, उत्तराखंड। केंद्रीय भू-जल बोर्ड। जिलाधिकारी, नैनीताल। परगना अधिकारी, नैनीताल तथा उत्तराखंड राज्य सिंचाई विभाग, देहरादून को पत्र भेजे गये।

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