आलेख, डॉ. केएन खुल्बे : नए आयाम, नई सोच :— पहाड़ में रोजगार का जरिया बन सकती है गाय, खुलनी चाहिए अधिकाधिक गोशालाएं, प्राकृतिक संसाधनों का भी करें उपयोग

CNE N UTTARAKHAND कोरोना काल में अनगिनत उत्तराखंडी पहाड़ को वापस लौट आये हैं। इन परिस्थितियों में रोजगार के नये आयाम खोजे जाने की जरूतर…


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कोरोना काल में अनगिनत उत्तराखंडी पहाड़ को वापस लौट आये हैं। इन परिस्थितियों में रोजगार के नये आयाम खोजे जाने की जरूतर आन पड़ी है। प्रमुख सामाजिक चिंतक व पेशे से चिकित्सक डॉ. केएन खुल्बे का यह आलेख एक नई सोच और रोजगार के नये आयाम बेरोजगारों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा है। इस आलेख को हमने बिना कांट—छांट के प्रकाशित किया है। आप भी पढ़िये और समझयिये कि पहाड़ में गौ माता किस प्रकार से रोजगार और आर्थिक स्रोत का जरिया बन सकती है। साथ ही जानिये कि यहां रोजगार के अन्य क्या चीजें जरिया बन सकती हैं। — सं.

उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र में गांवों की अधिकतर आबादी महानगरों और मैदानी क्षेत्रों के लिये पलायन कर चुकी है, लेकिन कोरोनावायरस के संकट ने बहुत से लोगों के सम्मुख रोजी-रोटी और जीवन का संकट खड़ा कर दिया है। बहुत से लोग दिल्ली आदि महानगरों से गांवों को वापस लौट आये, लोगों ने पहाड़ में ही रहकर आजीवीका कमाने की कोशिस की लेकिन पूर्व से सुविधायें नहीं होने के कारण अधिकतर लोगों को बाद में वापस लौटना पड़ा। पर्वतीय क्षेत्र में अभी तक ऐसी कोई तैयारी नहीं है, जिसके सहारे हजारों परिवारों को तुरन्त रोजगार की सुविधा दी जा सके। जबकि पहाड़ में व्यापक संभावनायें हैं, जिनके बलबूत पहाड़ के लोग आत्मनिर्भर हो सकते हैं, और हिमांचल की तरह हमारा राज्य भी तरक्की कर सकता है। कुछ प्रमुख सुझाव इस प्रकार हैं।

1 .पर्वतीय क्षेत्र में व्यवस्था सम्बन्धी खामियों के कारण आज गोवंश की भारी दुर्गति हो रही है। गोवंश का अस्तित्व ही खत्म होने के कगार पर है। देशी गायों के दूध से लेकर गोमूत्र और गोबर तक में कितने औषधीय गुण हैं, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। इन गायों के पुनर्वास और संरक्षण के लिये गोशालाएं खोलकर बेरोजगार युवाओं को दुग्ध, गोमूत्र और गोबर के कारोबार से जोड़ा जाये, सरकार गोमूत्र शोधन पलन्ट लगाने के लिये युवाओं को 80 से 90 प्रतिशत तक सब्सिडी के साथ ऋण दिलायें, और दवा उत्पादक कम्पनियों में उनका विपणन कराये। इससे सरकार का आयुष प्रदेश का सपना पूरा होगा। देशी गायों के गोबर से धूप तैयार की जा सकती है।

2. पर्वतीय क्षेत्र में तमाम तरह ही जड़ी बूटियों का उत्पादन होती है, सरकार उत्तराखण्ड को आयुष प्रदेश बनाने को लेकर ईमानदार है तो उसे हर्बल खेती को बढावा देना होगा, इसके लिये आर्थिक सहायता देनी होगी और कच्चे माल के विपणन और प्रसंस्करण का इन्तजाम करना होगा। जबकि पूर्व में कई प्रकार की यहां दवाओं का उत्पादन होता था।

3. पहाड़ की मडुवा, गहत आदि परम्परागत फसलों के साथ ही बागवानी फसलों ने भी देश और दुनिया के बाजारों में स्थान बनाया है, लेेकिन पलायन और वन्य जीवों के हमलों के कारण किसान खेती छोड़कर मजदूर हो गये हैं। वन्य जीवों के संकट को घेरबाड़ आदि से कम किया जा सकता है। सरकार इसके लिये फिर से वातावरण बनाकर किसानों की मदद करे तो पहाड़ की बंजर भूमि फिर से आबाद हो सकती है। हल्दी, मिर्च, अदरख आदि मशाला और कई प्रकार के फूलों का उत्पादन करके कई किसानों ने आय के स्रोत विकसित किये हैं। इससे प्रेरणा ली जा सकती है।

4. मशरूम उत्पादन, बकरी-भेड़ पालन, मछली पालन और मुर्गी पालन के व्यावसाय भी पहाड़ में रोजगार का एक बडा जरिया बन सकते हैं।

5. उत्तराखण्ड में धार्मिक पर्यटन की काफी सम्भावनायें हैं, लेकिन अभी तक सिर्फ कुछ प्रमुख स्थलों तक ही आस्थावान पर्यटक जा रहे हैं, अन्य महत्वपूर्ण स्थलों को भी पर्यटन मानचित्र से जोड़ने की आवश्यकता है। पहाड़ में ब्रिटिश काल के भवाली सैनिटोरियम की तर्ज पर बड़े अस्पताल और सैनिटोरियम खोलकर स्वास्थ्य लाभ के इच्छुक देशी- विदेशी लोगों को आकर्षित किया जा सकता है। सुदूरवर्ती गांवों तक होम-स्टे स्कीम को और अधिक विस्तारित करने की जरूरत है।

6. पर्वतीय क्षेत्र में स्वच्छ, गुणवत्ता पानी का अपार भण्डार है, इस पानी के बाटलिंग और शोधन प्लान्ट की छोटी इकाइयां लगाकर लोगों को रोजगार से जोड़ा जाना चाहिये।

यह बात उल्लेखनीय है कि राज्य बनने के बाद पर्वतीय क्षेत्र के लगभग सभी गांव अब सड़कों से जुड गये हैं, ग्रामीण इलाकों में निजी स्कूलों में बेहतर शिक्षा सुविधा उपलब्ध है। स्वास्थ्य पेयजल, संचार और बिजली की सेवाओं में सुधार हुआ है। ऐसे समय में सरकार ग्रामीण युवाओं और किसानों को प्रोत्साहन व मदद दे तो रिवर्स पलायन के सपने को पूरा किया जा सकता है।


– डॉ. केएन खुल्बे,
संस्थापक खुल्बे डेन्टल केयर एण्ड इम्पलांट सैंटर
रानीखेत- भतरौंजखान
रानीखेत।


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