Uttarakhand Politics: विद्रोह की प्रक्रिया जारी… एक पक्ष में निराशा और दूसरे में बेचैनी

Uttarakhand: देशभर में चुनाव के वक्त जिस तरह से दलबदल का दौर चल रहा है उससे Uttarakhand भी अछूता नहीं है. पिछले दो महीने में…

Uttarakhand Politics: विद्रोह की प्रक्रिया जारी... एक पक्ष में निराशा और दूसरे में बेचैनी

Uttarakhand: देशभर में चुनाव के वक्त जिस तरह से दलबदल का दौर चल रहा है उससे Uttarakhand भी अछूता नहीं है. पिछले दो महीने में Congress के एक विधायक समेत कई पूर्व विधायक BJP में शामिल हो चुके हैं. स्वाभाविक तौर पर इसका असर यह दिख रहा है कि Congress खेमे में निराशा का माहौल है.

हालांकि इस राजनीतिक घटनाक्रम का एक और पहलू भी है. यानी बाहरी नेताओं की आमद से BJP नेताओं और कार्यकर्ताओं में बेचैनी है. उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि जब इतने सारे पूर्व विधायक और विधायक Congress से पार्टी में आ रहे हैं तो उन्हें कैसे एडजस्ट किया जाएगा?

अगर उन्हें अगले विधानसभा चुनाव में टिकट या बड़ा पद देने का वादा किया गया है तो उनके अपने भविष्य का क्या होगा? विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव पाला बदलने का खेल खूब चलता है. Uttarakhand में इसका भी पुराना इतिहास है। यहां सबसे चर्चित दलबदल 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 2016 में हुआ था. तब करीब 10 महीने की अवधि में एक पूर्व मुख्यमंत्री समेत 12 Congress विधायक BJP में शामिल हो गये थे.

इनमें से नौ विधायकों ने सामूहिक रूप से Congress छोड़ दी थी. इस बार परिदृश्य बदला हुआ है. पिछले साल हरिद्वार जिले में हुए पंचायत चुनाव से पहले बड़ी संख्या में पंचायत प्रतिनिधि Congress छोड़कर BJP में शामिल हो गए थे. तब से यह सिलसिला रुका नहीं है, लेकिन अब इसमें अचानक तेजी आ गई है।

हाल के दिनों में पूर्व विधायक शैलेन्द्र सिंह रावत, विजयपाल सजवाण, धन सिंह नेगी, मालचंद और हाल ही में बद्रीनाथ सीट से Congress विधायक और पूर्व मंत्री राजेंद्र भंडारी ने कांग्रेस छोड़ दी है. इनमें से धन सिंह नेगी को छोड़कर सभी BJP में शामिल हो गए हैं।

पिछला लोकसभा चुनाव गढ़वाल सीट से Congress के टिकट पर लड़ने वाले मनीष खंडूरी भी BJP में शामिल हो गए हैं. पूर्व मंत्री दिनेश धनै भी अब BJP का हिस्सा हैं. एक के बाद एक बड़े नेताओं के Congress छोड़ने से न सिर्फ कार्यकर्ताओं के मनोबल पर असर पड़ा, बल्कि नेताओं में लोकसभा चुनाव के लिए टिकट की दावेदारी को लेकर भी हिचकिचाहट होने लगी.

इसका उदाहरण पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल हैं, जिन्होंने संसाधनों की कमी का हवाला देकर चुनाव नहीं लड़ने की बात कही थी. इसके बावजूद Congress ने उन्हें गढ़वाल सीट से मैदान में उतारा. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह टिहरी गढ़वाल और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने अल्मोड़ा से चुनाव न लड़ने की इच्छा जताई है।

उधर, BJP नेताओं की चिंताएं अलग हैं. पिछले 10 वर्षों में पार्टी में शामिल हुए नेताओं के राजनीतिक पुनर्वास ने कई BJP नेताओं के पैरों के नीचे से राजनीतिक जमीन खिसका दी है। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले Congress से BJP में शामिल हुए सतपाल महाराज को BJP ने 2017 में विधानसभा का टिकट दिया तो तीरथ सिंह रावत को सीट नहीं मिली. यह अलग बात है कि बाद में BJP ने तीरथ सिंह रावत को गढ़वाल सीट से लोकसभा भेजा और फिर वह मुख्यमंत्री भी बने, भले ही चार महीने के लिए.

2017 के विधानसभा चुनाव से पहले BJP ने Congress से आए सभी विधायकों या उनके रिश्तेदारों को टिकट दिया था. इतना ही नहीं, इस चुनाव में जब BJP तीन-चौथाई से ज्यादा बहुमत के साथ सत्ता में आई तो 10 सदस्यीय कैबिनेट में छह सीटें पूर्व Congressmen के पास चली गईं. इनमें सतपाल महाराज, सुबोध उनियाल, हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, रेखा आर्य और पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बेटे सौरभ बहुगुणा के नाम शामिल हैं.

BJP ने पाला बदलने वालों से किया वादा तो निभाया, लेकिन इस बार उन इलाकों के BJP नेताओं को नजरअंदाज कर दिया गया, जो टिकट के स्वाभाविक दावेदार थे. अब BJP संगठनात्मक तौर पर मजबूत और अनुशासित पार्टी मानी जाती है, इसलिए ऊपरी तौर पर तो इस स्थिति को लेकर कोई हलचल नहीं दिखी, लेकिन अंदर ही अंदर नेताओं में बेचैनी जरूर महसूस की गई.

इस चुनाव से पहले बड़ी संख्या में Congress और अन्य दलों के नेताओं के BJP में शामिल होने से कुछ ऐसा ही हो रहा है. खासकर उन क्षेत्रों में जहां विधायक या पूर्व विधायक BJP में शामिल हो गए हैं। जिस तरह से Congress नेता और कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल होने के लिए उमड़ रहे हैं, लोग तो यहां तक कहने लगे हैं कि Congress मुक्त भारत का नारा देने वाली बीजेपी ही Congress हो गई है.

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