दिनकर जोशी, सोमेश्वर
सोमेश्वर। यूं तो सरकार खेतीबाड़ी को बढ़ावा देने की बात कर रही है और कृषि का आय को स्रोत बनाने तथा नई-नई कृषि तकनीकें अपनाने की दिशा में प्रेरित कर रही है। मगर जंगली जानवरों से फसल को बचाना काश्तकारों के पास कोई विकल्प नहीं है और शासन-प्रशासन भी साल-दर-साल बढ़ती इस समस्या को सुन चुप्पी साध लेता है। ऐसे में कृषि विकास और कृषकों की कृषि आय पर बड़ा प्रश्नचिह्न लग रहा है। ये प्रश्नचिह्न बंदरों व सुअरों के आतंक ने लगाया है। इस समस्या का कोई स्थाई समाधान नहीं किया जा रहा। इसी समस्या का एक बड़ा उदाहरण सोमेश्वर बना है।
सोमेश्वर क्षेत्र में किसान और दुकानदार सभी दुखी हैं। यहां तक कि वे लोग भी परेशान हैं, जो न तो दुकानदार हैं और न ही किसान। क्षेत्र में कभी खेती को सुअर रौंद देते हैं, तो बारह महीने बंदरों के झुंड खेती को पनपने नहीं देते। ऐसे में किसान करें भी तो क्या। खेतों में हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद हर फसल बंदरों के भेंट चढ़ जाती है। इससे किसान खेती से ऊब रहे हैं। यह संकट खेती से विमुखता पैदा कर रहा है। ये बंदर खेतों व उद्यानों तक ही सीमित नहीं हैं, इन्हें मानव को अब कोई खौफ नहीं रहा। सरेआम बाजार की दुकानों से फल, सब्जी व प्रचून के सामान में हाथ साफ कर दुकानदारों को हानि पहुंचा रहे हैं। प्रचून की दुकानों से बिस्कुट, कुरकुरे, चिप्स व टाफी आए दिन साफ करना आम बात हो गई है।
ऐसे में दुकानदार परेशान हैं। इनदिनों बेल वाली सब्जियों को भारी नुकसान बंदर पहुंचा रहे हैं। इतना ही नहीं घरों में घुसकर सामान उठा रहे हैं। भगाने पर काटने आते हैं। ऐसे में छोटे बच्चों व अन्य लोगों को कटखने बंदरों से खतरा अलग रहता है। क्षेत्रीय लोग बार-बार बंदरों के आतंक से निजात दिलाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन कोई कदम उठता नहीं दिखता। यह समस्या अकेले सोमेश्वर की नहीं है, बल्कि पहाड़ के तमाम गांवों, शहरों व कस्बों की है। मगर इस समस्या के स्थाई समाधान की कोई योजना सरकार नहीं बना पा रही है। यदि यही हाल रहा तो समस्या विकट रूप लेकर लोगों का खेती से मोहभंग कर देगी। सरकार को इसका समाधान निकालना चाहिए। ऐसा लोगों का कहना है।