सुयालबाड़ी से अनूप सिंह जीना की रिपोर्ट
उत्तराखण्ड के गौरवशाली कत्यूरी शासनकाल के बाद 11 वीं शताब्दी से लगभग 17 वीं शताब्दी तक यहां शासन करने वाले चंद वंश का आमलक मिलने के बाद यह सम्भावना प्रबल हो गई है कि रामगढ़ ब्लॉक अंतर्गत ढ़ोकाने से सुयालबाड़ी तक का क्षेत्र अपने गर्भ में कई ऐतिहासिक विरासतों को सहेजे हुए है। बहुत सम्भव है कि शिव मंदिर के पास जहां आमलक मिला है उसके आस—पास के इलाके में यदि खुदाई कराई जाये तो ऐसी ही अन्य कई विरासतें मिल सकती हैं।उल्लेखनीय है कि चंद वंश कुमाऊँ मण्डल का एक मध्यकालीन रघुवंशी राजवंश था, जिन्होंने इस क्षेत्र पर ११वीं शताब्दी में कत्यूरी राजवंश के ह्रास के बाद से और १८वीं शताब्दी में अंगेज़ो के आगमन तक शासन किया। गत दिवस ढोकाने से सुयालबाड़ी सड़क निर्माण के लिए खुदाई के दौरान शिव मंदिर के पास मंदिर के ऊपर वजन रखने के लिए बनाए जाने वाला आमलक मिला है। पुरातत्ववेत्ता डॉ. यशोधर मठपाल ने इसकी पुष्टि की है। इस आमलक को 13 वीं से 14 वीं शताब्दी के मध्य का भी बताया जा रह है तथा इसका वजन 5 क्विंटल है। यहां जेसीबी के माध्यम से सड़क खुदान का काम चल रहा था। इस दौरान जेसीबी चालक ने एक अजीब सी वस्तु देखी तो उसके कुछ समझ नही आया और उसने मामले की जानकारी सुयालबाड़ी निवासी भाजपा मंडल अध्यक्ष रमेश सुयाल को दी। फिर ग्रामीणों की मदद से शिला को मिट्टी के ढेर से बाहर निकाल लिया गया। स्थानीय निवासी रमेश सुयाल, भुवन चंद्र सुयाल, खयालीराम कर्नाटक, हंसादत्त उप्रेती ने बताया कि 2006 में भी शिव मंदिर के जीर्णोद्धार के दौरान भी मूर्तियों के अवशेष मिले थे। तब मंदिर के पीछे के खेत की खुदाई को बंद कर दिया गया था। सभी मूर्तियां एक ही प्रकार के पत्थर जैसी मिली हैं। यशोधर मठपाल के अनुसार जो वजनी शिला मिली है वह आमलक है, जिसे चंद शासन काल में मंदिर के ऊपर वजन बढ़ाने के लिए रखा जाता था। माना जा रहा है कि जिस क्षेत्र में आमलक मिला है वहां कोई बड़ा मंदिर रहा होगा। इस तरह के आमलक बैजनाथ, जागेश्वर सहित अन्य मंदिरों में भी हैं। अलबत्ता यहां मिला आमलक पूरी तरह सुरक्षित है। इसके निर्माण का सही काल शोध के बाद ही पता चल पायेगा। इधर भाजपा मंडल अध्यक्ष रमेश सुयाल ने कहा कि क्षेत्र में प्राचीन विरासत मिलने से क्षेत्रवासी स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रही हैं। उनका कहना है कि इन ऐतिहासिक विरासतों को सहेज कर रखने की जरूतर है।