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अल्मोड़ा: आसमान छू रहे विकास के दावे, लेकिन किसानों को नहीं मिला कोल्ड स्टोर

अल्मोड़ा जिले की 06 विधानसभाओं के काश्तकारों की बहुप्रतीक्षित मांग
चन्दन नेगी, अल्मोड़ा

उत्तराखंड के चहुंमुखी विकास की मंशा से अलग उत्तराखंड राज्य मांगा गया और अथाह संघर्ष के बाद राज्य अस्तित्व में भी आया। तब से विधानसभा चुनाव में हर दल व नेता विकास—विकास की रट लगाए हैं। कोई विकास में आसमान छूने की बात कर रहा, तो कोई चुनाव जीतने पर विकास में चार चांद लगा देने के वायदों की बौछार कर रहा है। ऐसी बातें पहली बार नहीं हो रही, बल्कि पिछले कई चुनावों से होते आ रही हैं। इसके बावजूद कई जरूरतें ऐसी हैं, जो विकास के दावों की हवा निकाल ​रहे हैं। ऐसी ही समस्याओं में 06 विधानसभाओं को समेटे अल्मोड़ा जिले की कोल्ड स्टोर की समस्या है। जिले से कई विधायक, सांसद व मंत्री बनते रहे हैं, किंतु पूरे जनपद में एक अदद कोल्ड स्टोर की दरकार आज तक पूरी नहीं हो सकी। एक भी कोल्ड स्टोर जिले में नहीं है।(आगे पढ़िये)

पहाड़ से पलायन रोकने के लिए खेती पर पिछले कुछ सालों से खासा जोर दिया जा रहा है। मगर दूसरी ओर मूलभूत सुविधाएं अपर्याप्त हैं। अल्मोड़ा जनपद में हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि है, जिसमें गेहूं, मंडुवा, धान व​ विभिन्न दालों के अलावा कई क्षेत्र सब्जी व फलोत्पादन में अग्रणी हैं। जिले में फलों में खासकर आम, सेब, अखरोट, नासपाती, आड़ू, पुलम, खुमानी, माल्टा, संतरा, केला, अंगूर आदि अलग—अलग हिस्सों में बहुतायत होता है। इसके अलावा अलग—अलग सीजन में आलू, प्याज, शिमला मिर्च, टमाटर, हरी सब्जियां और मशाले से जुड़े कृषि उत्पादों का उत्पादन होता है, लेकिन किसानों को हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद कई बार इनका लागत मूल्य तक नहीं मिल पाता, जबकि कई किसान कृषि ऋण लेकर उत्पादन करते हैं। इसकी खास वजह है जिले में कोल्ड स्टोर की सुविधा का अभाव। (आगे पढ़िये)

जिले में एक भी कोल्ड स्टोर आज तक स्थापित नहीं हो सका। जिससे सीजन में फल व सब्जियां ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाती और खराब होकर बर्बाद हो जाती हैं। जिससे सीधा और काफी नुकसान किसानों को होता है। हर सीजन में भंडारण सुविधा के अभाव में हजारों कुंतल सब्जियां व फल खराब हो जाते हैं। फलों व सब्जियों के खराब होने के भय से किसान औने पौने दामों में इन्हें बेचने को मजबूर हो जाते हैं। जिससे लागत मूल्य की भरपाई तक नहीं हो पाती है। किसान की कोल्ड स्टोर की दरकार दशकों पुरानी है, जो आज तक पूरी नहीं हो सकी। उद्यान विभाग के पास एक ही जवाब होता है कि प्रस्ताव शासन को भेजा है और शासन स्तर पर इस दिशा में जोर देने की फुर्सत संबंधित जनप्रतिनिधियों को नहीं मिलती। ऐसे में मांग धरी की धरी रह गई। (आगे पढ़िये)

दूसरी समस्या है खेती पर जंगली जानवरों सुअर, बंदर व आवारा पशुओं का आतंक। यह समस्या भी विकट बनती जा रही है, मगर इसका भी कोई स्थाई समाधान नहीं हो सका। यह समस्याएं कृषि से मोह भंग कर रही हैं, लेकिन आज तक किसी भी जनप्रतिनिधि को इस ओर सोचने की फुर्सत नहीं मिल पाई। ना ही सरकारें इस समस्या को दूर कर सकी।

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