कविता — मान बढ़ा, स्वाभिमान बढ़ा, ‘हिंदी’ का तू अभिमान बढ़ा

मान है, अभिमान है, हिंदी की एक अलग पहचान है।माथे पर बिंदी, सुर से हिंदी मातृभाषा की शान है हिंदी।चमकता माथा हिंदी का, हिंदुस्तां की…

मान है, अभिमान है, हिंदी की एक अलग पहचान है।
माथे पर बिंदी, सुर से हिंदी मातृभाषा की शान है हिंदी।
चमकता माथा हिंदी का, हिंदुस्तां की गाथा का।
भाषा हिंदी सरलता वाली, सर्वोच्च शिखर पर चलने वाली।

हर पग—पग पर बोली जाती है, जब​ हिंदी की बारी आती है।
हिंदी—हिंदी अब सबकी हिंदी।
देश—विदेश और गली मौहल्ले।
मान बढ़ा और सम्मान बढ़ा, हिंदी का तू अभिमान बढ़ा।

हिंदी से ही देखो हिंद बना, हिंदी में ही वो अब ढल सा गया।
जग—जग उजियारा दुनिया में सारा।
बहती देखो हिंद की धारा।
सिरमौर है हिंदी भाषा की सरल उच्च विचारों की।

बूढ़े बच्चे और नौजवान, हिंदी से ही अब सबकी पहचान।
बिन हिंदी के मैं हुआ अधूरा, अब जीवन में हुआ नया सवेरा।
हिंदी है जग की जानी—पहचानी।
शुद्ध, सरल फिर अद्भुत कहानी।

जहां शब्दों का समावेश है।
हिंद का तो ही वही परिवेश है।
विस्तृत जिसका रूप है वह हिंद का ही तो स्वरूप है।
मान है अभिभान है हिंदी की एक अलग ही पहचान है।
हम सबकी शान है हिंदी, देखो सबकी पहचान है हिंदी।

  • कवि — कमल गोस्वामी, थाना बाजार, कोतवाली अल्मोड़ा

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