- आचार्य भगवान देव ‘चैतन्य’, हिमाचल प्रदेश
गांव में चोरी और हत्या जैसी वारदातें जब बहुत बढ़ गई तो पुलिस ने खोजी कुत्तों का सहारा लिया, लेकिन कुछ ही समय में इन कुत्तों को वापस भेज दिया गया। जब संवाददाता ने इसका कारण पूछा तो पुलिस कप्तान ने जो जवाब दिया, उसे सुनकर ‘वास्तविकता’ सामने आ गई। पढ़िये यह सशक्त लघुकथा — सं.
शहर बनने की प्रक्रिया से गुजरने वाले इस गांव में जब चोरी तथा हत्या आदि के मामले बहुत अधिक बढ़ गए तथा बहुत प्रयास करने के बावजूद भी कोई दोषी हाथ नहीं आया तो पुलिस चौकी में खोजी कुत्तों की एक टीम को विशष रूप से आमंत्रित किया गया। अब दोषियों के पकड़े जाने की पूरी-पूरी संभावना थी। मगर यह प्रयोग भी असफल रहा तथा वुछ समय के बाद खोजी कुत्तों की टीम को वापस मुख्यालय भेज दिया गया।
‘‘आपने खोजी कुत्तों को यहां से वापस क्यों भेज दिया ?’’ एक संवाददाता ने पुलिस अधीक्षक से पूछा। ‘‘क्योंकि इससे हमें कोई सफलता नहीं मिली।’’ अधीक्षक ने सहज भाव से कहा। ‘‘तो क्या इनकी सहायता से कोई एक भी दोषी नहीं पकड़ा गया।’’ ‘‘नहीं कोई भी नहीं।’’ ‘‘आप इसका क्या कारण समझते हैं ?’’ ‘‘पूरी तरह से तो कुछ नहीं कहा जा सकता है।’’ ‘‘फिर भी…..क्या ये ठीक ढंग से प्रशिक्षित नहीं हैं…..’’। ‘‘प्रशिक्षित तो हैं मगर लगता है इन्हें कोई विशेष अनुभव नहीं है।’’ ‘‘यह आप किस आधर पर कह सकते हैं ?’’ ‘‘जब भी इन्हें दोषियों का सुराग पाने के लिए भेजा गया तो घूम—फिर कर यह वापस पुलिस चौकी पर ही आकर रुकते थे….।’’ अधीक्षक का उत्तर था। संवाददाता पुलिस अधीक्षक के उत्तर से पूरी तरह संतुष्ट हो गया लगता था।