भारत की दो ताजा खबरों ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है एक है उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से और दूसरी पंजाब के बठिंडा से। पहली में बेरोजगारी से परेशान व्यक्ति की पत्नी जब घर से चली गई ता उसने तीनों बच्चों के साथ विषपान कर लिया, मरने से पहले उसने अपने दो बैलों को भी जहर दे दिया।
जबकि दूसरी घटना में पत्नी की कैंसर से मौत के बाद आर्थिक व पारिवारिक संकट झेल रहे व्यक्ति ने अपने तीन बच्चों को फांसी पर लटका कर स्वयं भी आत्म हत्या कर ली। इन दोनों घटनाओं का जिक्र हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि यह घटनाएं अपराध की श्रेणी में आते हुए भी सामाजिक रूप से अपराध से बाहर हैं। दरअसल यह मामले सीधे सीधे जुड़े हैं मानसिक अवसाद के और कोरोना काल में आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक और मानसिक संतुलन बिगड़ने की घटनाओं में तेजी से इजाफा हुआ है। आज इन घटनाओं और इनो जुड़े कारणों का जिक्र इसलिए भी समाचीन हो जाता है कि आज विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस भी है।
इन मामलों को लेकर सीएनई गया मनोचिकित्सक डा. नेहा शर्मा के पास। उनका कहना है कि किसी भी व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य उसके जीवन में परिस्थितियों के साथ संतुलन बैठाने की क्षमता पर निर्भर करता है। डॉक्टर नेहा शर्मा ने अनेक मानसिक रोगियों पर शोध कर यह देखा है कि शारीरिक व मानसिक अंत:क्रिया में मन की मुख्य भूमिका होती है।
मन की स्थिति ही व्यक्ति के अधिकांश व्यवहार का चेतन व अचेतन रूप में दिखाती है। व्यक्ति का मन ही है जो उसके व्यक्तित्व का व्यवहारिक नियंत्रण करता है। डॉक्टर नेहा ने बताया कि इस वक्त हर पांच में तीन व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ है। वे चेताती है कि जिस तरह की परिस्थितियां विश्व भर में पैदा हो रही हैं उसको देखकर लगता है कि आने वाले समय में दुनिया भर में मानसिक रोगों की सुनामी आने वाली है।
उनका कहना है कि व्यक्ति के विचारों पर उसका मानसिक स्वास्थ्य निर्भर करता है आजकल हम रोज के जीवन में होने वाली घटनाओं जैसे आत्महत्या, हत्या, चोरी, मारपीट, नशा व सभी प्रकार की व्यवहारिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। ये सभी व्यक्ति के मानसिक अस्वस्थता का कारण भी बन रही हैं।
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डॉ शर्मा के अनुसार किशोरों से स्नेह व सहानुभूति पूर्वक व्यवहार करना होगा। बालकों के चरित्र निर्माण पर विशेष ध्यान दें। बच्चों को उनकी क्षमता व रूचि के अनुसार विषय चुनने की आजादी दें। किशोरों को पढ़ाई के साथ ही स्वास्थ्य मनोरंजन व उसकी रुचि के अनुसार खेल इत्यादि के अवसर उपलब्ध कराने चाहिए। अभिभावकों— बच्चों व टीचरों के बीच अच्छे व सकारात्मक संबंध होने चाहिए।
जिससे उनके मन पर अच्छी बातों का असर पड़े। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए नैदानिक, मनोवैज्ञानिक मनोचिकित्सक से मानसिक स्वास्थ्य जांच के लिए मनोवैज्ञानिक टेस्ट, टॉक थैरेपी रिलैक्सेशन थेरेपी व करियर का मूल्यांकन करवाना चाहिए। डॉक्टर नेहा शर्मा ने बताया कि मानसिक अस्वस्थता एक जटिल समस्या है, जिससे केवल रोगी ही नहीं बल्कि पूरा परिवार प्रभावित होता है। इस समस्या को सही करने व कम करने के लिए आज पूरे विश्व में जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है।
मानसिक अस्वस्थता को सही करने के लिए सबसे पहले इन के कारणों का पता करना होगा। इस तरह के व्यक्ति को मानसिक चिकित्सालय में उपचार व मनोरोग विशेषज्ञों से परामर्श करवाना चाहिए। अगर व्यक्ति में विचारों की गड़बड़ी ही है तो उसका उपचार साइकोलॉजिकल टेस्टों के बाद किया जा सकता है। मानसिक रोगों में 90% व्यक्ति साइकोलॉजिकल होते हैं और पांच प्रतिशत ही व्यवहारिक तौर पर मानसिक रोगी दिखाई पड़ते हैं। गंभीर रोगियों में दवाइयां भी दी जा सकती हैं।
ऐसे करें मानसिक रूप से स्वस्थ्य व्यक्तियों की पहचान
मानसिक स्वास्थ्य व्यक्ति को अपनी प्रेरणा इच्छा भाव व आकांक्षाओं का पूर्ण ज्ञान होता है। संवेदनात्मक परिपक्वता, आत्मविश्वास व आशावादी होना मानसिक स्वस्थ व्यक्ति की पहचान है। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति के अंदर सुरक्षा का भाव रहता है। वह जीवन से व्यावहारिक व वास्तविक अपेक्षाएं रखता है। उसके अंदर संतोषजनक संबंध बनाए रखने की क्षमता बनी रहती है। वह एडजस्टमेंट करने के गुण से परिपूर्ण होता है।
खुश रहने की क्षमता से लबरेज रहता है। सहज स्वभाव व सामाजिक रूप से उच्च मनोबल से भरा होता है। वह तलाव को अति संवेदनशीलता से परे होता है। वह जिंदगी को स्पष्टता व वास्तविकता में जीना पसंद करता है। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति दूसरे से प्यार व स्नेह पूर्ण व्यवहार करता है।