उत्तराखंड के धाकड़ धामी ! “दूध का जला छाछ भी फूंक— फूंक कर पीता है”
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⏩ प्रचंड विजय के बाद क्या सीएम बदल पायेंगे प्रदेश की कार्य संस्कृति ?
सीएनई रिपोर्टर
प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री पुष्कर धामी (Chief Minister Pushkar Dhami) ने चंपावत उप चुनाव में (अब तक के राज्य गठन के बाद हुए चुनाव में) जीत का जो कीर्तिमान स्थापित किया है, वह नि:संदेह चंपावत की जनता की दूरदृष्टि का परिणाम है। यही कारण है कि इस ऐतिहासिक विजय के बाद चंपावत विधानसभा की जनता की मुख्यमंत्री से अपेक्षा काफी बढ़ गयी है।
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वहीं प्रदेश की जनता भी युवा मुख्यमंत्री से जनहित में कोई चमत्कार की अपेक्षा कर रही है। गौरतलब है कि 12वें मनोनीत मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले पुष्कर धामी ने विधानसभा उप चुनाव में विजय हासिल करने के लिए विपक्ष के विधायक से सीट खाली कराकर चुनाव लड़ने की परम्परा से हटकर दिग्गज नेता रहे पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा अपने विधायक से सीट खाली कराने की बड़ी राजनैतिक सीख लेकर अस्थिर राजनीति से परहेज किया। ये मुख्यमंत्री की दूरदृष्टि सोच को प्रकट कराता है, लेकिन अब तक की राज्य की राजनैतिक उठक—पटक से सीख लेकर मुख्यमंत्री धामी को “दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है” वाली कहावत पर अनियोजित विकास का दंश झेल रहे राज्य को आगे बढा़ने के लिए बड़ा कदम उठाना है।
अपने विगत के छह माह के कार्यकाल में मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने नि:संदेह जनता के बीच रहकर लोक—लुभावने निर्णय लेकर जनता के बीच पैठ बनायी थी। जिसका परिणाम रहा कि उनकी पार्टी ने सत्ता में वापसी की, लेकिन राज्य गठन के बाद से ही अधिकांश मौके पर राज्य विधानसभा चुनाव के बाद उप चुनाव, निकाय चुनाव, लोकसभा चुनाव और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को देखते आ रहे हैं। जिसको देखते हुए अनेक मौकों पर मुख्यमंत्री ने विवेकपूर्ण और दूरदर्शी निर्णय लिए। वर्तमान में मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को चुनाव जीतने के बाद लगभग डेढ़ वर्ष का समय बिना किसी चुनाव के राज्य के विकास के लिए कार्य करने के लिए उपयुक्त समय मिला।
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मुख्यमंत्री को अपने कद के हिसाब से अब राज्य की जनता की मूलभूत समस्याओं का समाधान करने के लिए खुलकर आगे आना चाहिए। वर्तमान परिपेक्ष्य में शिक्षा ऒर स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण विषयों के साथ राज्य के युवा बेरोजगारों को नौकरी देना सबसे बड़ा चुनौती का काम है। जिसके लिए मुख्यमंत्री को नौकरशाही पर कडा़ अंकुश सहित मंत्रियों के कार्यों की भी प्रगति को भी परखना होगा। आज भी नौकरी के प्रदेश का निर्णायक मतदाता युवा बेरोजगार दिगभ्रमित है। हालात इस कदर हैं कि योग्य प्रशिक्षित युवा मुफिलिसी के दौर में 03 हजार से लेकर 06 हजार की कमरतोड़ मेहनत से अपनी रोजी—रोटी को कमाने के लिए मोहताज हैं। जो कि राज्य द्वारा गठित न्यूनतम श्रमिक मजदूरी से भी काफी कम है। ऎसे हजारों युवाओं का असंगठित क्षेत्रों में शोषण हो रहा है। इस पर युवा मुख्यमंत्री को पैनी नजर रखकर शोषण करने वाले आऊट सॊर्स कम्पनियों सहित अन्य के खिलाफ टास्क फोर्स गठित कर ईमानदार छवि के अधिकारियों के द्वारा पर्दाफाश करना चाहिए।
राज्य गठन के बाद से 22 सालों में सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह रहा है कि उत्तराखण्ड के जनप्रतिनिधि सहित नौकरशाह पर्वतीय मूल की अवधारणा के साथ न्याय नहीं कर पाये हैं। राज्य के भीतर सरकार एवं शासन सहित जिले स्तर पर जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन की कार्य संस्कृति में परिवर्तन नहीं होना सबसे बड़ा प्रश्न है। जिससे राज्य के भीतर नियोजित विकास से ज्यादा अनियोजित विकास को बढा़वा मिला है। जिससे अपनी कार्यशैली से दूर करना मुख्यमंत्री पुष्कर धामी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
राज्य के युवा मुख्यमंत्री पुष्कर धामी के पास वर्तमान में राज्य के भीतर ऐतिहासिक निर्णय लेने एवं जनता के प्रति अडिग विश्वास जगाने के लिए सारी अनुकूल स्थितियां मौजूद हैं। केन्द्र की मोदी सरकार का अपार आर्शीवाद सहित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी का सहयोग प्राप्त है। बस मुख्यमंत्री को अपनी प्रबल इच्छा शक्ति के बल पर जनता के प्रति जवाबदेही और पारदर्शी शासन-प्रशासन सहित भ्रष्टाचार के दीमक की जड़ों को समाप्त करने का बड़ा मौका है।
— (त्रिलोचन जोशी, स्वतंत्र पत्रकार)