जगमोहन रौतेला
गैरसैंण के रहने वाले असनोड़ा जी पिछले लगभग साढ़े चार दशकों से पत्रकारिता से जुड़े थे और गैरसैंण जैसे चमोली जिले के दुरस्थ स्थान से नवभारत टाइम्स , अमर उजाला (बरेली , देहरादून व मेरठ संस्करण ) उत्तर उजाला , युगवाणी , नैनीताल समाचार आदि कई पत्र – पत्रिकाओं से जुड़े रहे । वर्तमान समय में वे श्रीनगर ( गढ़वाल ) के प्रकाशित मासिक पत्रिका रीजनल रिपोर्टर का सम्पादन भी कर रहे थे। उत्तराखण्ड बनने से पहले उत्तर प्रदेश के समय उन्होंने गैरसैंण जैसे बेहद संशाधन विहीन जगह से पत्रकारिता कर अपनी एक अलग जगह पत्रकारिता में बनाई थी। अपनी पत्रकारिता के माध्यम से उन्होंने पहाड़ की पीड़ा को जो स्वर दिए, उसने उत्तराखण्ड आन्दोलन को खाद और पानी दिया। गैरसैंण को राजधानी के तौर पर देखने की उनकी अपनी एक मुहिम थी और वे गैरसैंण को लेकर बहुत ही संजीदा थे। असनोड़ा जी का मानना था कि जब तक राज्य की राजधानी गैरसैंण नहीं बनेगी, तब तक उत्तराखण्ड राज्य का सपना साकार रुप नहीं ले सकेगा। वे गैरसैंण को राजधानी बनाने की मुहिम के साथ हमेशा एक आन्दोलनकारी के तौर पर भी हमेशा खड़े रहे। यही कारण है कि गैरसैंण को लेकर जितनी भी आन्दोलनात्नक गतिविधियॉ गैरसैंण या उसके बाहर उत्तराखण्ड में कहीं भी हुई, वे सब घटनाएँ उनके दिलोदिमाग में हमेशा रहती थी। वे खड़े-खड़े गैरसैंण राजधानी आन्दोलन के घटनाक्रम को बता सकते थे।
अपनी राजनैतिक विचारधारा के कारण वे हमेशा जनचेतना की राजनीति के वाहक बने रहे। यही कारण था कि कॉग्रेस व भारतीय जनता पार्टी के कई स्थापित नेताओं से उनके व्यक्तिगत और पारिवारिक सम्बंध होने के बाद भी उन्होंने राजनीति के लिए इन दोनों पार्टियों को नहीं चुना। वे चुनावी राजनीति कर के विधायक बनने की बजाय लोगों व उत्तराखण्ड की ज्वलंत समस्याओं के निराकरण के लिए जनचेतना की राजनीति के पक्षधर बने रहे। इसी वजह से वे पहले उत्तराखण्ड लोक वाहिनी और वर्तमान समय में उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी से जुड़े थे। उन्होंने 1980 के दशक में उत्तराखण्ड के सबसे चर्चित ” नशा नहीं , रोजगार दो ” आन्दोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया ।
पुरुषोत्तम असनोड़ा के असामयिक निधन से उत्तराखण्ड का पत्रकार जगत ही नहीं , बल्कि जनपक्षधरता के हिमायती बेहद शोकाकुल हैं ।पुरुषोत्तम असनोड़ा नहीं रहे। उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष पीसी तिवारी ने कहा ,” विश्वास करना कठिन है । यकीन कैसे करे, कैसे नहीं ? असनोड़ा हमारे उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी के साथी , नशा नहीं रोजगार दो आन्दोलन में बेहद सक्रिय रहे। उनके व्यक्तितव, लेखनी का ही प्रताप है कि गैरसैंण आज गैरसैंण है। उत्तराखण्ड परिवर्तन अभियान से गैरसैंण में उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी की स्थापना और उसके विकास में उनका मार्गदर्शन और सहयोग हमारी ताकत रहा। असनोड़ा जी एक सामाजिक, राजनीतिक कार्यकर्ता और मुखर पत्रकार रहे। उनके निधन से उत्तराखण्ड ने जनसरोकारों का एक स्तम्भ खो दिया है। मेरा उनसे घनिष्ठ पारिवारिक सम्बंध रहा है । कोरोना की इस वैश्विक त्रासदी में उन तक कैसे पहुँचें ?
नैनीताल समाचार के सम्पादक व वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन साह कहते हैं कि यह बेहद तकलीफदेह है । मैं तो समझ रहा था कि वे जल्दी ही घर आ जायेंगे। क्या कहें ? उत्तराखण्ड को उनका योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकेगा। रामनगर के वरिष्ठ पत्रकार हरिमोहन ” हरि ” ने कहा कि उनके निधन की खबर पाकर मैं नि:शब्द हूँ । हल्द्वानी के वरिष्ठ पत्रकार हरीश पंत व उमेश तिवारी ” विश्वास ” ने कहा कि असनोड़ा ने पहाड़ की पत्रकारिता को जो मुकाम दिया , वह हमेशा याद रखा जाएगा ।
असनोड़ा जी का असामयिक निधन इन पंक्तियों के लेखक के लिए भी व्यक्तिगत क्षति की तरह है । उनसे मेरा लगभग तीन दशक का परिचय था । वे पत्रकारिता में मेरे लिए हमेशा बड़े भाई की भूमिका में रहे । वे जब से श्रीनगर ( गढ़वाल ) से प्रकाशित रीजनल रिपोर्टर पत्रिका का सम्पादन कर रहे थे , तब से वे निरन्तर उत्तराखण्ड के विभिन्न विषयों पर मुझसे आलेख , रिपोर्ट व राजनैतिक समीक्षात्मक रिपोर्टें लिखवाते रहे । इसके लिए दो-तीन महीने के अन्तराल पर उनका फोन आ जाता और वे बड़े भाई की तरह आदेशात्मक स्वर में कहते , जगमोहन भाई , इस बार के अंक के लिए फलॉ विषय पर आपको लिखना है ” । कई बार समय की दुविधा में जब मैं उन्हें लिखने में असमर्थता जतलाता तो वे कहते , ” नहीं जगमोहन भाई ! ये तो आपको ही लिखना है । भले ही एक – दो दिन का और वक्त ले लो । पर लिखना तो आपको ही है ” । ” रीजनल रिपोर्टर ” पत्रिका के लिए लिखने के लिए आने वाले फोन के अलावा भी उत्तराखण्ड के विभिन्न ज्वलन्त मुद्दों पर भी हम दोनों के बीच लगातार संवाद होता रहता था।
उत्तराखण्ड की जनसमस्याओं के प्रति हमेशा संवेदनशील रहने वाले बड़े भाई सरीखे आत्मीय पुरुषोत्तम असनोड़ा जी को भावपूर्ण अंतिम नमन !