‘The Kashmir Files’ movi
आज़ादी के बाद से पहली बार कश्मीरी पंडितों का दर्द आज पूरी दुनियां के सामने प्रकट हुआ है। भारतीय इतिहास में एक बड़ी साजिश के तहत कश्मीर से भगाये गये अल्पसंख्य हिंदुओं की पीड़ा को बयां ही नहीं होने दिया गया था। किंतु आज एक ऐसी फिल्म पूरे देश में रिलीज हो चुकी है, जो कश्मीर से अल्पसंख्यक हिंदू पंडितों का पलायन और उनकी दुर्दशा की सच्ची कहानी को बयां कर रही हैं यह फिल्म है ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files Review), जो आपको झकझोर कर रख देगी।
यह फिल्म 1990 के दशक की कश्मीर घाटी को दिखाती है। कश्मीरी पंडितों पर आतंकियों के जुल्म को दिखाती है। इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा पंडितों को उनके घरों से भागने के लिए मजबूर किए जाने की कहानी कहती है।
अपने ही देश में क्षरणार्थी बनकर रहना क्या होता है, यह उनसे पूछिये जिन्होंने उस भयंकर त्रासदी को झेला है। ‘द कश्मीर फाइल्स’ उस त्रासदी का दंश झेल चुके ऐसे ही लोगों की सच्ची कहानियों पर आधारित है। वो जिन्हें शरणार्थी कहा गया। फिल्म एक तर्क देती है कि यह सिर्फ एक पलायन नहीं था, बल्कि एक बर्बर नरसंहार था, जिसे राजनीतिक कारणों से दबा दिया गया। ये लोग लगभग 30 साल से निर्वासन में रह रहे हैं, उनके घरों और दुकानों पर अब इतने वक्त में स्थानीय लोगों ने कब्जा कर लिया है। कश्मीरी पंडित आज भी न्याय की उम्मीद करते हैं और सबसे जरूरी बात यह कि उन्हें उनका सम्मान, उनकी पहचान मिलनी चाहिए। हैरानी की बात यह है कि हिंदी सिनेमा पर इससे पहले इन विस्थापित परिवारों के दर्द को उकेरने का प्रयास तक नहीं किया गया।
विवेक अग्निहोत्री की यह फिल्म पलायन की त्रासदी की समीक्षा करती है। यह उस दौर के रिपोर्टों पर आधारित है। कश्मीरी पंडितों द्वारा कही जा रही खुद की कहनी पर आधारित है। धर्म के कारण उनके साथ जो क्रूरता हुई, फिल्म इस पर भी बात करती है। फिर चाहे वह टेलीकॉम इंजीनियर बीके गंजू की चावल के बैरल में हत्या हो या नदीमार्ग हत्याकांड, जहां 24 कश्मीरी पंडितों को सेना की वर्दी पहने आतंकवादियों ने मार दिया था। फिल्म इन सच्ची घटनाओं एक उम्रदराज राष्ट्रवादी, पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर), उनके चार सबसे अच्छे दोस्त और उनके पोते कृष्णा (दर्शन कुमार) की आंखों से देखते हैं। यह अपने अतीत से बेखबर कृष्णा के लिए भी सच की खोज की कहानी बनती है।
कहा जा सकता है कि पुराने जख्मों से पट्टी हटाना, समाधान नहीं है। लेकिन उपचार भी तभी संभव है, जब चोट को स्वीकार कर लिया जाए। विवेक अग्निहोत्री ने फिल्म में बर्बर घटनाओं को दिखाने में कहीं भी संकोच नहीं किया है। न ही उसपर कोई फिल्टर डाला है, ताकि उसके प्रभाव को कम किया जाए। ऐसे में हम पर्दे पर जो भी देखते हैं, वह बहुत ही गंभीर है और गहन भी। फिल्म में कई मुद्दों को समेटने की कोशिश की गई है, इसमें जेएनयू की बात है, मीडिया की तुलना आतंकवादियों की रखैल से की गई है, विदेशी मीडिया पर सिलेक्टिव रिपोर्टिंग का आरोप लगाया गया है, भारतीय सेना, राजनीतिक युद्ध, अनुच्छेद 370 और पौराणिक कथाओं से लेकर कश्मीर के प्राचीन इतिहास तक, फिल्म में सबकुछ एकसाथ दिखाया गया है।
इस फिल्म में अनुपम खेर ने सशक्त अभिनय की छाप छोड़ी है। पर्दे पर उन्हें देखकर, उनके दर्द को समझते हुए आपका गला भी बैठ जाता है। वह अपने खोए हुए घर के लिए तरस रहे एक इंसान के रूप में बेहतरीन हैं। पल्लवी जोशी भी उतनी ही प्रभावशाली रही हैं। बतौर दर्शक, आपको यह कमी खलती है कि पल्लवी जोशी के किरदार में कुछ और भी होना चाहिए था। चिन्मय मंडलेकर और मिथुन चक्रवर्ती ने अपने-अपने रोल के साथ न्याय किया है।
तमाम विरोध के बावजूद फिल्म सुपर हिट
अपनी रिलीज के पहले दिन यानी 11 मार्च को ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने जबरदस्त कमाई है, वो भी तब जबकि बॉलीवुड गैंग के दबाव में यह सिर्फ 550 स्क्रीन पर रिलीज हो पाई। बताया जा रहा है कि पहले दिन इस फिल्म 2.5 करोड़ से 3 करोड़ रुपए की बीच कमाई की है। यह हाल में रिलीज हुई बॉलीवुड की कई फिल्मों की पहले दिन की कमाई से बेहतर है। बीतने वाले हर एक दिन के साथ फिल्म की कमाई बढ़ने की उम्मीद है। वहीं, कुछ सिनेमाघरों में फिल्म के कुछ हिस्सों को म्यूट (आवाज बंद करना) करने की भी कोशिश की गई। महाराष्ट्र के भिवंडी स्थित PVR सिनेमा में फिल्म के एक हिस्से में आवाज को बंद कर दिया गया। दर्शकों का आरोप है कि चिन्मय मंडेलकर के हिस्से वाले के संवाद को जानबूझकर बंद कर दिया गया। इसके बाद दर्शक भड़क उठे।
गौरतलब है कि इस फिल्म को रिलीज से रोकने के लिए निर्देशक विवेक अग्निहोत्री को हर तरह से घेरने की कोशिश की गई थी। अग्निहोत्री को जान से मारने की धमकी दी गई थी। जब वो नहीं माने तो इस फिल्म को रोकने के लिए कोर्ट में याचिका दी गई कि इससे मुस्लिमों की भावनाएँ आहत होती हैं। हालाँकि, फिल्म पर रोक नहीं लगी, लेकिन जम्मू की अदालत ने सैन्य अधिकारी रवि खन्ना से जुड़ा सीन हटाने को कहा। सेंसर बोर्ड ने कुछ सीन को कट करने और नाम बदलने के लिए कहा। उसके बाद फिल्म में JNU का नाम बदलकर ANU कर दिया गया।
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