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नई दिल्ली| केंद्र सरकार ने राजधानी दिल्ली में नौकरशाहों पर नियंत्रण को लेकर दिल्ली सरकार के साथ चल रहे अपने विवाद के मामले को नौ या उससे अधिक न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष विचार के लिए भेजने का बुधवार को उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया।
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा की पीठ ने इस संबंध में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा एक अतिरिक्त प्रतिवेदन दाखिल करने की अनुमति दी।
पीठ के समक्ष केंद्र सरकार ने सेवाओं के नियंत्रण को लेकर दिल्ली सरकार के साथ अपने विवाद के मामले को एक बड़ी पीठ को सौंपने की गुहार लगाते हुए कहा कि “राष्ट्रीय राजधानी को पूर्ण अराजकता को सौंपने” के लिए वह इतिहास में याद नहीं रखा जाना चाहती है।
शीर्ष अदालत ने मेहता और दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता ए. एम. सिंघवी को लगभग साढ़े चार दिन तक सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। मेहता ने तर्क दिया कि जब उन्होंने बड़ी पीठ के संदर्भ में प्रतिवेदन दायर किया तो दिल्ली सरकार ने इसका विरोध किया। शीर्ष अदालत ने उनसे कहा कि सुनवाई के दौरान के दौरान इस पर बहस की जा सकती है।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा, “संदर्भ अनिवार्य रूप से इस आधार पर है कि संघ और केंद्र शासित प्रदेश के बीच संघवाद की रूपरेखा पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है। यह मेरे तर्कों में शामिल है।”