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Almora: जन आंदोलनकारी एवं गांधीवादी नेता विमल भाई के निधन से वाहिनी दुखी

  • उत्तराखंड लोक वाहिनी का कंधे से कंधा मिलाकर दिया साथ

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
देश के तमाम जनान्दोलनों में सक्रिय रहे गांधीवादी नेता विमल भाई के आकस्मिक निधन से उत्तराखंड लोक वाहिनी बेहद दुखी व स्तब्ध है। वाहिनी नेताओं ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उल्लेखनीय है कि विमल भाई ने उत्तराखंड के जनांदोलनों में वाहिनी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सक्रिय योगदान दिया था। उनके निधन पर वाहिनी नेता पूरन चन्द्र तिवारी, रेवती बिष्ट, दयाकृष्ण काण्डपाल, जगत रौतेला, अजय मित्र बिष्ट, जंगबहादुर थापा, उलोवा अध्यक्ष राजीव लोचन साह ने गहरा दुख व्यक्त करते हुए कहा है कि उनका निधन उत्तराखंड की एक बड़ी क्षति है। इधर, वाहिनी नेताओं ने अल्मोड़ा नगर के प्रतिष्ठित व्यवसायी कुंदन खंपा के आकस्मिक निधन पर भी गहरा दुख व्यक्त किया है।
वाहिनी से रहा गहरा जुड़ाव

एक जिंदादिल एवं सक्रिय आंदोलनकारी विमल भाई का उत्तराखंड लोक वाहिनी से गहरा संबंध रहा। वे नर्मदा बचाओ आंदोलन के महत्वपूर्ण स्तंभ थे और उत्तराखंड में बांधों व पर्यावरण के सवालों पर उनका ज्ञान और संघर्ष अद्भुत था। जब उत्तराखण्ड़ लोक वाहिनी का एक दल राज्य बनने के बाद प्रस्तावित बांधो के खिलाफ गढ़वाल में आन्दोलन में सक्रिय था, तब विमल भाई उस आन्दोलन की रीढ़ थे। तब दिग्गज जन आंदोलनकारी एवं वाहिनी के तत्कालीन अध्यक्ष डा. शमशेर सिंह बिष्ट को तमाम दस्तावेज इकट्टे कर समग्र जानकारी उपलब्ध कराने में उनका अविश्मरणीय योगदान रहता था। उस दौर की यात्राओं में डा. शमशेर सिंह बिष्ट के साथ पूरन चन्द्र तिवारी, अमिनुर्रहमान, दयाकृष्ण काण्डपाल, हरीश मेहता, बसन्त खनी, रामसिंह, मनीष सुन्दरियाल, डा. बनवारी लाल शर्मा के साथ ही बिमल भाई भी सक्रिय रहते थे।

उत्तराखंड में प्रेरक सामाजिक कार्यकर्ता व पर्यावरणविद् सुरेश भाई व विमल भाई अक्सर कई आंदोलनों में साथ-साथ रहे। विमल हिमालय की नदियों को बचाने के लिए कई वर्षों से संघर्षरत चल रहे थे। नदी बचाओ आंदोलन मंे वह अक्सर सक्रिय रहे। वे बांधों के संबंधित जानकारियां व पर्यावरण प्रभाव की आंकलन रिपोर्टें आम जनता के बीच में हिंदी में उपलब्ध करवाते रहते थे, ताकि लोग सटीक जानकारी पाकर जागरूक बनें। उत्तराखंड की नदियों में प्रस्तावित 600 से अधिक बांधों की सूची उन्होंने हमारी गढ़वाल की पद यात्राओं के दौरान तब डा. शमशेर सिंह बिष्ट को भी उपलब्ध कराई थी।

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