प्रयागराज | पौष पूर्णिमा के स्नान के साथ भव्य और दिव्य महाकुंभ मेले की शुरुआत हो चुकी है। सोमवार की तड़के से ही देशी-विदेशी लाखों श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगा रहे हैं। आज से ही 45 दिनों के कल्पवास की शुरुआत भी भक्त करेंगे। करीब 12 किमी एरिया के स्नान घाटों पर जबरदस्त भीड़ है। एपल को-फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल जॉब्स भी प्रयागराज पहुंच चुकी हैं। निरंजनी अखाड़े में उन्होंने धार्मिक अनुष्ठान किया। 144 साल में पहली बार महाकुंभ में दुर्लभ संयोग बना है। मेले में जबरदस्त भीड़ है। सुबह 9:30 बजे तक 60 लाख भक्तों ने स्नान कर लिया। शाम तक करीब 1 करोड़ भक्तों के स्नान करने का अनुमान है।
मेले में 7 स्तरीय कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था रखी गई है। रविवार की रात 8 बजे से ही अगले 4 दिनों के लिए महाकुंभ क्षेत्र को नो व्हीकल जोन घोषित कर दिया गया है। महाकुंभ में सुरक्षा व्यस्था भी चाक-चौबंद कर दी गई है। NSG, ATS जैसी सुरक्षा एजेंसियों ने अपना मोर्चा संभाल लिया है। उधर, महाकुंभ के पहले स्नान पर्व से पूर्व रविवार को भी लगभग 50 लाख श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई। वहीं सोमवार की तड़के से ही बड़ी संख्या में साधु-संतों के साथ ही पुरुष, महिलाएं, बुजुर्ग पहुंचने लगे। वहीं पीएम मोदी के अलावा सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी महाकुंभ की शुरुआत पर लोगों को शुभकामनाएं दीं।
पीएम मोदी ने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर लिखा है कि “पौष पूर्णिमा पर पवित्र स्नान के साथ ही आज से प्रयागराज की पुण्यभूमि पर महाकुंभ का शुभारंभ हो गया है। हमारी आस्था और संस्कृति से जुड़े इस दिव्य अवसर पर मैं सभी श्रद्धालुओं का हृदय से वंदन और अभिनंदन करता हूं। भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का यह विराट उत्सव आप सभी के जीवन में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार करे, यही कामना है।
सीएम योगी बोले- गौरवशाली परंपरा का बनें हिस्सा
मुख्यमंत्री ने कहा कि महाकुंभ आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गरिमा का प्रतीक है। यह आयोजन अनेकता में एकता की भावना को सजीव करता है। मां गंगा की पवित्र धारा में स्नान और साधना करने आए सभी श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण हों। उन्होंने आगे कहा कि यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि सनातन संस्कृति और परंपराओं के वैश्विक गौरव का प्रतीक भी है। महाकुम्भ को दिव्य और भव्य बनाने के लिए सभी व्यवस्थाएं सुनिश्चित की गई हैं। आइए, महाकुंभ 2025 में सहभागी बनकर सनातन संस्कृति की इस गौरवशाली परंपरा का हिस्सा बनें। मां गंगा की कृपा से आपका जीवन सुख, शांति और समृद्धि से परिपूर्ण हो।
खराब मौसम और बूंदाबांदी के बीच प्रयागराज में लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ रविवार की रात से ही पहुंचनी शुरू हो गई थी। देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु संगम की रेती पर पहुंचे हैं। हर-हर महादेव, हर-हर गंगे की गगनभेदी जयकारे गूंज रहे हैं। पौष पूर्णिमा स्नान पर्व से पूर्व सभी प्रमुख साधु-संत अखाड़ों का संगम क्षेत्र में पहले ही हो चुका है। महाकुंभ में सनातन के ध्वज वाहक 13 अखाड़ों की छावनी क्षेत्र में मौजूदगी दर्ज हो चुकी है। 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर पहले अमृत स्नान पर सभी अखाड़े अपने क्रम के अनुसार स्नान करेंगे। DIG वैभव कृष्ण के अनुसार स्नान करने वालों का अनुमानित आंकड़ा 50 लाख के करीब है। व्यवस्था ठीक चल रही है। भीड़ नियंत्रण में है।
कल होगा महाकुंभ का पहला शाही स्नान
कल 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन महाकुंभ में पहला अमृत स्नान है। अखाड़े मकर संक्रांति के दिन अमृत स्नान करेंगे। प्रशासन ने इसकी भी तैयारी पूरी कर ली है। संगम की ओर बल्लियां लगाई जा रहीं हैं। नागा साधु इसी रास्ते से दौड़ते हुए शाही स्नान के लिए जाएंगे।
प्रमुख स्नान पर्व तिथि
13 जनवरी 2025-पौष पूर्णिमा, 14 जनवरी मकर संक्रांति (अमृत स्नान), 29 जनवरी मौनी अमावस्या (अमृत स्नान), 03 फरवरी बसंत पंचमी (अमृत स्नान), 12 फरवरी माघी पूर्णिमा (अमृत स्नान), 26 फरवरी महा शिवरात्रि।
आइए अब जानते हैं क्या है स्नान का शुभ मुहूर्त
इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को है। पहला शाही स्नान भी इसी दिन है। खास बात यह है कि इस बार कोई भद्रा नहीं है, यह सुबह से शाम तक शुभ रहेगा। भारतीय ज्योतिष अनुसंधान परिषद की प्रयागराज चैप्टर की अध्यक्ष डॉ. गीता मिश्रा त्रिपाठी ने बताया कि इस बार महापुण्यकाल की अवधि सुबह 9:03 बजे से 10:50 बजे तक रहेगी, जो 1 घंटा 47 मिनट होगी। शाही स्नान का ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5.27 से शुरू होगा। सुबह 5.27 बजे से 6.21 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त रहेगा। विजय मुहूर्त दोपहर 2.15 बजे से 2.57 बजे तक होगा। गोधूलि मुहूर्त शाम 5.42 बजे से 6.09 बजे तक रहेगी। इसी कड़ी में 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा का स्नान हो रहा है। पूर्णिमा तिथि की शुरुआत सुबह 5.03 बजे से होगी।
पौष पूर्णिमा स्नान 13 जनवरी शुभ मुहूर्त
इस दिन किसी भी समय स्नान करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा कई अन्य शुभ मुहूर्त भी हैं। इनमें भी स्नान किया जा सकता है। ब्रह्म मुहूर्त में सुबह 5.30 से 6.24 तक, अमृत चौघड़िया में सुबह 7.15 से 8.34 बजे तक, शुभ चौघड़िया में सुबह 9.52 से 11.11 बजे तक, लाभ चौघड़िया में दोपहर 3.7 से शाम 6.25 बजे तक।
144 साल बाद बना दुर्लभ संयोग
डॉक्टर गीता मिश्रा त्रिपाठी ने बताया कि महाकुंभ में 144 साल बाद दुर्लभ शुभ संयोग बन रहा है। मकर संक्रांति सूर्य की स्थिति के आधार पर मनाया जाने वाला पर्व है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं और उत्तरायण हो जाते हैं। मकर संक्रांति पर गंगा, यमुना और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है। इस दौरान स्नान, दान, और तिल-गुड़ के सेवन से व्यक्ति पुण्य अर्जित करता है। शास्त्रों में मकर संक्रांति को तिल संक्रांति भी कहा गया है। इस दिन काले तिल, गुड़, खिचड़ी, नमक और घी का दान विशेष फलदायी माना गया है।
महाकुंभ पर विशेष ग्रह नक्षत्रों का योग
भारत में महाकुंभ पर्व विशेष ग्रह नक्षत्रों के योग से प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में पड़ता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि जिन ग्रह नक्षत्रों की युतियों में अमृत की बूंदें छलकी थीं, उन्हीं की पुनरावृत्ति पर महाकुंभ पर्व मनाया जाता है। ज्योतिर्विद् डॉ.गीता मिश्रा त्रिपाठी बताती हैं कि बृहस्पति जीवनदायक तत्वों से युक्त हैं, इसलिए जीव की संज्ञा दी गई है। मकर और कुंभ राशियों के स्वामी शनि हैं जो स्वय संहारक तत्वों से युक्त हैं। सूर्य सिंह राशि के चंद्रमा, कर्क राशि तथा मंगल मेष और वृश्चिक राशियों के स्वामी हैं और यह भी संहारक तत्वों से युक्त हैं।
शुक्र दैत्यों के गुरु हैं और इनकी राशि वृष है। जब बृहस्पति मेष राशि चक्र में प्रवेश करता है तो उसके स्वामी मंगल और दैत्यों के गुरु शुक्र के संहारक तत्वों का नाश कर देते हैं और अपनी स्थिति से मकर राशि में रहने वाले सूर्य और चंद्रमा को भी सीधी दृष्टि से जीवनदायी रश्मियों से भर देते हैं। इस प्रकार सूर्य और चन्द्रमा मिलकर मकर राशि के स्वामी शनि को निष्प्रभावी कर देते हैं तथा बृहस्पति से पोषित होकर अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं।
ऐसा माना जाता है कि एक दिव्य दिवस एक सांसारिक वर्ष के बराबर होता है। इसीलिए बारह दिन तक चले देवासुर संग्राम को बारह वर्ष माना जाता है। इस प्रकार प्रत्येक 12वें वर्ष कुंभ की आवृत्ति होती है। जिस दिन अमृतकुंभ गिरने वाली राशि पर सूर्य चन्द्रमा और बृहस्पति का संयोग हो, उस समय पृथ्वी पर कुंभ होता है। अर्थात, राशि विशेष में सूर्य-चन्द्र के स्थित होने पर अमृतकुंभ रूपी चन्द्र उक्त चारों स्थानों पर अपने परम शुभ प्रभाव का अमृत बरसाता है और उसी की प्राप्ति के लिए कोटि-कोटि श्रद्धालुजन कल्पवास तथा स्नान करते हैं. इन चारों स्थानों पर राशि-ग्रहयोग अलग-अलग होते हैं।