ऋषिकेश न्यूज : एम्स में गर्भाशय के कैंसर पर वेबिनार, बताईं सावधानियां

ऋषिकेश। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग और गाईनोकोलॉजी ऑन्कोलॉजी विभाग की ओर से आयोजित वेबिनार में देशभर के…

ऋषिकेश। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग और गाईनोकोलॉजी ऑन्कोलॉजी विभाग की ओर से आयोजित वेबिनार में देशभर के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर उन्मूलन विषय पर विस्तृत चर्चा की। कार्यक्रम का संचालन गाईनोलाॅजिक ऑन्कोलाॅजिस्ट प्रोफेसर शालिनी राजाराम ने किया।
चर्चा के दौरान विशेषज्ञों ने टीकाकरण, स्क्रीनिंग और उपचार के दृष्टिकोण से जुड़े सर्वाइकल कैंसर को खत्म करने के विभिन्न पहलुओं पर विचार रखे। उल्लेखनीय है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ ने 90 -70-90 इस ट्रिपल नीति के बारे में प्रस्ताव दिया है, कि सभी देश 2030 से पहले इस नीति को लागू करें। कहा गया है कि 15 साल से कम उम्र की कम से कम 90 प्रतिशत किशोरियों का टीकाकरण करने से महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर की पर्याप्त रोकथाम हो सकती है जबकि 35 से 45 वर्ष की आयु में बच्चेदानी के मुंह कैंसर की रोकथाम के लिए विशेषज्ञ से कम से कम दो बार जांच करानी अनिवार्य है।
वेबिनार को संबोधित करते हुए एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने इस पहल का स्वागत किया और कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं में जागरुकता के अभाव में सर्वाइकल कैंसर की ज्यादा शिकायत रहती है। उन्होंने कहा कि इस बीमारी की पर्याप्त रोकथाम के लिए जरूरी है कि किशोरियों को टीकाकरण के प्रति जागरुक किया जाए। निदेशक एम्स प्रो. रवि कांत ने कहा कि एम्स ऋषिकेश की यह पहल उत्तराखंड और पड़ोसी राज्यों के सभी स्कूलों और गांवों तक पहुंचनी चाहिए, ताकि इस अभियान को पूर्ण सफलता हासिल हो सके। निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने आह्वान किया कि 9 से 14 साल की आयु के बीच की किशोरियों के टीकाकरण के लिए व्यापक अभियान चलाने की आवश्यकता है। हमें गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर उन्मूलन कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए मजबूत प्रयास करने होंगे।
डीन एकेडमिक्स और रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर मनोज गुप्ता ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित 90 प्रतिशत महिलाएं इसके इलाज के लिए कीमो रेडिएशन विधि का उपयोग कर रही हैं हालांकि, एम्स ऋषिकेश में विकिरण चिकित्सा द्वारा उपचार के लिए मरीजों की लगभग एक वर्ष की लंबी प्रतीक्षा अवधि चल रही है। उन्होंने बताया कि सर्जिकल उपचार प्रदान करने के लिए गाइनोकोलॉजिक ऑन्कोलॉजिस्ट की संख्या और राज्य में सर्वाइकल कैंसर की व्यापक कैंसर देखभाल प्रदान करने के लिए विकिरण केंद्रों की संख्या अपर्याप्त है। लिहाजा इसे बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।
नेशनल हेल्थ मिशन उत्तराखंड की निदेशक डाॅ. अंजलि नौटियाल ने सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि एएनएम सहित लगभग 5304 स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को स्क्रीनिंग के लिए एसिटिक एसिड विधि के साथ दृश्य निरीक्षण में प्रशिक्षित किया गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस मामले में हमें जल्द ही राज्य में टीकाकरण कार्यक्रम शुरू करना चाहिए।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की राष्ट्रीय कार्यक्रम निदेशक डा. सरोज नैथानी ने इसे एम्स ऋषिकेश की महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति अति सकारात्मक पहल बताया। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम राज्य में निश्चिततौर से सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचेगा। उन्होंने बताया कि हमारे पास 10,000 से अधिक आशा कार्यकर्ता हैं, जो टीकाकरण और स्क्रीनिंग के संदेश को दूरदराज के गांवों में पहुंचा सकते हैं। साथ ही उन्होंने उत्तराखण्ड राज्य को स्वास्थ केंद्रों के माध्यम से स्क्रीनिंग और उपचार के लिए पर्याप्त व प्रभावी टीकाकरण करने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
एम्स ऋषिकेश की प्रसूति एवं स्त्री रोग विभागाध्यक्ष प्रो. जया चतुर्वेदी ने बताया कि गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर मुख्यत: ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) के कारण होता है, जो कि यौन जनित इन्फैक्शन है। इससे बचाव के लिए उन्होंने विवाह देरी से करने, यौन शिक्षा व सुरक्षित यौन विधियों के अभ्यास पर जोर दिया। साथ ही 9 से 14 साल की युवा लड़कियों में टीकाकरण जैसे मुद्दों और बीमारी के निवारण संबंधी तौर तरीकों पर विचार व्यक्त किए।
विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डा. अनुपमा बहादुर ने टास्क फोर्स प्रोजेक्ट के बाबत जिक्र करते हुए विभिन्न स्क्रीनिंग विधियों पर प्रशिक्षण प्राप्त डॉक्टरों, नर्सों और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ की जरुरत पर प्रकाश डाला।
एम्स नर्सिंग कॉलेज के प्रिंसिपल प्रो. सुरेश के. शर्मा ने सुझाव दिया कि कॉलेज में एडमिशन से पहले एचपीवी वैक्सीन अनिवार्य किया जाना चाहिए और दूरदराज के क्षेत्रों तक टीकाकरण अभियान को सफल बनाने के लिए पैरामेडिकल स्टाफ को और प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि सभी नर्सिंग छात्रों को सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए पूर्णरूप से प्रशिक्षित किया जा रहा है।
संस्थान की सामुदायिक एवं परिवार चिकित्सा विभागाध्यक्ष प्रो. वर्तिका सक्सेना ने कहा कि स्कूल स्तर पर स्वास्थ्य कार्यक्रम द्वारा एचपीवी टीकाकरण के माध्यम से लगभग 60 प्रतिशत लड़कियों को लक्षित किया जा सकता है। इसके अलावा जो लड़कियां स्कूल नहीं जा पा रही हैं, उन्हें राज्य के विभिन्न एनजीओ के माध्यम से लक्षित किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि भारत सरकार द्वारा एसिटिक एसिड के साथ दृश्य निरीक्षण का उपयोग कर गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर की जांच की योजना तैयार की गई है। जिसे लागू करने की आवश्यकता है।
माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रमुख प्रो. प्रतिमा गुप्ता ने एचपीवी परीक्षण के विभिन्न तौर- तरीकों पर चर्चा की। कहा कि बिंदुवार देखभाल परीक्षण के माध्यम से इस बारे में 1 से 2 घंटे में परिणाम हासिल किए जा सकते हैं।
ऑन्कोपैथोलॉजिस्ट डा. प्रशांत दुर्गापाल और मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डा. अमित सेहरावत ने उत्तराखंड में सर्वाइकल कैंसर के वर्तमान आंकड़ों पर चर्चा की, उन्होंने बताया कि एम्स, ऋषिकेश में अस्पताल और राज्य कैंसर रजिस्ट्री शुरू की गई है। देहरादून सोसाइटी ऑफ ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनोकोलॉजी की अध्यक्ष डा. मीनू वैश्य ने कहा कि निजी चिकित्सक और उनकी एसोसिएशन पहले से ही उत्तराखंड के विभिन्न स्कूलों में इस कैंसर के बारे में जागरुकता फैला रहे हैं और लड़कियों का टीकाकरण का कार्य कर रहे हैं।
वेबिनार को कैंसर नियंत्रण, डब्ल्यूएचओ-आईएआरसी, ल्योन फ्रांस के विशेष सलाहकार और विजिटिंग साइंटिस्ट डा. आर. शंकरनारायणन ने भी संबोधित किया। उन्होंने अपने लम्बे अनुभव और ज्ञान को साझा करते हुए कहा कि सर्वाइकल कैंसर की प्रवृत्ति का अध्ययन करने के लिए राज्य को कम से कम 5 साल के लिए एक अस्पताल और जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्री की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि 9 से 14 वर्ष की आयु की सभी किशोरियों को एचपीवी वैक्सीन की कम से कम एक खुराक जरूर लगनी चाहिए। उन्होंने बताया कि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया का एचपीवी वैक्सीन अभी तीसरे चरण के परीक्षण में है और हम जल्द ही एक प्रभावी और सस्ती भारतीय वैक्सीन प्राप्त करने वाले हैं। गर्भाशय ग्रीवा के प्री-इनवेसिव और इनवेसिव रोग की पहचान के लिए अति संवेदनशील परीक्षण के साथ 30 साल के बाद ही महिलाओं की जांच की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चेदानी के कैंसर के स्थायी उपचार के लिए सर्जिकल और विकिरण सुविधाओं को बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।

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