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LIVE : अयोध्या में रामलला की पूजा शुरू, 84 सेकेंड में होगी स्थापना

अयोध्या | अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का विधान शुरू हो गया है। मंदिर के गर्भगृह में मोदी पहुंच गए है। उन्होंने प्राण-प्रतिष्ठा पूजा के लिए संकल्प लिया। अब पूजा शुरू हो गई है।

इससे पहले सुबह मंत्रोच्चार के साथ रामलला को जगाया गया। इसके बाद वैदिक मंत्रों के साथ मंगलाचरण हुआ। 10 बजे से शंख समेत 50 से ज्यादा वाद्य यंत्रों की मंगल ध्वनि के साथ प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम शुरू हो गया है।

अभी गर्भगृह में मूर्ति की पूजा चल रही है। वहीं, यज्ञशाला में हवन भी चल रहा है। दोपहर 12.29 बजे प्राण-प्रतिष्ठा की मुख्य विधि शुरू होगी जो 84 सेकेंड की रहेगी। इन 84 सेकेंड में ही मूर्ति में प्राण स्थापना की जाएगी।

प्राण प्रतिष्ठा के बाद मंडप में वसोधारा पूजन होगा। ऋग्वेद और शुक्ल यजुर्वेद की शाखाओं का होम और परायण होगा। इसके बाद शाम को पूर्णाहुति होगी और देवताओं का विसर्जन किया जाएगा।

इस महोत्सव में होने वाली वैदिक क्रियाएं और शुभ संस्कार 16 तारीख से शुरू हो गए थे। पहले दिन प्रायश्चित्त होम यानी पवित्रीकरण की क्रिया हुई। इसके बाद कलश पूजन और मूर्ति की शोभायात्रा हुई फिर मूर्ति का परिसर में प्रवेश हुआ। जलयात्रा और तीर्थ पूजा हुई और अधिवास हुए।

मूर्ति की पवित्रता और शक्ति बढ़ाने के लिए मूर्ति को जल, घी, औषधि, केसर, शहद, फल, अनाज और सुगंधित चीजों में रखा गया। इसे अधिवास कहते हैं। इसके बाद श्रीरामलला को 20 जनवरी को स्थापित किया।

पिछले 6 दिनों में कब, कौन से पूजा अनुष्ठान हुए, इसे समझते हैं…

16 जनवरी, मंगलवार

इस दिन प्राण-प्रतिष्ठा में पूजा करने वाले यजमान ने प्रायश्चित्त किया और सरयू नदी में स्नान किया। पवित्रीकरण की क्रिया के बाद विष्णु पूजा के बाद प्रायश्चित के तौर पर गोदान किया। इसके बाद जहां मूर्ति निर्माण हुआ उस जगह पर कर्मकुटी होम किया। इस दिन वाल्मीकि रामायण व भुशुण्डिरामायण पाठ की भी शुरुआत हुई।

17 जनवरी, बुधवार

इस दिन जलयात्रा के साथ ब्राह्मण-बटुक- कुमारी-सुवासिनी पूजन हुआ। बटुक यानी बच्चे, कुमारी यानी दस साल से कम उम्र की बच्चियां और सुवासिनी यानी सुहागन महिलाओं की पूजा हुई। फिर कलश पूजन हुआ और कलश यात्रा हुई। इस दिन रामलला मूर्ति की शोभायात्रा हुई और आनंद रामायण का पाठ शुरू हुआ।

18 जनवरी, गुरुवार

इस दिन रामलला जहां विराजमान होंगे उस जगह की पूजा भी की गई। इसके बाद तीर्थ पूजन हुआ जिसमें गणेश-अंबिका और मंडलों की पूजा हुई। मंडप प्रवेश, यज्ञभूमि और वास्तुपूजन समेत अनुष्ठान में शामिल सभी जरूरी पूजा-पाठ हुए। इसके बाद मूर्ति का जलाधिवास, गन्धादिवास, पूजन और आरती हुई। जलाधिवास में मूर्ति को पानी और गंधादिवास में कई तरह की सुगंधित चीजों में रखा जाता है।

19 जनवरी, शुक्रवार

औषधाधिवास, केसराधिवास, घृताधिवास और धान्याधिवास हुए। औषधाधिवास में मूर्ति को औषधियों में रखा जाता है। केसराधिवास यानी केसर में, घृताधिवास यानी मूर्ति को घी में और धान्याधिवास का मतलब मूर्ति को कई तरह के अनाजों में रखा जाता है। माना जाता है कि गढ़ाई के वक्त मूर्ति पर चोट होने पर लगने वाले दोष और अशुद्धियां इन अनुष्ठानों से दूर हो जाती हैं। इस दिन अरणि से प्रकट अग्नि की नवकुंडों में स्थापना हुई, फिर हवन, वेदपारायण, रामायणपारायण हुआ।

20 जनवरी, शनिवार

इस दिन मन्दिर के प्रांगण में 81 कलशों की स्थापना और पूजा हुई। इसके बाद सुबह शर्कराधिवास और फलाधिवास की क्रिया हुई। शर्कराधिवास में शक्कर और फलाधिवास में फलों के साथ मूर्ति को रखा गया। फिर शाम को पुष्पाधिवास की क्रिया हुई। इसमें कई तरह के सुगंधित फूलों में मूर्ति को रखा जाता है। माना जाता है, इन क्रियाओं से मूर्ति की पवित्रता और बढ़ जाती है।

21 जनवरी, रविवार

पहले टेंट, फिर अस्थायी मंदिर में विराजमान रही रामलला की पुरानी मूर्ति नए मंदिर में ले जाकर स्थापित की गई। इस दिन सुबह मध्याधिवास और शाम को शय्याधिवास हुआ। मध्याधिवास में मूर्ति को शहद के साथ रखा जाता है। शय्याधिवास में मूर्ति को शय्या पर लिटाया जाता है। इसे शयन परंपरा भी कहते हैं। शयन से पहले शाम की पूजा और आरती हुई।

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