घी-त्यार : अनूठी परंपरा पर आधारित पहाड़ का लोक पर्व

⏭️ जानिये उत्तराखंड के इस त्यौहार का महत्व सीएनई डेस्क: देवभूमि उत्तराखंड में धार्मिक परंपराओं, मेलों व त्यौहारों की लंबी फेहरिस्त है। ​ऋतुओं व महीनों…

घी-त्यार : अनूठी परंपरा पर आधारित पहाड़ का लोक पर्व

⏭️ जानिये उत्तराखंड के इस त्यौहार का महत्व

सीएनई डेस्क: देवभूमि उत्तराखंड में धार्मिक परंपराओं, मेलों व त्यौहारों की लंबी फेहरिस्त है। ​ऋतुओं व महीनों के मुताबिक एक के बाद एक त्यौहार यहां मनाए जाते हैं। इन्हीं में शुमार है घी-त्यार (यानी घी त्यौहार)। प्रमुख तौर पर हरेला पर्व की तर्ज पर यह पर्व भी ऋतु पर आधारित है।

हरेला त्यौहार बीज बोने व पेड़—पौधे लगाने का प्रतीक है, तो घी-त्यार फसलों में बालियों लगने की खुशी का प्रतीक। यह त्यौहार हर साल भादो मास की पहली तिथि (गते) का मनाया जाता है। इस दिन सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करते हैं। इसलिए इसे सिंह संक्रांति भी कहा जाता है।

प्रकृति, पर्यावरण व कृषि प्रेम से जुड़े पर्वों को मनाने में उत्तराखंड खास पहचान रखता है। यहां प्रचलित हिंदू विक्रमी संवत के अनुसार हर माह की पहली तिथि (पहली गते) को कई संक्रांतियां मनाई जाती हैं। इसी क्रम में भाद्रपद मास की संक्रान्ति को घी-त्यार एवं ओलगिया मनाया जाता है। घी-त्यार भी ऋतु एवं कृषि पर्व ही है, लेकिन इसके पीछे हृष्ट—पुष्ट बनने का भाव होता है। तभी पोषक तत्वों की भरपूर घी का सेवन करने व लगाने की परंपरा इस पर्व में है, ताकि परिवार के सभी सदस्य तंदुरूस्त रहें।

हरेला बीजों को बोने व वर्षा ऋतु के आगमन का प्रतीक त्यौहार है, वहीं घी-त्यार नई फसल तैयार होने व उस पर बालियां निकलने की खुशी में मनाया जाता है। इसके अलावा अखरोट, सेब, माल्टा, नारंगी फलों और ककड़ी, लौकी, तुरई व कद्दू इत्यादि बेलीय सब्जियां भी इस वक्त तैयार होती हैं। इतना ही नहीं पशुओं के लिए पर्याप्त हरी घास के चारे के रूप में उपलब्ध हो जाती है। जिससे दुधारू पशु अच्छा व अधिक दूध देते हैं और घरों में दूध, दही, घी आदि आसानी से उपलब्ध होता है।

घी-त्यार के दिन स्नान कर मंदिर में पूजा अर्चना होती है और प्रतीकात्मक रूप से ​घी सिर पर लगाया जाता है। पहाड़ी दालों मास, उड़द को भिगोने के बाद बारीक पीसा जाता है और उसकी कचौड़िया बनाई जाती हैं। इनसे बेड़ू रोटी बनाने का भी प्रचलन है। जिन्हें घी के साथ जाता है। कई जगह इस दिन पिनालू (अरबी) की नई कोपलों (जिसे स्थानीय भाषा में गाबा कहते हैं) की सब्जी बनाने की परंपरा भी है।

इस दिन घी खाना जरूरी होता है, इसी कारण कई पकवान घी में ही तैयार होते हैं। किवदंति है कि जो व्यक्ति इस दिन घी नहीं खाता, तो उसका अगला जन्म गनेल (घोंघा) के रूप में होता है। माना जाता है कि सिर पर घी मलने से शरीर सुदृढ़ होता है और मस्तिष्क को मजबूती मिलती है।

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