आनंद नेगी, भिकियासैंण
पहाड़ को देवभूमि नाम यूं ही नहीं मिला है, बल्कि यहां विभिन्न देवी—देवताओं की मान्यता व पूजा—अर्चना का विधान सालों—साल से चला आ रहा है। इन्हीं में एक हैं भूमिया देवता, जिन्हें भूमिया बूबू के नाम से भी जाना जाता है। कुमाऊं मंडल में भूमिया देवता के प्रति अटूट आस्था है।
उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में आजकल भूमिया देवता के पूजन का सिलसिला जारी है। ग्रामीणों की मान्यता है कि भूमिया बूबू जान—माल, पशुधन और फसलों की रक्षा करते हैं और विपदाओं का हरण करते हैं। प्रति वर्ष रबी और खरीफ की फसलों की कटाई के बाद गेहूं और धान के आटे से भूमिया बूबू के थान अर्थात मंदिर में पुवे और साई (एक विशेष प्रकार का पकवान) बनाया जाता है।
तेल में तले इन पकवानों को सर्वप्रथम भूमिया बूबू और उनके सहयोगी देवताओं को चढ़ाया जाता है। इसके बाद श्रद्धालुओं में इन पकवानों का प्रसाद के रूप मेंं वितरण किया जाता है। पकवानों के लिए सभी आवश्यक चीजें गांव के हर घर से एकत्र की जाती हैं। रामनगर-बदरीनाथ मार्ग पर भतरोंजखान व भिकियासैंण के मध्य रापड़ गांव में भूमियाधार स्थित भूमिया बूबू के प्रति पूरे क्षेत्र के लोगों की गहरी आस्था है।
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नवरात्रि के चलते शनिवार को यहां भूमिया बूबू के मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन हुआ। ग्रामीणों ने बताया कि जंगली जानवरों के आतंक और पलायन के कारण पूरी भूमि बंजर हो गई है। भूमिया बूबू के मंदिर में पुवे पकाने के लिए आटा, तेल, गुड़ आदि सभी चीजों की व्यवस्था दुकान से खरीद कर की गयी है। पहले अलग-अलग स्थानों पर भूमिया के चार मंदिरों में पूजा की जाती थी। अब भूमिया धार स्थित मुख्य मंदिर में यह कार्यक्रम होता है।
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