“विश्व के इंटेलीजेंट प्राणियों में एक थे हमारे रामानुजन”

👉 महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के 136वें जन्मदिन पर विशेष आलेख आलेख में द दून स्कूल देहरादून के गणित विभागाध्यक्ष चन्दन घुघत्याल दे रहे रोचक…

विभिन्न विद्यालयों में लगी गणित प्रदर्शनी

👉 महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के 136वें जन्मदिन पर विशेष आलेख

आलेख में द दून स्कूल देहरादून के गणित विभागाध्यक्ष चन्दन घुघत्याल दे रहे रोचक जानकारियां

✍️ चन्दन घुघत्याल, गणित विभागाध्यक्ष, द दून स्कूल देहरादून

ज अपनी कक्षा में जब मैंने बच्चों से पूछा कि दुनिया में वे किसे सबसे ज्यादा बुद्धिमान प्राणी मानते हैं? बच्चों के जबाब सुनकर मुझे ख़ुशी की अनुभूति हुई क्योंकि कई बच्चों ने न्यूटन, चाणक्य, आइंस्टीन, एपीजे अब्दुल कलाम के साथ ही श्रीनिवास रामानुजन का भी नाम लिया। महान गणितज्ञ रामानुजन का जन्मदिन 22 दिसंबर को भारत में गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है। बच्चों द्वारा उनको अपना आदर्श व्यक्तित्व कहने पर मुझे लगा कि उनके 136वें जन्मदिन पर आज उन्हें यही सच्ची श्रद्धांजलि है।

 छोटे से जीवनकाल और गणित में महारथ

रामानुजन जब केवल कक्षा पांच में पढ़ते थे, तो उनकी अध्यापिका ने कक्षा में पढ़ाया कि यदि हम किसी संख्या को उसी संख्या से भाग देते हैं, तो फल हमेशा एक आता है। छोटे बच्चे, जो अध्यापक की हर बात को जी हां कहकर स्वीकारते हैं और आज से सौ साल पहले तो मास्टर ही ज्ञान का पुंज होता था। उस वक्त भी जीनियस रामानुजन ने अपनी अध्यापिका से क्रॉस प्रश्न पूछा कि यदि शून्य को शून्य से भाग करते हैं, तो क्या होगा? क्या भागफल एक ही आएगा? उनकी अध्यापिका ने कहा, “क्यों नहीं, एक ही तो आएगा।” उनका प्रश्न बहुत ही गूढ़ था, क्योंकि शून्य भी तो एक संख्या ही है। कुछ नहीं को कुछ नहीं में बांटने से एक कैसे आ सकता है? यही सोचते रहे और आज के इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जमाने में भी यह एक अजूबा है और शून्य भागा शून्य को इंडेटरमिनेंट फॉर्म कहा जाता है। श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर, 1887 में इरोड, तमिलनाडु में हुआ था और महज 33 साल कि उम्र में टीबी की बीमारी के कारण 26 अप्रैल, 1920 में चेन्नई में इनकी मृत्यु हो गयी थी। इस छोटे से जीवनकाल में रामानुजन ने गणित के विकास में जो योगदान दिया, वह अतुलनीय हैं। वह गणित के जादूगर ही थे, नंबर तो मानो उनकी हर सांस में निकलते थे या फिर रगों में दौड़ते थे। इन्होंने खुद से गणित सीखा और उनकी इतनी विलक्षण क्षमता थी कि मात्र 12 साल की उम्र में ट्रिगोनोमेट्री में महारथ हासिल कर ली थी। रामानुजन को गणित सिद्धांतों पर काम करने के कारण ‘लंदन मैथमेटिक्स सोसाइटी’ में चुना गया था। (आगे पढ़िये…)

 इतनी प्र​सिद्धि पाई कि उन पर बनी फिल्म

रामानुजन जैसे महान गणितज्ञ पर फिल्म बन चुकी है। वर्ष 2015 में ‘द मैन हू न्यू इनफिनिटी (The Man Who Knew Infinity)’ फिल्म काफी चर्चित डॉक्यूमेंट्री मूवी रही। इंफाइनाइट सीरीज, इंफाइनाइट फ्रैक्शन, नंबर थ्योरी और मैथमेटिकल एनालिसिस में श्रीनिवास रामानुजन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे गणित को खेल समझकर संख्याओं से खेलते रहते थे। मैजिक वर्ग बनाना उनका पसंदीदा शौक था। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एचडी हार्डी रामानुजन की अनूठी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुवे और उन्होंने रामानुजन को कैंब्रिज बुलाया तथा उन्हें प्रसिद्ध रॉयल फेलोशिप भी दिलाई। किसी भी शिष्य को उभारने में एक गुरु कि भूमिका होती हैं। रामानुजन जीनियस तो थे ही, फिर भी रामानुजन को मौका देने वालों में प्रोफेसर हार्डी का विशेष योगदान रहा। इन दोनों ने 50 से ज्यादा रिसर्च पेपर्स मिलकर लिखे। (आगे पढ़िये…)

अंकों के जादूगर थे श्रीनिवास रामानुजन

इनके जीवन की एक रोचक घटना से रामानुजन के नंबरों के जादूगर होने की बात चरितार्थ होती हैं। रामानुजन जब कैंब्रिज में बीमार होकर एक अस्पताल में भर्ती थे, तो इनको मिलने प्रोफेसर हार्डी आये और अस्पताल आते ही वह बोले, आज की टैक्सी जिसका नंबर था 1729, बहुत ही बदनसीब निकली, जिसके कारण आने में बहुत ही परेशानी हुई। रामानुजन तुरंत बोले यह नंबर तो बहुत ही रोचक हैं। यही सबसे छोटा नंबर हैं, जिसको दो नम्बरों के घनों के जोड़ के साथ लिख सकते हैं। 1729 = 1^3 + 12^3 = 9^3 + 10^3 कहा जाता हैं कि रामानुजन को गणित के सूत्रों और प्रमेयों का ज्ञान उनकी कुलदेवी नामगिरी देवी की कृपा से हुआ। (आगे पढ़िये…)

 बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे रामानुजन

बहुमुखी प्रतिभा के धनी भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन ने कुल 3884 प्रमेय दिए। इन्होंने शून्य और अनन्त को हमेशा ध्यान में रखा और इसके रिलेशन को समझाने के लिए गणितीय सूत्रों का सहारा लिया। वह गणितीय आकाश में देदीव्यमान नक्षत्र की भांति छाये रहे। वे धर्म और आध्यात्म में केवल विश्वास ही नहीं रखते थे बल्कि उसे तार्किक रूप से प्रस्तुत भी करते थे। वे कहते थे कि “मेरे लिए गणित के उस सूत्र का कोई मतलब नहीं है, जिससे मुझे आध्यात्मिक विचार न मिलते हों।“ प्रोफेसर हार्डी ने उस समय के विभिन्न प्रतिभाशाली व्यक्तियों को 100 के पैमाने पर आंका था। अधिकांश गणितज्ञों को उन्होंने 100 में 35 अंक दिए और कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को 60 अंक दिए, लेकिन उन्होंने रामानुजन को 100 में पूरे 100 अंक दिए थे। यदि उस समय इंटेलीजेंट कोसेंट (IQ) मापन की विधि होती, तो अवश्य ही इन महान विभूतियों का IQ 200 स्कोर के आसपास ही होता क्योंकि इनकी सोच अलग ही रही और इन सभी ने विश्व को नए सूत्रों और सिद्धांतों से अवगत कराया। जब आई क्यू की बात हो ही रही है, तो यह आई क्यू स्कोर क्या है, इसको इसी लेख में जाना जाय। (आगे पढ़िये…)

जितना ज्यादा आईक्यू व्यक्ति उतना ही विद्वान

अल्बर्ट आइंस्टीन या स्टीफन हॉकिंग का आई क्यू विश्व में सर्वाधिक रहा होगा। इन्हें विश्व का सबसे ज्यादा इंटेलिजेंट इंसान माना जाता है। स्टीफन हॉकिंग ने ब्लैक होल और बिग बैंग सिद्धांत को समझाने में अतुलनीय योगदान दिया। वहीं आल्बर्ट आइन्स्टाइन ने द्रव्यमान-ऊर्जा समीकरण और रिलेटिविटी का सिद्धांत दिया। इसी तरह रामानुजन ने नम्बर थ्योरी और थीटा फंक्शन का योगदान देकर गणित को रोमांचकारी बनाने में अहम् भूमिका निभाई। इंटेलिजेंस कोसेंट (IQ) जिसका जितना ज्यादा होता है, वह मनुष्य उतना ही ज्यादा तार्किक और विद्वान होता है। आई क्यू का लेविल जेनेटिक होता है, यानि यह मां—बाप से मिला उपहार जैसा है। बुद्धिमत्ता एक बहुमुखी प्रक्रिया है। केवल आई क्यू के आधार पर ही हम यह नहीं कह सकते हैं कि जिसका जितना IQ लेबिल है, वह उतना ज्यादा अच्छा गणित या तर्क शास्त्र में होगा ही। (आगे पढ़िये…)

आईक्यू को समझना भी है जरूरी

गणित सीखने को कई कारक प्रभावित करते हैं जैसे कि प्रभावी शिक्षण विधि, सीखने की तमन्ना, स्वयं की रूचि और निरंतर अभ्यास आदि। आज मैं आईक्यू की बात इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि लोग ज्यादातर कहते हैं कि फलां प्रोफ़ेसर या आईएएस या आईपीएस का आईक्यू लेबल आम मनुष्य से ज्यादा है। आई क्यू किसी भी मनुष्य के कॉग्निटिव क्षमता यानी मानसिक योग्यता का मापन होता है। इसी के आधार पर व्यक्ति विशेष कितना जल्दी सीखता, समझाता और जानता है, यह निर्धारित होता है। अच्छा IQ वाला व्यक्ति अच्छे निर्णय त्वरित लेता है और समस्याओं का भी तार्किक समाधान देता है। एक अच्छी तरह बनाये गए आई क्यू टेस्ट में ज्यादातर लोग 85 से 115 तक स्कोर लाते हैं, लेकिन इस स्कोर को औसत स्कोर कहा जाता है। 115-130 स्कोर हासिल करने वालों का आईक्यू औसत से ज्यादा माना जाता है, लेकिन जिनका स्कोर 130 से ज्यादा होता है, उन्हें गिफ्टेड ही माना जाता है, किंतु जिनका भी IQ स्कोर 70 से काम होता है। उनको दिव्यांग श्रेणी में रखा जाता है। हालांकि केवल एक नंबर के आधार पर आप किसी भी मनुष्य की बौद्धिक क्षमता और व्यावसायिक प्रदर्शन का आकलन नहीं कर सकते हैं, बौद्धिक क्षमता को अनगिनत कारक प्रभावित करते हैं।

 ऐसे बढ़ाया जा सकता है आईक्यू स्कोर

बच्चों ने पूछा क्या आइक्यू स्कोर को बढ़ाया जा सकता है? वैसे तो यह जेनेटिक गिफ्ट है, फिर हम कुछ प्रयास कर मानसिक क्षमताओं में बृद्धि तो कर ही सकते हैं। आइक्यू स्कोर को बढ़ावा देने के लिए कुछ सामान्य सुझाव इस प्रकार हो सकते हैं जैसे कि नई चीजों का अध्ययन करना और नए कौशल सीखना हमारी मानसिक क्षमता को मजबूत कर सकता है, जिससे आईक्यू बढ़ सकता है। समस्या समाधान और लॉजिकल रीजनिंग का अभ्यास कर मानसिक चुनौतियों का सामना करने में मदद कर सकता है, जिससे आईक्यू स्तर बढ़ सकता है। सही आहार, पर्याप्त नींद और नियमित व्यायाम से मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखना आईक्यू को सुधार सकता है। व्यायाम और योग से भी मानसिक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। सही अध्ययन तकनीकों का अध्ययन करना और समय का सही तरीके से प्रबंधन करना आइक्यू स्कोर को बढ़ा सकता है। (आगे पढ़िये…)

रामानुजन और जैकब बर्नेट से तुलना

खैर कक्षा में बच्चों के साथ हुवे वार्तालाप में रामानुजन जैसे गणितज्ञ के बारे में बातें करते हुवे हम वार्तालाप करने लग गए। उन पर बानी फिल्म और उनके नाम पर देने वाले पुरस्कारों के बारे में बातें करते हुवे हमने उनके बारे में बहुत कुछ जाना। बच्चों द्वारा रामानुजन की तुलना अमेरिकी विलक्षण बालक जैकब बर्नेट से करना तथा यह कहना कि इनकी तरह रामानुजन का भी आईक्यू 170 तो होता ही यदि उस समय आईक्यू असेसमेंट विधि होती, तो कहना एक विचित्र संयोग ही है। जैकब बर्नेट ने एक साल के अंतराल में कक्षा 6 से 12वीं की परीक्षा महज नौ साल की उम्र में पास की और 10 साल में कॉलेज तथा 13 साल में एक भौतिकशास्त्री के रूप में प्रसिद्धि पायी। गणित और उससे जुड़ी चीजों के बारे में डिस्कस करना भी उस महान आत्मा को सच्ची आहुति होगी। (आगे पढ़िये…)

 AI युग में रामानुजन का योगदान महत्वपूर्ण

आज के AI युग में, रामानुजन का योगदान भी महत्व पूर्ण है, क्योंकि उनकी गणितीय रचनाएं, सूत्रों और प्रमेयों ने अनेक गणितीय समस्याओं को समझने में और हल करने में मदद की है। उनका कार्य और तत्त्वज्ञान भी आज के तकनीकों में अपना महत्व बनाया हुआ है। रामानुजन की गणितीय रचनाओं का अध्ययन करके, AI के विकास में भी कुछ सिद्धांतों का पता लगाया जा सकता है। उनकी सोच और दृष्टि का अध्ययन करके हम गणित में नयी दिशाओं की ओर बढ़ सकते हैं। इस प्रकार रामानुजन का योगदान आज के AI युग में भी महत्वपूर्ण है।

✍️ चन्दन घुघत्याल, गणित विभागाध्यक्ष, द दून स्कूल देहरादून

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