बागेश्वर। जनपद में कोरोना से ज्यादा खतरनाक गलघोंटू बीमारी हो गई है। कोरोना से जहां तीन मौते हुई है।वहीं गलघोटूं से 8 बच्चों की मौत हो गई है। प्रशासन का सिर दर्द बनी गलघोटूं का किसी के पास भी कोई वाजिफ जवाब नहीं है।कपकोट के चचई गांव में सात मासूमों की जान लेने वाली ये बीमारी अब गरुड़ के सिमखेत गांव पहुंच गयी है।गांव की एक बच्ची की कल एसटीएच हल्द्वानी में मौत हो गई थी।डाक्टरों ने मौत का कारण गलघोटूं बीमारी बताया था। जिसे अब पूरा क्षेत्र दहशत व्यापत है।इधर स्वास्थ्य महकमा फिर किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया है। कपकोट चचई गांव से जिले के स्वास्थ्य महकमें को कुछ राहत मिली थी कि सिमखेत के मामले ने फिर गंभीरता बढ़ा दी है। सिमखेत गांव की बेटी हर्षिता अचानक एक दिन बुखार की चपेट में आती है।परिजन उसे अस्पताल ले जाते है।तब पता चलता है कि हर्षिता जानलेवा गलाघोटूं की चपेट में आ चुकी है। जिला अस्पताल बागेश्वर के डाक्टरों ने बच्ची का इलाज किया ।जहां स्वास्थ्य में सुधार ना होने पर परिजन उसे हल्द्वानी ले गए ।कल इलाज के दौरान उसका निधन हो गया।आज सुबह परिजन मासूम का शव लेकर गांव पहुंच चुके हैं।मासूम बच्ची की गलाघोटूं से मौत से क्षेत्रवासी स्तब्ध हैं।
क्या कहते है एक्सपर्ट इस बीमारी पर
डिप्थीरिया का पूरा नाम कोरीनेबैक्टीरियम डिप्थीरिया है ये बीमारी डिप्थीरी नामक एक बैक्टीरिया की वजह से फैलता है। इस बीमारी को गलघोंटू के नाम से भी जाना जाता है। यह एक प्रकार की संक्रामक बीमारी होती है जो कि किसी पीड़ित व्यक्ति के सम्पर्क में आने से या उसके द्वारा उपयोग में ली गई किसी वस्तु को छूने से भी फैल सकती है। जब डिप्थीरिया से पीड़ित व्यक्ति के छींकने, खांसने और और बहती हुई नाक से बैक्टीरिया हवा में प्रवेश करके उसके सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति को संक्रमित कर देते हैं।डिप्थीरिया का बैक्टीरिया हर साल सितंबर महीने में क्टिव हो जाता है और अक्टूबर महीने के बाद इसमें कमी आनी शुरू हो जाती है। इसकी वजह से हर साल कई बच्चों की मौत हो जाती है।
बीमारी के लक्षण
- सांस लेने में कठिनाई
- गर्दन में सूजन
- ठंड लगना
- बुखार
- गले में खराश, खांसी
- इंफेक्शन मरीज के मुंह, नाक और गले में रहता है और फैलता है।
इन बातों का रखें ध्यान
- डिप्थीरिया बैक्टीरिया उन्हें जल्दी अपना शिकार बनाता है जिन्होंने डिप्थीरिया का वैक्सीनेशन नहीं कराया हो।
- गंदे और भीड़ वाले इलाकों में ये बीमारी फैलने का ज्यादा डर रहता है।
- डिप्थीरिया से प्रभावित क्षेत्रों में जाने से बचें।
- ऐसे व्यक्ति के सम्पर्क में जाने से बचें जो पहले से किसी संक्रमण या महामारी से पीड़ित हो।
वैक्सीनेशन है जरूरी-
वैक्सीनेशन से बच्चे को डिप्थीरिया बीमारी से बचाया जा सकता है। नियमित टीकाकरण में डीपीटी (डिप्थीरिया, परटूसस काली खांसी और टिटनेस) का टीका लगाया जाता है। 1 साल के बच्चे को डीपीटी के 3 टीके लगते हैं। इसके बाद डेढ़ साल पर चौथा टीका और 4 साल की उम्र पर पांचवां टीका लगता है। टीकाकरण के बाद डिप्थीरिया होने की संभावना नहीं रहती है।
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