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ऋषिकेश : एम्स में वर्ल्ड एंटीमाइक्रोबेल एवरनैस वीक कार्यक्रम में चिकित्सकों ने लोगों को किया जागरुक

देहरादून। अ​खिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में वर्ल्ड एंटीमाइक्रोबेल एवरनैस वीक के अंतर्गत आयोजित कार्यक्रम में विभिन्न विभागों के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने व्याख्यान प्रस्तुत किए। वक्ताओं ने बिना विशेषज्ञ चिकित्सकों के परामर्श के एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग से होने वाले नुकसान को लेकर लोगों को जागरुक किया। कार्यक्रम में एम्स के विभिन्न विभागों के फैकल्टी, चिकित्सक, नर्सिंग ऑफिसर्स व कर्मचारी हिस्सा ले रहे हैं। निदेशक एम्स पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत की देखरेख में आयोजित सप्ताहव्यापी जनजागरुकता कार्यक्रम के दूसरे दिन बृहस्पतिवार को संस्थान की बाल चिकित्सा सर्जरी विभाग की प्रमुख प्रो. बी. सत्याश्री ने अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि बच्चों में किसी भी दवाई या एंटीबायोटिक को देने में सतर्कता बरतना कितना जरूरी है। उनका कहना है कि वह अपने विभाग में हर वह कोशिश करती हैं जिससे बच्चों की देखभाल में कोई कमी नहीं रहे और कोई भी दवाई या एंटीबायोटिक देने से पहले कल्चर या सेंसटिविटी टेस्ट कराते हैं।

उन्होंने बताया कि आजकल यह भी देखा जा रहा है कि घर पर यदि कोई बच्चा बीमार हो जाता है, तो उसके परिवार वाले बाहर से ही किसी केमिस्ट से उसे दवाई दे देते हैं या एंटीबायोटिक के इंजेक्शन भी लेते हैं, जो कि बहुत गलत है। ऐसे में हमारा कर्तव्य बनता है कि हम इस प्रथा को खत्म करने के लिए आगे आएं और सभी को इस बारे में जागरूक करें कि एंटीबायोटिक का बिना डाक्टर की प्रिसक्रिप्शन के उपयोग करना कितना हानिकारक साबित हो सकता है।

सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर एंड हेड डॉ. पुनीत धर ने भी एंटीमाइक्रोबॉयल के सही इस्तेमाल करने एवं इन दवाओं का दुरुपयोग नहीं करने पर जोर दिया। उनका कहना है कि एंटीबायोटिक्स का सही से इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है और आज यह स्थिति पहुंच गई है कि यह जानलेवा भी हो सकते हैं। जिसका कारण एंटीमाइक्रोबॉयल रेजिस्टेंस है, लिहाजा उन्होंने आग्रह करते हुए कहा कि एंटीमाइक्रोबियल्स या एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बिना प्रिसक्रिप्शन के नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि एंटीबायोटिक्स के सही इस्तेमाल के लिए सही नीतियों का होना भी बहुत जरूरी है। जैसे एंटीमाइक्रोबियल्स स्टीवार्डशिप के अंतर्गत हम सही नीति बनाकर सबके साथ साझा कर उसे इस्तेमाल में ला सकते हैं।

प्रसूति एवं स्त्री रोग विभागाध्यक्ष प्रोफेसर जया चतुर्वेदी ने मल्टीड्रग प्रतिरोधी बैक्टीरिया के विषय में जानकारी दी, उन्होंने कहा कि अगर हम हर छोटी बीमारी जुकाम, खांसी होने पर भी एंटीबायोटिक लेंगे, तो यह हमारे शरीर में रजिस्टेंस पैदा कर सकते हैं और यह बैक्टीरिया आगे चलकर बीमारी फैलाने का कारण बन सकता है, लिहाजा इसके लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि हम दवाई का सही समय, सही अवधि तक उसका इस्तेमाल करें। उन्होंने अनुरोध किया है कि इसके सही इस्तेमाल के लिए सही व्यवस्था और ऑडिट करना जरूरी है ताकि इनके इस्तेमाल पर नजर रखी जा सके और इससे एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग रोका जा सके।

संस्थान के सामान्य सर्जरी विभागाध्यक्ष प्रो. डा. सोम प्रकाश बासु ने सर्जरी विषय पर अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि ऑपरेशन के बाद मरीज के लिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कितना जरूरी है, उनका कहना है कि जरूरत से ज्यादा और आवश्यकता से कम एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल मरीज के लिए कितना हानिकारक हो सकता है, जिसे समय पर समझना बहुत जरूरी है। डा. बासु के अनुसार बिना चिकित्सक की सलाह के इन एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किया जाना बंद होना चाहिए और इसके लिए कड़ी नीतियों का बनना उतना ही आवश्यक है। नेत्र विभागाध्यक्ष प्रो. संजीव कुमार मित्तल ने बताया कि अमूमन देखा गया है कि आंखों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले एंटीबायोटिक का उपयोग सही तरीके से नहीं किया जाता है और लोग स्वयं ही केमिस्ट के पास जाकर कोई भी एंटीबायोटिक आंखों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कुछ एंटीबायोटिक जो आंखों के ऑपरेशन के बाद इस्तेमाल किए जाते हैं, उनमें कुछ मात्रा में स्टेरॉयड भी मौजूद होते हैं, लेकिन इनका एक साथ इस्तेमाल होना हानिकारक हो सकता है, ऐसे में यदि इसे सही अवधि तक नहीं लिया जाए। लिहाजा इनका इस्तेमाल अलग-अलग होना चाहिए और कोई भी एंटीबायोटिक को धीरे-धीरे नहीं बल्कि डॉक्टर द्वारा निर्धारित अवधि खत्म होने पर बंद कर देना चाहिए।

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