सीएनई रिपोर्टर, बागेश्वर
दफौट गांव के स्यालडोबा में मंगलवार को पीपल के पेड़ का चमेली के पौधे से विवाह हुआ। गांव के लोग ढोल-नगाड़ों की थाप पर पहुंचे। पंडितों ने पूरे विधि विधान से विवाह कार्यक्रम संपन्न कराया। उसके बाद गांव में प्रसाद बांटा गया। पंडितों के अनुसार पीपल का पेड़ शुद्ध हो गया है। सावन माह और अन्य पर्वों पर उसकी पूजा-अर्चना की जा सकती है।
पीपल के पेड़ के विवाह की परंपरा सदियों से चली आ रही है। वर्तमान में भी इस परंपरा को आस्थावान लोग निभा रहे हैं। मंगलवार को पंडित मनोज चंद्र तिवारी ने स्यालडोबा गांव में पीपल और चमेली का विवाह संपन्न कराया। उन्होंने कहा कि चमेली को स्थानीय भाषा में जाली भी कहा जाता है। उन्होंने बताया कि विवाह के बाद पीपल का पेड़ विष्णु और चमेली का पौधा लक्ष्मी के रूप में माना जाता है। ताजा खबरों के लिए WhatsApp Group को जॉइन करें Click Now
इसके अलावा शिव और पार्वती की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा के साथ स्थापित की गईं। उन्होंने बताया कि यजमान की भूमिका में जयकिशन पांडे, उनकी धर्मपत्नी बंसती पांडे, बहू मीरा पांडे, राहुल, प्रियंका पांडे रहे। इस दौरान ग्रामीण बड़ी संख्या में मौजूद थे। उन्होंने बताया कि पीपल के पेड़ का शुद्धिकरण हो गया है और अब उसकी पूजा-अर्चना विभिन्न पर्वों पर आयोजित हो सकेगी।
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