— एलटी समायोजित पदोन्नन विभागीय परीक्षा भर्ती के शिक्षकों का मसला
— अब आरपार की लड़ाई का मूड और आमरण अनशन का संकेत
सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
चयन प्रोन्नत वेतनमान में महज 200 रुपये का सम्मान पाने के लिए प्रदेश में करीब डेढ़ हजार शिक्षक 12 सालों से संघर्षरत हैं, मगर आज तक कुछ उनके हाथ नहीं आया। उनकी फाइल शासन स्तर पर सालों से धूल फांक रही है, लेकिन कोई सुधलेवा नहीं। न्याय के लिए दर—दर भटक रहे ये शिक्षक बेहद खिन्न हैं और अब आरपार की लड़ाई का मन बनाते हु आमरण अनशन को ही आखिरी विकल्प मान रहे हैं।
मामला बेसिक शिक्षा से एलटी समायोजित पदोन्नन विभागीय परीक्षा भर्ती के शिक्षकों का है। जो राजकीय एलटी समायोजित पदोन्नन शिक्षक संघर्ष मंच उत्तराखंड के बैनर तले संघर्षरत हैं और शासन—प्रशासन के सक्षम अधिकारियों व मंत्रियों के द्वार—द्वार इस मामले को लेकर जा चुके हैं। इस संबंध में मंच के प्रदेश अध्यक्ष दिगम्बर फुलोरिया ने बताया कि 16 मार्च 22 को शिक्षा सचिव ने बेसिक शिक्षा से एलटी समायोजित पदोन्नन विभागीय परीक्षा भर्ती के शिक्षकों के प्रकरण सुलझाने के लिए सचिवालय में आपात बैठक बुलाई थी। जिसमें सकारात्मक आश्वासन तो मिला, लेकिन सचिवालय में वित्त सचिव की टेबल पर समायोजित पदोन्नन विभागीय परीक्षा भर्ती के शिक्षकों की पत्रावली धूल फांक रही है और दमनकारी नीति के चलते बेसिक शिक्षा से एलटी समायोजित पदोन्नन विभागीय परीक्षा भर्ती के शिक्षक 12 वर्षों से चयन प्रोन्नत वेतनमान का शासनादेश जारी करवाने का रोना रो रहे हैं। भविष्य में क्या होगा, ये तो शासन—प्रशासन ही बता सकता है, लेकिन शासन—प्रशासन और विभाग से आज तक महज आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला है।
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स्नातक शैक्षिक प्रशिक्षित योग्यता होने के बाबजूद भी न्याय के लिए दर दर भटकना पड़ रहा है। उनका कहना है कि यदि योग्यताधारी शिक्षक बेसिक शिक्षा से एलटी में नहीं आते और प्राथमिक व जूनियर हाईस्कूल में ही रहते, तो उन्हें बिना मांगे चयन प्रोन्नत वेतनमान 4600 सौ रुपए से 4800 सौ रुपये कब का मिल चुका होता, लेकिन वे 12 वर्ष बाद भी 200 रुपया के लिए सम्मान के लिए तरस गए हैं। उच्च न्यायालय में जो शिक्षक चयन प्रोन्नत वेतनमान की याचिका दायर कर रहे हैं उन्हें शिक्षा विभाग अवमानना की डर से चयन प्रोन्नत वेतनमान देता जा रहा है और न्यायालय नहीं जा पा रहे हैं, उन्हें नियम समझाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज निदेशालय, जिला व ब्लाक स्तर पर अधिकारियों की फौज खड़ी है। मगर न्याय कोई नहीं दिला पा रहा है। उनका कहना है कि आखिर उतराखण्ड के मुख्यमंत्री प्रदेश में डेढ़ हजार शिक्षकों के साथ हो रहे इस अन्याय पर कब संज्ञान लेंगे। यदि जल्द संज्ञान लेकर मसले का संतोषजनक हल नहीं निकाला, तो आमरण अनशन ही एकमात्र विकल्प बचेगा।