मिशाल: लाल सिंह बोरा की उदारदिली ने बदली लंबे रास्ते की तस्वीर, मुंबई से लौट बड़ी रकम की खर्च, चहुंओर वाहवाही

दिनकर जोशी, सोमेश्वर (अल्मोड़ा)समाजसेवा यूं ही नहीं हो जाती, बल्कि उसके लिए उदार दिल व सच्ची लगन का भाव होना बेहद जरूरी है। ऐसी ही…

दिनकर जोशी, सोमेश्वर (अल्मोड़ा)
समाजसेवा यूं ही नहीं हो जाती, बल्कि उसके लिए उदार दिल व सच्ची लगन का भाव होना बेहद जरूरी है। ऐसी ही उदारदिली के प्रेरणास्रोत बने हैं सोमेश्वर क्षेत्र के लाल सिंह बोरा। जिन्होंने मुंबई से आकर अपने पैतृक गांव गुरूड़ा समेत चार गांवों के पैदल मार्ग की तस्वीर बदल डाली। उन्होंने खुद ही बड़ी रकम खर्च कर करीब 410 मीटर लंबे इस मार्ग को खड़ंजा बिछाकर सीमेंट से पक्का बना डाला। इतना ही नहीं मलबे में दबे पानी के स्रोत को जीवनदान दे दिया। इस कार्य में कई दिनों तक गांव के ही लोगों को रोजगार भी दिया।
दरअसल, सोमेश्वर तहसील के ग्राम गुरूड़ा निवासी लाल सिंह बोरा पुत्र स्व. भीम सिंह बोरा मुम्बई में अपना अच्छा निजी व्यवसाय करते हैं। कोरोना संक्रमण के चलते लाॅकडाउन में माटी का मोह उन्हें अपने गांव खींच लाया और सपरिवार अपने गांव गुरूड़ा पहुंचे। जब अल्मोड़ा व घर में उन्होंने क्वारंटाइन अवधि पूरी की, तो रास्ते के सुधारीकरण में जुट गए। गांव का पैदल आम रास्ता समय-समय पर बरसात के कारण टूटा-फूटा और बेहद ऊबड़-खाबड़ था। इस रास्ते से गुरूड़ा, अमृतपुर, धौलरा व छानी आदि गांवों का नाता दशकों से है। यहीं से लोगों का आना जाना है। खराब दशा के कारण ग्रामीण कठिनाईयों का सामना कर रहे थे। चनौदा पुल से लेकर गुरूड़ा गांव तक इस रास्ते की लंबाई करीब 410 मीटर और चैड़ाई करीब सवा मीटर है। आज तक किसी जनप्रतिनिधि ने चार गांवों के सफर का सहारा बने इस रास्ते की सुध नहीं ली, लेकिन ग्राम गुरूड़ा निवासी लाल सिंह बोरा पुत्र स्व. भीम सिंह बोरा जब गांव पहुंचे, तो उनसे इस मार्ग की दुर्दशा देखी नहीं गई। उनका अपनी जन्म भूमि और पुस्तैनी रास्ते के मोह जाग उठा और उन्होंने इस मार्ग को ठीक करने का बीड़ा उठाया। वह भी किसी से कोई आर्थिक सहयोग लिये बिना। उन्होंने गांव के लोगों को मजदूरी पर कार्य पर लगाया और पूरा खर्चा खुद उठाते हुए रास्ते को सुविधाजनक व आकर्षक बनाने का कार्य शुरू कर डाला। पहले इसमें खड़ंजा बिछाया और सीसी कर मजबूती दी। अब रास्ता आकर्षक व सुविधाजनक बन गया है। इसमें कई रोज व कई मजदूर लगे।
प्राचीन जलस्रोत को जीवनदान:- इतना ही नहीं रास्ते के प्रवेश स्थल पर पानी का एक प्राचीन धारा हुआ करता था, मगर संरक्षण के अभाव में दबकर इसका स्रोत बंद हो गया था। श्री बोरा द्वारा यह भी नहीं देखा गया। उन्होंने इस धारे को नया जीवन दिया। उन्होंने मलबा हटाकर इसके स्रोत को खोला और वहीं एक तालाब बनवा दिया। जिसमें पानी एकत्रित हो रहा है, ताकि यह पालतू पशुओं को पानी पिलाने का स्थाई आधार बन सके। उन्होंने इस निर्माण कार्य की खुद तो देखरेख की ही। साथ ही उनकी पत्नी धना देवी व पुत्र चंदन सिंह ने भी सहयोग दिया।
अट्ठारह हजार किराया किया माफ:- कहते हैं कि आचार-विचार भले हों, समाजसेवी प्रवृत्ति हो, तो वह साफ दिखता है। लाल सिंह बोरा के साथ यह बात फिट बैठती है। उनका सोमेश्वर अपना भवन है, जो होटल के लिए किराये पर दिया है। मगर लाकडाउन के चलते होटल का किराया देेने में किरायेदार ने लाचारी दिखाई। कोई जोर जबरदस्ती दिखाने के बजाय लाल सिंह ने उदार दिली दिखाते हुए उसका दो महीने का किराया माफ कर दिया। जो करीब 18000 रूपये बताया जा रहा है।
क्षेत्र में उनके इस कार्य की बहुत प्रशंसा हो रही है, क्योंकि उन्होंने असल समाजसेवा का प्रेरणादायी उदाहरण प्रस्तुत किया है। उनके साथ काम की देखरेख में भुवन बोरा, निर्मला बोरा, शिव सिंह रावत, महेश भाकुनी, त्रिभुवन जोशी, सरस्वती बोरा आदि ने सहयोग किया।

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