प्रेरणादायी: शिक्षिका लता तोड़ रही मिथक, उच्च शैक्षिक योग्यता के बावजूद किसानी

—मशरूम उत्पादन के साथ अब बंजर भूमि में खेती की ठानी—दूध वाली अम्मा व महिला हाट की सचिव से मिली प्रेरणासीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ायह सर्वविदित ही…

—मशरूम उत्पादन के साथ अब बंजर भूमि में खेती की ठानी
—दूध वाली अम्मा व महिला हाट की सचिव से मिली प्रेरणा
सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
यह सर्वविदित ही है कि मौजूदा दौर में नारी किसी मायने में पुरूष से कम नहीं है। पहाड़ों में भी पुरूषों की तरह पर्वतीय नारियां उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद नौकरियां कर रही हैं और कई उच्च पदों पर कार्यरत हैं। ऐसी ही कामकाजी व पढ़ी—लिखी नारियों में शुमार अल्मोड़ा के चितई निवासी लता कांडपाल ने अपने उल्लेखनीय कार्यों की बदौलत समाज को एक नई दिशा और प्रेरणा देने का काम किया है।

जहां पढ़ी—लिखी लड़कियां या महिलाएं घर का काम या खेती कार्य से परहेज कर रही हैं, वहीं उच्च शिक्षा प्राप्त लता कांडपाल ने समाज के एक बहुत बड़े मिथक को तोड़ा हैं। अल्मोड़ा के निकटवर्ती चितई गांव निवासी लता कांडपाल की शैक्षिक योग्यता एमए, बीएड है और इसके अलावा उन्होंने एनटीटीसी कोर्स, म्यूजिक कोर्स भी किया है। उन्होंने महर्षि विद्या मंदिर बाड़ेछीना अल्मोड़ा में डेढ़ दशक तक शिक्षण कार्य किया है। इस विद्यालय में उन्होंने 10 साल तक सहायक अध्यापक के तौर पर अध्यापन किया और 05 साल तक वह विद्यालय में उप प्रधानाचार्य रहीं। कोरोना काल में उन्होंने विद्यालय छोड़ दिया। इसकी वजह वह पारिवारिक परेशानी बताती हैं। वह कभी खाली बैठना पसंद नहीं करती। यहां तक कि उक्त विद्यालय में रहते उन्होंने बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी संभाली और जो वक्त मिलता, उसमें उन्होंने ट्यूशन पढ़ाने का काम किया।

उनके पति राजू कांडपाल महिला हाट संस्था अल्मोड़ा के समन्वयक हैं। लता ने उक्त विद्यालय छोड़ने के बाद खाली बैठना उचित नहीं समझा। अपने बच्चों को पढ़ाने व घर जिम्मेदारियों को निभाने के साथ ही वह कुछ नया करने की मंशा से महिला हाट संस्था से जुड़ गई। उन्होंने महिला हाट के जरिये ट्रेनिंग ली। गत वर्ष उन्होंने करीब 25—30 बैग्स से मशरूम उत्पादन शुरू किया। जिसमें उन्हें आशातीत सफलता मिली है। लता बताती है कि इसमें से उन्हें आमदनी होने लगी है और पहले प्रयास में ही उन्होंने सभी खर्चे काटकर स्वयं उत्पादित मशरूम की मार्केटिंग कर करीब 25 हजार रुपये तक का मुनाफा कमाया। इसके अलावा कई महिलाओं को वह मशरूम उत्पादन की सीख दे रही हैं और प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें मुफ्त मशरूम भी दिया। वह महिलाओं को खेती व मशरूम उत्पादन के लिए प्रेरित भी कर रही हैं, ताकि आत्मनिर्भरता आए। इस सबके बावजूद लता ने अपनी म्यूजिक की आगे की पढ़ाई भी शुरू कर दी है। लता अब एक और नया सकारात्मक कदम उठाने जा रही हैं। उन्होंने अब अपनी बंजर पैतृक जमीन पर खेती का काम शुरू किया है और उनका इरादा है कि इस बंजर जमीन को धीरे—धीरे आबाद करना है।

लता कांडपाल।

लता एक नेक संदेश महिलाओं को देना चाहती है। लता कहती हैं कि आजकल पहाड़ में नया ट्रेंड चल चुका हैं कि पढ़ी—लिखी लड़की खेती कार्य से दूरी बनाकर चल रही हैं। उनका कहना है कि शादी से पहले ही कई लोग अपनी बेटी को खेती का काम नहीं आने या खेती कार्य नहीं कर पाने की बात कह देते हैं। उनका मानना है कि जज्बे के सामने ऐसा कुछ नहीं होता। वह उच्च शिक्षित होने के बावजूद खुद इस कार्य को करके यह साबित करना चाहती हैं कि उच्च शिक्षित बेटी या महिला भी खेती कार्य कर सकती है। उनका लक्ष्य आजकल के मिथक को तोड़ना है और एक सकारात्मक संदेश देना है। लता बोलती है कि वह अब खेती करके दिखाएंगी। उनका लक्ष्य इस दिशा में लोगों को जागरूक करना है।
दूध वाली अम्मा से मिली प्रेरणा

अल्मोड़ा: जब लता से इस प्रेरणादायी पहल की प्रेरणा के बारे में पूछा, तो लता ने बताया ​कि उनके घर में पहले दूध देने आने वाली एक अम्मा आती थी। एक​ दिन लता ने अम्मा से पूछा कि आप भी दूध पीती होंगी, तो वृद्धा ने बताया कि जितना दूध उनका दुधारू पशु देता है, वह आमदनी के लिए घर—घर दे देती हैं। उनके खुद के लिए बचता ही नहीं। अम्मा ने बताया कि सुबह से शाम तक दुधारू पशुओं के चारे—पानी की व्यवस्था में काफी में मेहनत लगती है। तब इतना दूध​ मिल पाता है। इस पर लता ने उनसे पूछा कि बहुएं हाथ बटाती होंगी, तो वृद्धा बोली कि आजकल पढ़ी—लिखी बहुएं हैं। पशुपालन व खेती का काम नहीं करती। इससे लता मन काफी पसीजा। तभी उनके मन में इस मिथक को तोड़ने का विचार का आया। इतना ही नहीं ​जो दूध घर में उन्होंने लगाया ​था, तब से वह उसमें से गरम कर एक गिलास दूध उसी वृद्धा को पिलाती। लता का कहना है कि महिला हाट की सचिव कृष्णा बिष्ट ने भी उन्हें खेती के लिए काफी प्रेरित किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *